चन्नी के भरोसे

पंजाब कांग्रेस में लंबे समय से चली आ रही रस्साकशी व उथल-पुथल के बाद भले ही पार्टी हाईकमान ने चरणजीत सिंह चन्नी को राज्य की कमान सौंप दी हो, लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि पार्टी में महत्वाकांक्षाओं का उफान थम गया है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद विधायक दल का नेता चुने जाने में जिस तरह से ऊहापोह की स्थिति नजर आई, उससे पता चलता है कि अभी भी पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। राज्य में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले जब पार्टी अध्यक्ष बदले जाने के बाद भी उठापठक व अनबन की सीमाएं पार होने लगीं तो पार्टी ने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन का मन बनाया। निस्संदेह, कैप्टन अमरिंदर सिंह की कार्यशाली को लेकर पार्टी में नाराजगी थी, लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद यह टकराहट चौराहे पर आने लगी। बहरहाल, ऐसे वक्त में जब अकाली दल ने देश के सबसे ज्यादा दलितों वाले राज्य में बसपा से हाथ मिलाकर कांग्रेस के लिये एक बड़ी चुनौती पैदा कर दी थी, तो उसकी काट में कांग्रेस ने दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को राज्य की बागडोर सौंपकर एक मास्टर स्ट्रोक ही खेला है। नवजोत सिद्धू के बेहद करीबी माने जाने वाले और कैप्टन अमरिंदर के मुखर विरोधी चरणजीत सिंह चन्नी को सही मायनों में कांटों का ही ताज मिला है। पार्टी में जारी उठापटक को खत्म करके चन्नी पर उन वादों को पूरा करने का दबाव होगा, जिसे पूरा न करने का आरोप वे कैप्टन पर लगा रहे थे। जाहिर-सी बात है कि पार्टी का उन पर दबाव रहेगा कि वे 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की सत्ता में वापसी करें। यह तभी संभव है जब पार्टी में मनभेद का पूरी तरह पटाक्षेप हो। पंजाब की सत्ता में निर्णायक भूमिका निभाने वाले मालवा क्षेत्र से आने वाले चन्नी पार्टी की सत्ता में वापसी करा पायेंगे, ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।
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