विश्व बाल श्रम निषेध दिवस: बच्चों को मजदूरी नहीं, शिक्षा की जरूरत है
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हरीश कुमार
बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है. किसी भी देश के बच्चे अगर शिक्षित और स्वस्थ होंगे तो वह देश उन्नति और प्रगति करेगा. लेकिन अगर किसी समाज में बच्चे बचपन से ही किताबों को छोड़कर मजदूरी का काम करने लगें तो देश और समाज को आत्मचिंतन करने की ज़रूरत है. उसे इस सवाल का जवाब ढूंढने की ज़रूरत है कि आखिर बच्चे को कलम छोड़ कर मज़दूर क्यों बनना पड़ा? जब बच्चे से उसका बचपन, खेलकूद और शिक्षा का अधिकार छीनकर उसे मज़दूरी की भट्टी में झोंक दिया जाता है, उसे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से प्रताड़ित कर उसके बचपन को श्रमिक के रूप में बदल दिया जाता है तो यह बाल श्रम कहलाता है. हालांकि पूरी दुनिया के साथ साथ भारत में भी बाल श्रम पूर्ण रूप से गैरकानूनी घोषित है. संविधान के 24वें अनुच्छेद के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से कारखानों, होटलों, ढाबों या घरेलू नौकर इत्यादि के रूप में कार्य करवाना बाल श्रम के अंतर्गत आता है. अगर कोई ऐसा करते पाया जाता है तो उसके लिए उचित दंड का प्रावधान है. लेकिन इसके बावजूद समाज से इस प्रकार का शोषण समाप्त नहीं हुआ है.
इस संबंध में जम्मू कश्मीर समाज कल्याण विभाग के मिशन वात्सल्य की संरक्षण अधिकारी आरती चौधरी का कहना है कि विभाग इस संबंध में सक्रिय भूमिका निभा रहा है. कुछ माता पिता स्वयं मज़दूरी की जगह अपने बच्चों से भीख मंगवाने का काम करते हैं. पिछले कुछ दिनों में समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों ने जम्मू के मशहूर विक्रम चौक, गांधीनगर व अन्य भीड़भाड़ वाले इलाकों से ऐसे बच्चों को रेस्क्यू किया है. उन्हें बाल देखभाल संस्थानों में भर्ती कराया गया है, जहां पर उन्हें उचित पोषण, परामर्श और चिकित्सक देखभाल की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है. उन्होंने बताया कि बचाए गए ज्यादातर बच्चे राजस्थान के रहने वाले हैं. यानी बच्चों को बाहरी राज्यों से यहां लाकर भीख मंगवाई जा रही है. हालांकि ऐसे करने वालों पर अभी तक कोई कार्रवाई हुई है या नहीं? इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है.
वहीं जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती जिला पुंछ के मंगनाड गांव के समाजसेवी सुखचैन लाल कहते हैं कि इस गांव में अधिकतर लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. कुछ समय पहले यहां पर मां बाप अपने बच्चों को शहर के अमीर लोगों के घरों में कामकाज करने के लिए भेज देते थे. उनसे कहा जाता था कि उनके बच्चों को शिक्षा भी दिलवाएंगे. मां बाप इस लालच में आ जाते थे कि हमारा बच्चा काम के साथ साथ शिक्षा भी प्राप्त कर सकेगा. लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत होती थी. बच्चों से न केवल घरों का काम करवाया जाता था बल्कि उन्हें पढ़ने भी नहीं दिया जाता था. जिसके बाद गांव के कुछ लोगों ने मिलकर एक समाज सुधार कमेटी का गठन किया, जिसके तहत सबने मिलकर एक बैठक बुलाई और फैसला किया गया कि बच्चों के भविष्य के लिए उन्हें शहर नहीं भेजा जायेगा. हालांकि उन अभिभावकों ने इसका विरोध किया जिन्हें बच्चों की शिक्षा से अधिक उनकी कमाई से पैसे मिल रहे थे. लेकिन गांव वालों के सख्त रुख के बाद उन्हें भी झुकना पड़ा. वर्तमान में, इस गांव का कोई बच्चा बाल मज़दूर के रूप में शहर में काम नहीं करता है.
हालांकि अगर कोई भी किसी बच्चे से जोर जबरदस्ती से बाल श्रम करवाने की कोशिश करता है तो उसके विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. इसके लिए देश भर में 1098 चाइल्डलाइन टोल फ्री नंबर मौजूद है. जिस पर कॉल करके शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. जिसमें बाल श्रम अधिनियम 1986 के अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति अपने व्यवसाय के उद्देश्य से 14 वर्ष के कम आयु के बच्चे से कार्य करता है तो उस व्यक्ति को 2 साल की सजा और 50 रुपए का जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है. बहरहाल, देश के सभी क्षेत्रों में यदि इस प्रकार की सामाजिक जागरूकता हो तो बाल श्रम पर आसानी से काबू पाया जा सकता है.