OPINION : कश्मीर पर पाकिस्तान की बढ़ती बौखलाहट

जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) से अनुच्छेद 370 (Article 370) हटाए जाने के बाद से पाकिस्तान की बौखलाहट बढ़ती जा रही है.
पाकिस्तान नित नये पैंतरों के साथ इस मुद्दे पर भारत को घेरने और बदनाम करने की कोशिशों में जुटा है. हालांकि भारत की कूटनीति और विदेश नीति के चलते उसे हर जगह से टका सा जवाब मिल रहा है.
बावजूद इसके पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. वास्तव में पाकिस्तान चाहता है कि कश्मीर में अशांति बनी रहे. वो हर हाल में कश्मीर के मुद्दे को जिंदा रखना चाहता है.
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Article 370 का मुद्दा पाक में UN में उठाया
चीन (China) की मदद से चुपके से पाकिस्तान ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाया.
लेकिन वहां भी उसे मुंह की खानी पड़ी. सवाल यह है कि आखिर यह कब तक साबित करते रहना पड़ेगा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लिहाजा उससे जुड़े फैसले भी आंतरिक मामले हैं?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अनौपचारिक विमर्श, बंद कमरे में, का निष्कर्ष भी यही है. हालांकि इस विमर्श की न तो ब्रीफिंग की जाती है, न प्रसारण किया जाता है और न ही पत्रकार कवर कर सकते हैं.
इस विमर्श का कोई रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता है. लिहाजा जो राजनयिकों ने बयान दिए हैं या चीन-पाकिस्तान के राजदूतों की टिप्पणियों से स्पष्ट है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि सुरक्षा परिषद में जाने की न तो चीनी कूटनीति कामयाब रही और न ही पाकिस्तान को कोई समर्थन मिला.
संविधान के तहत खत्म किया गया Article 370
अनुच्छेद 370 को संविधान के तहत ही, संसद के जरिए, समाप्त किया गया है. बहरहाल सुरक्षा परिषद के इस अनौपचारिक विमर्श ने तय कर दिया है कि अब संयुक्त राष्ट्र जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेगा.
विमर्श के दौरान भी अमरीका, रूस, फ्रांस समेत ज्यादातर देशों ने इसे द्विपक्षीय मामला करार दिया और शिमला समझौते के तहत इस पर बातचीत करने की सलाह दी.
चीन चाहता था कि विमर्श के बाद सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष-राष्ट्र पोलैंड कोई बयान जारी करे. चीन की इस कूटनीति को ब्रिटेन का भी समर्थन था, लेकिन पोलैंड ने साफ इंकार कर दिया.
बल्कि संयुक्त राष्ट्र ने चीन और पाकिस्तान को आईना दिखाया. कश्मीर के मुद्दे पर दखल देने की चीन की जो भी मंशा रही हो, लेकिन वह पाकिस्तान की किरकिरी नहीं रोक पाया.
Jammu kashmir पर क्या चाहता था China?
दरअसल चीन जम्मू-कश्मीर के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करना चाहता था और संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के मुताबिक उसके समाधान का पक्षधर था. वह कूटनीति भी नाकाम रही.
पाकिस्तान के आका अमरीका ने भी भारत का समर्थन किया. पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान के फोन करने पर भी अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टंप ने नसीहत दी कि भारत के साथ द्विपक्षीय बातचीत शुरू की जाए और मौजूदा तनाव को घटाएं.
उसके बावजूद इमरान लगातार युद्ध की भाषा बोलते रहे हैं. उनका दावा है कि उनकी फौज जंग के लिए तैयार है. उनके हिसाब से फौज ही नहीं सारी कौम जंग के लिए तैयार है.
Article 370 हटाना भारत का आंतरिक मामला
भारत अपने एक राज्य के प्रशासन को लेकर क्या फैसला करता है, यह उसका आंतरिक मामला है. इस पर पाकिस्तान की इतनी तीखी प्रतिक्रिया समझ से परे है.
पाक अधिकृत कश्मीर में वह किस तरह से शासन चला रहा है, इस पर भारत कहां कुछ कहता है? जब-तब वहां जारी आतंकी गतिविधियों की निंदा जरूर की जाती है, जो खुद पाकिस्तान के लिए भी कुछ कम सिरदर्दी नहीं है.
Pakistan के कदम आत्मघाती
पाकिस्तान की तरफ से राजनयिक और व्यापारिक संबधों पर उठाए गए उसके कदम आत्मघाती होंगे.
पाकिस्तान ने भारत के उच्चायुक्त को इस्लामाबाद से निष्कासित कर दिया, सभी व्यापारिक संबध को बंद कर दिया, यहां तक कि दो देशों के लोगों को जोड़ने के प्रतीक समझौता एक्सप्रैस को भी रोक दिया.
कश्मीर के लोगों के समर्थन में 15 अगस्त को काले दिन के तौर पर मनाने बेहद नासमझी भरा कदम था.
पाकिस्तान के इस कदम से भारत पाकिस्तान के राजनयिक संबधों को फिर कायम करने में लंबा समय लग सकता है.
अभी जो कदम पाकिस्तान ने खीझ में उठाए हैं, वे उसके लिए भी घातक हैं. भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार संबंधों को निलंबित करने का ज्यादा नुकसान उसी को हो रहा है. कारण यह कि पाकिस्तान कई जरूरी चीजों का आयात भारत से करता है.
Pulwama हमले के बाद से ही तनाव
पुलवामा आतंकी हमले के बाद व्यापार संबंधों में तनाव के चलते भारत से पाकिस्तान को होने वाले निर्यात में पहले ही कमी आई हुई है.
इस मामले में भारत उस पर ज्यादा निर्भर नहीं है. इसी तरह हवाई क्षेत्र के कुछ कॉरिडोर को बंद करने से उड़ानों को 12 मिनट का अतिरिक्त समय लगेगा. इससे भारत को कितना नुकसान होगा?
इमरान ट्विटर पर बेलगाम लगते रहे हैं, क्योंकि उन्होंने हमारे प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘फासीवादी’ शब्द का इस्तेमाल किया है और सबक सिखाने की धमकी दी है.
आखिर पाकिस्तान की फितरत क्या है और वह कितनी पटखनियां खाना चाहता है?
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने पाकिस्तानी पत्रकारों के ही सवालों के जवाब में साफ कहा है-‘आतंकवाद रोकिए और बातचीत शुरू कीजिए.’
भारतीय राजनयिक ने एक बार फिर दोहराया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है. किसी बाहरी का उससे कोई लेना-देना नहीं है.
भारत का अभिन्न अंग जम्मू और कश्मीर
दरअसल जब जम्मू-कश्मीर भारतीय गणराज्य का संवैधानिक, अविभाज्य हिस्सा है, तो उस पर पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत भी क्यों की जाए? कश्मीर विवादास्पद मुद्दा नहीं है.
जो कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे में है, वहां उसके आतंकियों की मदद के लिए एक बड़ा संचार केंद्र विकसित किया गया है. उसके जरिए 60 किलोमीटर के दायरे में बातचीत की जा सकती है.
आतंकियों की घुसपैठ सीमा पार से कराने की कोशिशें और साजिशें लगातार जारी हैं. ये पाकिस्तान की तरफ से छद्म-युद्ध के स्पष्ट संकेत हैं. संघर्ष विराम का उल्लंघन भी किया जा रहा है.
पाक कर रहा गोलीबारी
बीते दो दिनों में भारी गोलाबारी हुई है, रिहायशी इलाकों को निशाना बनाया गया है. पलटवार में हमारे सैनिकों ने भी पाकिस्तान की चैकियां तबाह की हैं, उनके कुछ फौजियों के मरने की भी खबरें हैं, लेकिन हमारा भी एक सैनिक ‘शहीद’ हुआ है.
क्या इस तरह पाकिस्तान के साथ कोई दोतरफा संवाद संभव है? बहरहाल हमारे कश्मीर के हालात सामान्य होते जा रहे हैं. जम्मू तो लगभग सामान्य है, लेकिन कश्मीर घाटी में अभी पाबंदियां जारी रहेंगी.
वहां सचेत निगाह रखना भी जरूरी है, क्योंकि पाकिस्तान पूरी तरह हमलावर मुद्रा में है. एक सलाह उन ‘काली भेड़ों’ के लिए है, जो भारतीय हैं, लेकिन चीन-पाकिस्तान की कूटनीति की प्रशंसा करते हैं, वे कमोबेश ऐसे संवेदनशील मामलों में तो एक सुर में बोलना सीख लें.
भारत आज दुनिया में एक बड़ी आर्थिक शक्ति है. किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत पाकिस्तान को जवाब देने में पूरी तरह से सक्षम है. यह भारत एक से ज्यादा बार साबित कर चुका है.
पाकिस्तान को अगर लगता है कि वो जम्मू-कश्मीर को एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना सकता है, तो यह समझ बिल्कुल गलत है. राजनयिक मामलों में दुनिया में और खासतौर से पश्चिम के देशों में भारत का बड़ा कद है.
-डा. श्रीनाथ सहाय. लेखक उत्तर प्रदेश राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं. यह उनके निजी विचार हैं.
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