अब नहीं मिलेंगे क्रिकेट बैट: पहलगांव हमले के बाद कश्मीर विलो इंडस्ट्री पर पड़ा बड़ा असर

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते एक बार फिर तनाव के मुहाने पर खड़े हैं। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगांव इलाके में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हमले के बाद भारत की प्रतिक्रिया को लेकर तमाम चर्चाएं शुरू हो गई हैं। युद्ध जैसे हालात बनते जा रहे हैं और इसकी एक बड़ी कीमत अब खेल जगत को भी चुकानी पड़ रही है। खासकर क्रिकेट की दुनिया को एक बड़ा झटका लगा है — क्योंकि भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच अब क्रिकेट बैट्स का निर्माण ठप पड़ चुका है।
कश्मीर के पहलगांव और अनंतनाग इलाके में बनने वाले क्रिकेट बैट्स पूरी दुनिया में मशहूर हैं। यहां बनते हैं ‘कश्मीर विलो’ बैट्स, जिनसे न सिर्फ भारतीय क्रिकेटर खेलते हैं, बल्कि दुनिया भर के दिग्गज बल्लेबाज़ भी इन बैट्स को पसंद करते हैं। विराट कोहली, रोहित शर्मा, बाबर आजम, मोहम्मद रिज़वान जैसे खिलाड़ियों के हाथों में जो बैट्स आप टीवी स्क्रीन पर देखते हैं, उनमें से कई कश्मीर विलो से बने होते हैं। लेकिन अब ये बैट्स बनना लगभग बंद हो चुके हैं।
पहलगांव में हुए हमले के बाद सुरक्षा स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि वहां काम कर रहे हज़ारों कारीगरों को अपना काम छोड़कर वापस लौटना पड़ा। मेरठ और जालंधर जैसे शहरों से आए करीब 25,000 कारीगर इस इंडस्ट्री में काम कर रहे थे, लेकिन अब अपनी जान की चिंता में सब अपने-अपने घर लौट चुके हैं। फैक्ट्रियां खाली पड़ी हैं, मशीनें रुकी हुई हैं और कारखानों में सन्नाटा पसरा है।
कश्मीर विलो की पहचान सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरे विश्व में है। इंग्लिश विलो के मुकाबले सस्ता होने के बावजूद इसकी क्वालिटी शानदार मानी जाती है, और यही वजह है कि दुनियाभर के क्रिकेटर्स इन बैट्स को पसंद करते हैं। अनंतनाग और पहलगांव इस इंडस्ट्री के सबसे बड़े केंद्र हैं, जहां करीब 90% मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स स्थित हैं। ये इलाके खुली ज़मीन और प्राकृतिक संसाधनों की वजह से बैट निर्माण के लिए आदर्श माने जाते हैं। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।
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इतना ही नहीं, इस स्थिति का असर सीधे-सीधे भारतीय क्रिकेट पर भी पड़ेगा। जब बैट्स ही नहीं बनेंगे, तो खिलाड़ी प्रैक्टिस कैसे करेंगे? मैच में कैसे उतरेंगे? नये क्रिकेटर्स जो कश्मीर विलो के बैट्स पर भरोसा करते हैं, उनके पास अब सीमित विकल्प बचेंगे। इंटरनेशनल मैचों में इस्तेमाल होने वाले बैट्स की सप्लाई भी प्रभावित हो सकती है। और यदि भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात बनते हैं, तो आने वाले समय में इसका असर और गंभीर हो सकता है।
कश्मीर विलो बैट्स की इंडस्ट्री एक तरह से न केवल खेल जगत से जुड़ी है, बल्कि हज़ारों लोगों की आजीविका का ज़रिया भी है। इस इंडस्ट्री में काम करने वाले लोग सिर्फ कारीगर नहीं हैं, बल्कि उनके हाथों से निकलने वाला हर बैट देश के करोड़ों क्रिकेट फैंस के सपनों का हिस्सा होता है। लेकिन अब ये सपने चकनाचूर होते दिख रहे हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच अगर हालात और बिगड़ते हैं, तो ये केवल सीमाओं पर जंग की बात नहीं होगी — ये जंग उन इंडस्ट्रीज के लिए भी होगी जो कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाकों में सांस लेती हैं। कश्मीर विलो बैट्स सिर्फ लकड़ी का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि भारतीय क्रिकेट की पहचान हैं। और जब ये इंडस्ट्री ही थम जाए, तो सवाल सिर्फ खेल का नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, हमारी पहचान और हमारे खिलाड़ियों की तैयारी का भी होता है।
अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में हालात कैसे बदलते हैं। क्या यह इंडस्ट्री दोबारा खड़ी हो पाएगी? क्या फिर से कारीगर लौटेंगे? क्या भारत-पाकिस्तान के रिश्ते इस मोड़ पर जाकर क्रिकेट जैसे खेल को भी प्रभावित कर देंगे? इन सभी सवालों के जवाब वक्त के साथ मिलेंगे, लेकिन इतना तय है कि पहलगांव हमले ने कश्मीर विलो इंडस्ट्री पर एक ऐसा गहरा ज़ख्म दिया है, जिसकी भरपाई इतनी जल्दी संभव नहीं।