OPINION: मिर्जापुर मिड डे मील- क्या वाकई गलती पत्रकार पवन की है?

OPINION: मिर्जापुर मिड डे मील- क्या वाकई गलती पत्रकार पवन की है?
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सोशल मीडिया (Social Media) अब खबरों का बड़ा बाजार बन गया है. मुख्य धारा की मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया पर अब समाज की खबरें हमारे सामने आ रही हैं.

कई बार तो मुख्यधारा की मीडिया के लिए खबर भी यही सोशल मीडिया लाता है. सोशल मीडिया पर एक्टिव पत्रकार समाज की समस्याओं को लोगों के सामने रखते हैं और उस पर खबरें बनती हैं.

सोशल मीडिया के साथ स्थानीय पत्रकारिता ने भी मजबूती के नए आयाम तय किये हैं. इसी आयाम का क्रूर प्रशासनिक नतीजा बीते दिनों हमारे सामने आया.

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बीते दिनों उत्तर प्रदेश  (Uttar Pradesh )स्थित मिर्जापुर (mirzapur)में जो हुआ वह अचरज में डालने वाला भी है और परेशान करने वाला भी.

फंसाए गए Mirzapur के पत्रकार

पत्रकार पवन जयसवाल (Pawan jaisawal mirzapur) ने एक प्राथमिक स्कूल में मिड-डे मील के दौरान छात्र-छात्राओं को नमक और रोटी खाते हुए देखा तो उसकी तस्वीर खींची और वीडियो भी बनाया.

उसी दिन यह खबर राष्ट्रीय मीडिया के हिस्से तक पहुंच गई और खूब चर्चा में रही. लोगों ने प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली योगी आदित्यनाथ की सरकार पर खूब हमले शुरू कर दिए.

मिर्जापुर प्रशासन  (mirzapur administration) ने मामले में जांच का आश्वासन दिया. जांच हुई तो उसमें पत्रकार पर ही प्राथमिकी दर्ज करा दी.

अब उस प्राथमिकी को सही साबित करने के लिए अलग-अलग तर्क दिए जाने लगे. उन पर आरोप लगाया कि गया कि उन्होंने साजिशन यह किया और प्रशासन को बदनाम करने की कोशिश की.

मानवाधिकार आयोग ने जारी किया नोटिस

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भी वीडियो सामने आने के बाद यूपी सरकार को नोटिस जारी किया और राज्य भर में मध्यान्ह भोजन कार्यक्रमों की स्थिति के बारे में विवरण मांगा.

जारी किए गए बयान में कहा गया है कि ‘मीडिया रिपोर्टों की सामग्री चौंकाने वाली और शर्मनाक है कि सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन योजना के बावजूद, उन्हें पौष्टिक भोजन नहीं मिल रहा है’

मिर्जापुर के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (SP- mirzapur) अवधेश कुमार पाण्डेय ने समाचार एजेंसी बीबीसी से कहा कि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की ओर से मामले में जांच कराए जाने के बाद पवन जयसवाल समेत तीन अन्य लोगों पर मुकदमा दर्ज कराया गया है इसके साथ ही मामले में एक शख्स को हिरासत में लिया गया है.

ये कहा DM mirzapur अनुराग पटेल ने

इन सबके बीच मिर्जापुर (DM mirzapur)के माननीय जिलाधिकारी अनुराग पटेल का एक वीडियो सामने आया. उसमें वह कह रहे हैं कि ‘प्रिंट मीडिया के पत्रकार हैं, फोटो खींचे… वीडियो क्यों बनाया?’ डीएम अनुराग पटेल के अनुसार,  ‘जायसवाल एक ‘षड्यंत्र’ का हिस्सा थे.  खबर ऐसे नहीं की जाती है. यदि वह एक प्रिंट पत्रकार हैं, तो उन्हें एक तस्वीर लेनी चाहिए और एक कहानी प्रकाशित करनी चाहिए. लेकिन वह एक वीडियो रिकॉर्ड कर रहे थे और लोगों से कह रहे थे कि वे वीडियो का हिस्सा बनें. इसलिए हमें लगता है कि वह भी साजिश का हिस्सा हैं.’

इससे पहले, पटेल ने दावा किया था कि एक जांच के बाद, उन्होंने पाया था कि जायसवाल की रिपोर्ट सच थी और स्कूल के प्रभारी अध्यापक को पूछताछ में निलंबित करने की बात कही गई थी.

उन्होंने यह भी दावा किया था कि बच्चों को पहले भी  चावल और नमक परोसा गया है.

अब, पटेल ने अपनी टिप्पणी की व्याख्या करते हुए कहा, “खिचड़ी में आप नमक और चावल मिलाते हैं, नहीं? दाल  भी डाली जाती है. इसलिए खिचड़ी में आप नमक, चावल और दाल डालते हैं.’

क्या बोले डिप्टी सीएम

उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने जायसवाल के खिलाफ  जिला प्रशासन के कदम का समर्थन किया है.

उन्होंने कहा ‘जो भी रिपोर्ट आती है, अगर कोई सरकार को बदनाम करने की कोशिश करता है, तो कार्रवाई होगी, लेकिन अगर कोई निर्दोष है, तो उस व्यक्ति के खिलाफ कुछ भी नहीं किया जाएगा.’

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्रकार के समर्थन में एक बयान जारी किया है.

गिल्ड ने जिला प्रशासन की कार्रवाई की निंदा करते हुए पवन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने को ‘मैसेंजर की शूटिंग का क्लासिक मामला’ कहा है.

आखिर पत्रकार ही निशाना क्यों?

इन सबके बाद अब यह समझ के परे है कि आखिर तमाम पत्रकारिता दिवसों पर अतिथि बन कर या अखबार में संदेश छपवाते हुए पत्रकारों के काम की सदैव प्रशंसा करने वाले अफसर जब फंसते हैं तो क्यों पत्रकार को ही निशाना बना देते हैं? आखिर कैसे कोई पत्रकार अगली बार किसी मिड डे मील में गड़बड़ी की खबर लाएगा… क्या पता उसे भी खुद पर मुकदमा दर्ज होने का भय हो…

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब किसी खबर पर अपनी गर्दन बचाने के लिए प्रशासन ने पत्रकार पर निशाना साध दिया हो. बेहतर हो कि प्रशासन अपनी गलती माने, पत्रकार नाम का प्राथमिकी से हटाया जाए और उन्हें काम करने के लिए खुला माहौल दिया जाए.

सिर्फ राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर या हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर लेक्चर देने से तो पत्रकारित सहज, सुलभ और शानदार काम नहीं ही कर पाएगी न?

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