OPINION : स्मार्टफोन में सोशल मीडिया और उस पर परोसा जाने वाला झूठ
अब हर वो शख्स जिसके पास एक स्मार्ट फोन (Smart Phone) है और वो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (Social Media) का यूज करना जानता है वो अपने आप में पत्रकार है.
वो उस समय का सत्य होता है, जहां उस वक्त तक पत्रकार या अखबार नहीं पहुंच पाता.
Social Media का संपादक खुद
वो अपनी फेसबुक टाइमलाइन और ट्वीटर की फीड का सम्पादक खुद होता है. उसकी ओर से प्रकाशित या प्रसारित की गई सामग्री पर उसका अपना अधिकार होता है और वो उसका किसी भी प्रकार से प्रयोग के लिए आजाद है.
हालांकि इन सबके दौर में इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि तमाम तरह के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (Social media Platforms) का यूज करने वाला शख्स किस तरह का कंटेंट अपनी फ्रेंडलिस्ट या फॉलोवर्स को दे.
आज के सोशल मीडिया वाले समय में जबकि सच और झूठ में अन्तर करना मुश्किल हो चला है ऐसे में जो भी सोशल मीडिया के जरिए सूचनाओं (information through social media)को प्रकाशित या प्रसारित कर रहा है, उसे भी सावधान होने की सख्त जरूरत है.
कुछ ना कुछ नया मिलता है
आज हम ऐसे समय में हैं जहां हर बार अपनी सोशल मीडिया फीड को रिफ्रेश करने पर कुछ ना कुछ नया मिलता है. कुछ सूचनाएं होती हैं जो अमूमन हर जगह मौजूद होती हैं. कुछ समसामयिक घटनाओं पर लिखे गए विश्लेषण होते हैं तो कुछ तमाम विषयों से इतर जानकारियां होती हैं.
यहां एक उदाहरण के जरिए समझें कि भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद परेश रावल (Ex Mp paresh rawal)ने 3 जुलाई 2017 को देश के पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत एपीजे अब्दुल कलाम (apj abdul kalam )की फोटो लगी हुई एक तस्वीर ट्वीट की.
तस्वीर पर लिखा था कि ‘मुझे पाकिस्तान (Pakistan) ने अपने तरफ मिलाने की हर संभव कोशिश की. मुझे देश का हवाला दिया गया. मुझे इस्लाम का हवाला दिया गया. मुझे कुरान का हवाला दिया गया लेकिन मैंने अपनी मातृभूमि से गद्दारी नहीं की क्योंकि कर्तव्य से हटना मेरे धर्म की और देश दोनों के लिए एक बदनामी की बात होती- डॉ. अब्दुल कलाम.’
अपने इस ट्वीट के इंट्रो में रावल ने लिखा था- ‘यह सख्त रूप से छद्म उदारवादियों के लिए है.’
फिर रावल ने जो कहा-
हालांकि रावल ने जो ट्वीट किया था वो पूरी तरह से फर्जी (fake tweet)था. खुद रावल ने उनके ट्वीट के रिप्लाई में लिखे गए एक जवाब पर कहा था कि ‘मैं यह नहीं जानता की यह फर्जी है. किसी ने दोबारा इसकी जांच नहीं कि लेकिन यह मिस्टर कलाम की वजह से सच लगता है.’
अब आप खुद अंदाजा लगाइए कि अगर सूचना विस्फोट के इस समय में एक सांसद अगर फर्जीवाड़े से अछूता नहीं है तो हम आप लोग जिनके पास सूचनाओं को पुष्ट करने का उचित रास्ता तक नहीं है वो ऐसी सूचनाओं से कैसे पार पाते होंगे?
अब इसी परिप्रेक्ष्य में पत्रकारिता (journalism thorugh social media)की बात करते हैं.
journalism through social media
बीते दिनों एक व्यंग्य प्रकाशित करने वाली वेबसाइट ने लिखा कि ‘पाकिस्तान (Pakistan) की एक मस्जिद में नमाज अदा करने के दौरान पादने पर एक शख्स को फांसी दे दी गई.’
उस वेबसाइट की खबर के आधार पर मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर तमाम फर्जी खबरें चलाई. बाद में जब यह पता चला कि वो वेबसाइट सिर्फ और सिर्फ व्यंग्य प्रकाशित करती है तो सबने वो स्टोरी अपने बेव पेज से तो हटाई लेकिन उसका एक अदद खंडन तक नहीं किया.
इतना ही नहीं कई ऐसी वेबसाइट्स जो संप्रदायों के बीच द्वेष फैला ने का काम करती हैं, उन पर अभी तक ये स्टोरी लगी हुई है.
whatsapp university का ज्ञान
व्हाट्सएप विश्वविद्यालय (whatsapp university) से पढ़कर लोग इन दिनों अपना ज्ञान बढ़ा रहे हैं. लोग यह नहीं सोचते कि उनके पास जो जानकारी आई है वो सही है या गलत. वो इसकी जांच भी नहीं करते, सिर्फ फॉर्वर्ड करते हैं.
हम एक समय में है जहां हमारे पर खबरों की सत्यता को सुनिश्चित होने का समय नहीं है.
हर कोई संभावना और आशंका के आधार पर खबरों को ब्रेक कर रहा है.
खबरों को ब्रेक करने के दौर में वो भूल जाता है कि उसकी ओर से एक गलत ब्रेक, कितनों जिंदगी में ‘ब्रेक’ लगा देगा और कितनों की जिंदगी ‘ब्रेक’ हो जाएगी.
सूचना विस्फोट के इस समय में जरूरी है कि पत्रकारिता खुद को संयमित रखे.
हमें यह नहीं भूलना चाहिए….
बेशक हम बाजारवाद की पत्रकारिता का हिस्सा हैं लेकिन इस दौर में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम बहुतों की जिंदगी का विश्वास साथ लेकर चल रहे हैं.
कई साल पहले एक खबर आई, जो देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी जीवन पर आधारित थी.
एक किसी वेबसाइट ने उसे प्रकाशित की और सब उसे शेयर पोस्ट करने लगे. हालांकि उसका खंडन बीबीसी और फर्स्टपोस्ट जैसी विश्वसनीय वेबसाइट्स पर आया लेकिन उस ओर किसी का ध्यान तक नहीं गया.
कहा जाता है कि आप कोई झूठ जितने विश्वास से कहेंगे वो उतना ही पक्का सच माना जाएगा. सोशल मीडिया भी इसी का एक हिस्सा है.
हर दल का अपना आईटी सेल (Political it cell)है. वो कहां से क्या शेयर कराते हैं. उनकी जानकारी का स्रोत क्या है किसी को कुछ पता नहीं बस शेयर करना है.
हम आप भी किसी खास विचारधारा को मानने वाले होते हैं और उसे तुरंत शेयर कर देते हैं. बेहतर हो कि हम अपनी वॉल पर जो कुछ भी शेयर कर रहे हैं. जो भी खबर प्रकाशित या प्रसारित कर रहे हैं उसे एक बार जरूर चेक करें.
बेहतर हो कि…
जरूरी यह भी कि जिस तरह से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय टीवी और अखबारों के लिए नियमावाली लाता है. उनका रजिस्ट्रेशन आरएनआई के तहत करता है.कुछ ऐसा ही वेबसाइट्स के साथ भी करना चाहिए.
ताकि जनता को सूचना विस्फोट के इस समय में वास्तविक पत्रकारिता की अनुभूति हो सके.
बेहतर हो कि सूचना के विस्फोट के इस समय में हम अपने पास से प्रसारित या प्रकाशित हो रही सूचनाओं की अपने स्तर से जांच करें.
जांच करने पर भी अगर पुष्टि ना हो सके तो उससे प्रसारित या प्रकाशित करने से बचे ताकि समाज समस्याओं की फर्जी सूचनाओं की गटर बनने की जगह बेहतर सुझावों और समाधानों का गुलदस्ता बन सके.
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