OPINION: गौ मूत्र को लेकर स्पष्ट हो शासकीय स्थिति

OPINION: गौ मूत्र को लेकर स्पष्ट हो शासकीय स्थिति
Pragya Thakur

निर्मल रानी
पूरा देश इस समय कोरोना वायरस से भयग्रस्त है. सरकार द्वारा जारी अधिकृत आंकड़ों के ही अनुसार प्रतिदिन लगभग चार हज़ार बदनसीब देशवासी कोरोना महामारी का शिकार हो रहे हैं. जबकि निष्पक्ष पत्रकारिता मौतों के आंकड़े इससे कई गुना ज़्यादा बता रही है. भारत सहित पूरे विश्व के वैज्ञानिक व डॉक्टर्स दिन रात इस बेक़ाबू होती महामारी पर क़ाबू पाने के लिये जी जान से परिश्रम कर रहे हैं. गत एक वर्षों के दौरान की गयी वैज्ञानिक शोध व अध्य्यन का ही नतीजा है कि भारत व दुनिया के और भी कई देशों ने इससे बचाव लिए वैक्सीन तथा कई दवाइयां भी तैयार कर ली हैं. आज दुनिया में जहां भी कोरोना पर नियंत्रण का दावा किया जा रहा है उसका आधार यही विश्व मान्य वैक्सीन व दवाएं हैं.

परन्तु हमारे देश में ‘ जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा भारत पाक युद्ध के दौरान 1965 में दिया था. परन्तु पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद ‘जय जवान, जय किसान’ के साथ ‘जय विज्ञान’ शब्द जोड़ कर इस नारे का और विस्तार किया. उसके बाद 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विज्ञान के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि मेरी तरफ़ से ‘जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान’ के साथ साथ ‘जय अनुसंधान’ शब्द भी जोड़ा जाए. और अब यह नारा ‘जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान-जय अनुसंधान, बन चुका है. स्वर्गीय वाजपेई जी व वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही नेता इत्तेफ़ाक़ से दक्षिणपंथी विचारधारा के ज़रूर थे परन्तु उनके द्वारा ‘जय जवान-जय किसान के साथ जय विज्ञान व जय अनुसंधान जैसे भारी भरकम शब्दों का परिवर्धन करने के बाद यह विश्वास होने लगा था कि भारतवर्ष अब सैनिकों के शौर्य व क़ुर्बानियों से सुरक्षित व मात्र एक कृषि प्रधान देश ही नहीं रहेगा बल्कि अब यह विज्ञान,वैज्ञानिक सोच तथा वैज्ञानिक शोध जैसे क्षेत्रों में भी अपने क़दम आगे बढ़ाएगा. मेक इन इंडिया,आत्मनिर्भर भारत जैसे लोकलुभावन शब्दों के ज़बरदस्त प्रचार से भी कुछ ऐसा ही प्रतीत होने लगा था. इसरो की अंतरिक्ष में परवाज़ की कोशिशों से भी यही महसूस हो रहा था. कोरोना काल में भारतीय लैब सीरम में निर्मित वैक्सीन ने भी यह साबित किया कि कोविड वैक्सीन बनाने वाले चंद देशों में भारत भी शामिल है. डी आर डी ओ के वैज्ञानिकों ने भी अपनी योग्यता का परिचय देते हुए कोरोना वायरस की दवा बनाई और जय अनुसंधान की दिशा में देश के क़दम आगे बढ़ाए.

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परन्तु हमारे इन्हीं वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं की मेहनत पर उस समय पानी फिर जाता है जब बिना किसी वैज्ञानिक शोध व प्रमाण के देश के कुछ ज़िम्मेदार लोग विशेषकर जनप्रितिनिधि यह कहने लगते हैं कि गाय का पेशाब पीने से कोरोना नहीं होता. जो जनप्रितिनिधि लाखों मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता हो,जिसको लाखों लोग अपना प्रेरणास्रोत समझते हों ,इतना ही नहीं बल्कि साध्वी रूप में रहते हुए भगवा वस्त्र धारण कर अपने चुनाव क्षेत्र के बाहर भी अपने लाखों अनुयायी बनाए हों,ऐसे व्यक्ति के मुंह से बार बार गौमूत्र का बखान किया जाना और इसे कोरोना को रोकने के लिए लाभदायक बताना आश्चर्य का विषय है. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से भारतीय जनता पार्टी की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने आम लोगों से एक बार फिर यह अपील की है कि वे गोमूत्र का सेवन करें. उन्होंने कहा कि गाय के पेशाब का अर्क़ पीने से फेंफड़ों का संक्रमण दूर होता है.उन्होंने यह भी दावा किया कि चूंकि वह स्वयं गोमूत्र लेती हैं इसीलिए उन्हें दवा नहीं लेनी पड़ती है और आज तक उनको कोरोना भी नहीं हुआ. उनके अनुसार गौमूत्र एक ऐसे क़िस्म का एसिड है जो शरीर को शुद्ध करता है. यह फेफड़ों को भी शुद्ध करता है और कोविड-19 संक्रमण से भी बचाता है. उन्होंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ यह कहा कि ‘न ही मैं कोरोनाग्रस्त हूं, ना ही ईश्वर मुझे (संक्रमित) करेगा. क्योंकि मैं उस औषधि (गोमूत्र अर्क) का उपयोग कर रही हूं.’ उन्होंने यह प्रवचन उस समय दिया जबकि वे कोरोना मरीज़ों के लिए ऑक्सीजन की कमी का सामना कर रहे भोपाल के डॉ हेडगेवार अस्पताल को 25 ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर दान करने पहुंची थीं. इसके पहले भी वे कई बार यह दावा भी कर चुकी हैं कि गोमूत्र का सेवन करने से से कैंसर जैसी बीमारी भी ठीक हो सकती है. जबकि वास्तविकता तो यह है कि गत दिसंबर व फ़रवरी में सीने में जकड़न व सांस लेने में समस्या आने पर प्रज्ञा सिंह ठाकुर को ही अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संसथान में दाख़िल कराया गया था. कुछ दिन पहले सांसद प्रज्ञा ठाकुर के पूरे स्टाफ़ के ही कोरोना संक्रमित होने का समाचार भी आया था.

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परन्तु दूसरी ओर ‘जय विज्ञान-जय अनुसंधान’ से संबंधित वर्ग इस तरह के गौमूत्र सेवन के दावों को न केवल निराधार बताता है बल्कि इस तरह की इलाज की पद्धतियों से बचने की भी सलाह देता है. हमारे देश के क़ाबिल डॉक्टर्स भी गोमूत्र का सेवन करने से मना करते हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के डॉ. जे ए जयालाल का साफ़ मत है कि चिकित्सा विज्ञान में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, जिसके आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके कि गोमूत्र या गोबर, कोरोना वायरस की रोकथाम करने अथवा इसके इलाज में किसी भी तरह से सहायक है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ रंजन शर्मा ने तो नेताओं के ऐसे बयानों से दुःखी होकर यहां तक कहा कि कम से कम अब इन नेताओं को अवैज्ञानिक उपचारों की सिफ़ारिश करना बिल्कुल बंद कर देना चाहिए. संभवतः ऐसे ही नेताओं की ग़ैर ज़िम्मेदाराना बयानबाज़ियों के चलते ही कि हमारे देश के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कोरोना महामारी की दूसरी लहर के मध्य यह कड़ी चेतावनी भी दी थी कि अवैज्ञानिक दावों को क़तई प्रसारित न किया जाए. परन्तु जब एक साध्वी और सांसद इस तरह का ग़ैर वैज्ञानिक दावा सार्वजनिक रूप से करेंगी तो देश का मीडिया निश्चित रूप से अपनी भूमिका ज़रूर अदा करेगा.

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अभी तक किसी भी डॉक्टर्स एसोसिएशन या वैज्ञानिक संगठन ने चूँकि कोरोना हेतु गौमूत्र उपयोगिता या इसके लाभप्रद होने का कोई प्रमाण पत्र या मान्यता नहीं दी है बल्कि इसके लिए भरसक मना है परन्तु उसके बावजूद इस तरह की अवैज्ञानिक रट लगाए रखना, दूसरी ओर उनकी पार्टी के नेताओं व प्रधान मंत्री व स्वस्थ मंत्री जैसे ज़िम्मेदार लोगों का प्रज्ञा ठाकुर के इस प्रकार के निराधार दावों का प्रसार करने से न रोकना देश के आम लोगों में संदेह की स्थिति पैदा करता है. लिहाज़ा अब भारत सरकार को ‘जय विज्ञान-जय अनुसंधान’ के आधार पर ही शासकीय स्तर पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए कि वास्तव में गौमूत्र कोरोना रोधी व साथ साथ कैंसर रोधी है अथवा नहीं. और यदि नहीं है तो ऐसे नेताओं पर देश की सीधी-सधी शरीफ़ जनता को गुमराह करने तथा कोरोना के इलाज में बाधा डालने के आरोप में मुक़द्द्मा चलाया जाना चाहिए. जय विज्ञान-जय अनुसंधान’ का अर्थ विज्ञानं अनुसन्धान की विजय और अन्धविश्वास,पाखंड,अशिक्षा की पराजय होना चाहिए. (यह लेखक के निजी विचार हैं.)

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