OPINION: अगर वीर सावरकर को भारत रत्न मिला तो….

OPINION: अगर वीर सावरकर को भारत रत्न मिला तो….
Vee Sawarkar

यार हमारी बात सुनो, ऐसा एक इंसान चुनो. जिसने पाप ना किया हो, जो पापी न हो. रोटी फिल्म का यह गाना विनायक दामोदर वीर सावरकर (Vinayak Damodar Veer Savarkar) को भारत रत्न (Bharat ratna)दिए जाने को लेकर उठाए जा रहे तमाम विवादों का जवाब देता है.

भाजपा (BJP) के महाराष्ट्र (Mahrashtra) के घोषणा पत्र में सावरकर को भारत रत्न देने की बात कही गई है. अगर इसे राजनीति मानते हैं तो इंदिरा गांधी ने तमिलनाडु के 1977 के चुनाव के मद्देनजर के.कामराज को भारत रत्न दिया था.

ठीक दस साल बाद उनके बेटे राजीव गांधी (Rajiv gandhi) ने एमजी रामचंद्रन (MG Ramchandran) को जब भारत रत्न दिया तो उसका भी सियासी लाभ उठाया.

1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) को भारत रत्न देकर अपने सियासी समीकरण ही साधे थे. उनकी मंशा उस समय के चुनाव को प्रभावित करने की ही थी.

सचिन तेंदुलकर का तो नाम भी BCCI ने नहीं भेजा

अगर सावरकर के विरोधी यह बताना चाह रहे हों कि वीर सावरकर संघ के प्रतीक पुरुष, भाजपा के प्रेरणा पुरुष हैं. भारत रत्न को इतना निजी क्यों किया जाना चाहिए?

तो उन लोगों के लिए महज इतना ही कि मनमोहन सिंह सरकार ने क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को आनन फानन में भारत रत्न से नवाजा. जबकि खेल मंत्रालय ने हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का नाम राष्ट्रपति के पास भेजा था.

सचिन का नाम बीसीसीआई ने भी नहीं भेजा था. सचिन नामित राज्यसभा सदस्य थे. जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल में ही यह सम्मान अपने नाम कर लिया था.

राजीव गांधी को सिख दंगों के बाद नवाजा गया. प्रणब मुखर्जी आजादी के 17 साल पहले पैदा हुए थे पर स्वतंत्रता आंदोलन में कोई योगदान नहीं. शायद ही किसी ने उन्हें हिंदी बोलते सुना हो.

कांग्रेस से अलग होकर अपनी राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बनाई. महत्वपूर्ण पदों पर रहे, राष्ट्रपति रहे.

सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी, इसलिए वह भारत रत्न के हकदार नहीं हो सकते. तो आइए इस सच की भी परतें खोलते हैं. 1954 में पहला भारत रत्न चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के हिस्से गया था.

डॉ. अम्बेडकर ब्रिटिश वायसराय की कबीना में मंत्री

माउंटबेटेन के बाद नेहरू ने उन्हें गवर्नर जनरल नियुक्त कराया. इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था. जिन्ना को पाकिस्तान का भौगोलिक खाका पेश किया था.

वह महात्मा गांधी के समधी थे. नेहरू की कोशिश उन्हें पहला राष्ट्रपति बनाने की थी, पर सरदार पटेल ने राजेंद्र प्रसाद को नियुक्त करा लिया. भारत रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर को भी मिला है.

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान डॉ. अम्बेडकर ब्रिटिश वायसराय की कबीना में मंत्री थे. सीधा सा अर्थ है कि वे आजादी की लड़ाई लड़ने वाले लोगों के खिलाफ और साम्राज्यवादियों के साथ थे.

वीर सावरकर के कामकाज का मूल्यांकन भी जरूरी

अब जंग-ए-आजादी के दौरान सावरकर के कामकाज का मूल्यांकन भी जरूरी हो जाता है.

उन्होंने हिन्दू राष्ट्र के विजय के इतिहास को प्रमाणिक ढंग से अपनी किताब ‘इंडियन वार आफ इंडिपेंडेंस- 1857‘ में लिखा है, यह स्थापना दी है कि यह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली लड़ाई थी.

वह मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे. ‘हिन्दुत्व-हू इज हिन्दू‘ शीर्षक किताब लिखकर हिन्दुत्व के बारे में अपनी धारणा स्पष्ट की. पांच मौलिक पुस्तकें लिखी. सेलुलर जेल में उन्होंने बबूल के कांटों और अपने नाखूनों से जेल की दीवारों पर छह हजार कविताएं लिखीं.

उन्हें कंठस्थ किया. हिन्दी को राष्ट्रभाषा और देवनागरी को राष्ट्रीय लिपि बनाने के लिए सावरकर 1906 से प्रयत्नशील थे. 11 जुलाई, 1911 को अंडमान पहुंचे.

29 अगस्त, 1911 को जेल से ही पहला माफीनामा लिखा- ‘‘अगर सरकार अपनी असीम भलमनसाहत और दयालुता में मुझे रिहा करती है, मैं यकीन दिलाता हूं कि मैं संविधानवादी विकास का सबसे कट्टर समर्थक रहूंगा, अंग्रेजी साम्राज्य का वफादार रहूंगा.‘‘

सावरकर पर नीलांजल मुखोपाध्याय ने ‘द आरएसएस आइकांस ऑफ द इंडियन राइट‘, आशुतोष देशमुख ने ‘ब्रेवहार्ट सावरकर‘ किताब लिखी. निरंजन तकले ने सावरकार पर शोध किया.

वीर सावरकर का माफीनामा उनकी रणनीति का हिस्सा

सावरकर का माफीनामा उनकी रणनीति का हिस्सा कहा जा सकता है. वह चतुर क्रांतिकारी थे, चाहते थे कि काम करने का जितना मौका मिले, लिया जाना चाहिए.

1920 में सरदार पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून न तोड़ने और विद्रोह न करने की शर्त पर उनकी रिहाई हुई.

पुणे के फर्ग्युसन कालेज में पढ़ाई के दौरान विदेशी वस्त्रों की होली उन्होंने तब जलाई थी, उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया. बाल गंगाधर तिलक के अनुमोदन पर 1906 में सावरकर को श्यामजी कृष्ण छात्रवृत्ति मिली थी.

क्यों किया गया वीर सावरकर के भाई को गिरफ्तार?

नासिक के जिला कलेक्टर जैक्सन की हत्या के आरोप में पहले सावरकर के भाई को गिरफ्तार किया गया, फिर आरोप लगा कि हत्या के लिए पिस्टल लंदन से दामोदर सावरकर ने भेजी थी. नतीजतन उनकी भी गिरफ्तारी हुई.

कालापानी के दौरान सेलुलर जेल में कोठरी नंबर 52 नसीब हुई, जिसका आकार 13.5 गुणा सात दशमलव पांच फीट था. 1958 में राजखोसला ने कालापानी फिल्म सावरकर पर बनाई, जिसे दो फिल्म फेयर पुरस्कार मिले.

1996 में मलयाली फिल्म निर्माता प्रियदर्शन ने कालापानी फिल्म बनाई, जिसमें हिन्दी अभिनेता अन्नू कपूर ने सावरकर का रोल किया. वर्ष 2001 में वेदराही और सुधीर फड़के ने वीर सावरकर पर एक बायोपिक बनाई. शैलेंद्र गौड़ इस फिल्म में सावरकर बने हैं.

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के सात साल अध्यक्ष रहे. इन्हीं के कार्यकाल में हिन्दू महासभा को राजनीतिक दल घोषित किया गया. 1959 में पुणे विश्वविद्यालय ने उन्हें डीलिट की उपाधि दी.

जेल से छूटने के बाद सावरकर ने कभी अंग्रेजों के लिए काम नहीं

जेल से छूटने के बाद सावरकर ने कभी अंग्रेजों के लिए काम नहीं किया. वह अस्पृश्यता के घोर विरोधी थे. रत्नागिरी में पतित पावन मंदिर बनवाया था. अक्टूबर 1906 में लंदन में इंडिया हाउस के कमरे में रात्रिभोज पर सावरकर की मुलाकात मोहनदास करमचंद गांधी से हुई थी.

गांधी उस समय भारतीयों के साथ हो रहे अन्याय के प्रति दुनिया का ध्यान आकृष्ट कराने लंदन आए थे. 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के पास सावरकर को भारत रत्न देने का प्रस्ताव भेजा था.

लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया. 26 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली.

ठीक दो दिन बाद सावरकर की 131वीं जयंती थी.

दामोदर सावरकर को यह मिल जाता है तो….

संसद भवन जाकर नरेंद्र मोदी ने उनके चित्र के सामने सर झुका श्रद्धांजलि दी. संसद में महात्मा गांधी और वीर सावरकर के चित्र इस तरह लगे हैं कि एक की तरफ मुंह करके खड़े होंगे तो दूसरी तरफ पीठ हो ही जाएगी.

यह मुद्रा और इसके व्याख्याकार कहते नहीं थकते हैं कि गांधी और सावरकर एक दूसरे के उलट हैं. गांधी और सावरकर के बीच चेहरे और पीठ का रिश्ता है.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या में भी सावरकर का नाम आया था हालांकि अदालत ने उन्हें बरी कर दिया.

इस हत्या की जांच पड़ताल के लिए बने आयोग ने सावरकर को दोषी तो नहीं ठहराया पर शक की सुई इस तरह उनके सामने लटका दी कि अपने जीवन के अंतिम दो दशक उन्हें अभिशाप और गुमनामी में गुजारने पड़े.

अब तक 48 लोगों को भारत रत्न मिला है. दामोदर सावरकर को यह मिल जाता है तो ऐसा कुछ न होगा जो पहले न हुआ हो.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.यह उनके निजी विचार हैं.)

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