राज ठाकरे के वर्तमान तेवर के मायने

राज ठाकरे के वर्तमान तेवर के मायने
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अवधेश कुमार 
राज ठाकरे अचानक पूरे देश में कई दिनों तक चर्चा के विषय रहेंगे और उनके साथ भारी संख्या में जनशक्ति दिखाई देगी इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी. लंबे समय से ऐसा लग रहा था जैसे राज ठाकरे राजनीति में सक्रिय है ही नहीं. उन्होंने मस्जिदों में लाउडस्पीकर से अजान रोकने और अवैध लाउडस्पीकर हटाने की मांग कर घोषणा कर दी कि अगर 3 मई तक नहीं हुआ तो वे दोगुनी आवाज में जगह-जगह हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे. यह ऐसी चेतावनी थी जिससे पूरे महाराष्ट्र में सनसनी पैदा हो गई और लगा जैसे कोई बड़ा तनाव पैदा होने वाला है. महाराष्ट्र में अब अवैध लाउडस्पीकर हट रहे हैं या जो हैं उनकी आवाज कम की जा रहीं हैं. तो यह मानना पड़ेगा कि अगर राज ठाकरे ने आवाज नहीं उठाई होती, औरंगाबाद में उनकी भारी भीड़ वाली सभा नहीं होती तो ऐसा नहीं हो पाता. हालांकि अपनी पत्रकार वार्ता में उन्होंने अपने तेवर को थोड़ा मध्दिम किया एवं कहा कि यह सतत् चलने वाला आंदोलन है. इसे उन्होंने धार्मिक की बजाय सामाजिक विषय भी बताया.  

निश्चय ही इससे महाराष्ट्र में भविष्य के तनाव की आशंकाएं थोड़ी कम हुई है. लेकिन यह नहीं मानना चाहिए कि मुद्दा खत्म हो गया या राज ठाकरे फिर लंबे समय के लिए घर में बंद हो जाएंगे. महाराष्ट्र की राजनीतिक परिस्थितियों पर नजर रखने वाले बता सकते हैं कि वे लंबे समय तक सक्रिय होने की योजना से बाहर निकले हैं. शरद पवार की अगुवाई में महाविकास अघाडी की बैठक के बाद उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने कहा कि जो भी कानून हाथ में लेगा उसके खिलाफ कार्रवाई होगी. प्रश्न यही है कि कार्रवाई पहले क्यों नहीं हुई? सांसद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा को केवल मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने की चुनौती पर राजद्रोह लगाकर गिरफ्तार करने वाला महाराष्ट्र प्रशासन राज ठाकरे के संदर्भ में कुछ न कर सका तो आगे वे कोई कठोर कदम उठा पाते इसकी संभावना न के बराबर थी. वास्तव में शिवसेना राज ठाकरे के विरुद्ध कार्रवाई करके उनको हिंदुत्व का हीरो बनने नहीं देना चाहती थी. ऐसा होने से शिवसेना के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा राज के साथ जा सकता है. राज ठाकरे बनाम शिवसेना की यह लड़ाई 2006 से ही आरंभ हुई. अभी तक शिवसेना उसमें  जीत रही है. लेकिन महा विकास आघाडी में आने के बाद शिवसेना की चाल और चरित्र में जो अंतर आया है उसके बाद कई प्रकार की संभावनाएं खड़ी हुई है. शिवसेना के सरकार में आने के बाद अपने ज्यादातर मुद्दों पर पहले के विपरीत रवैया रहा है. वह हिंदुत्व आधारित वोट बैंक को बनाए रखना चाहती है तो दूसरी ओरदोनों साझेदारों के साथ नए समर्थकों को संदेश देना चाहती है कि सेकुलरिज्म के नाम पर उसकी निष्ठा अटूट है. उसे गठबंधन में राजनीति करनी है तो सेक्यूलरवाद के प्रति आक्रामक निष्ठा प्रदर्शित करते रहनी होगी. इसमें खतरा यह है कि धीरे-धीरे हिंदुत्व विचारधारा के आधार पर खड़ा समर्थन कमजोर हो सकता है. हिंदुत्व के कारण शिवसेना से जुड़े लोगों के बड़े समूह में यह विचार प्रबल होने लगा है कि क्या यह वही पार्टी है? जब तक सत्ता है बहुत सारे लोग समर्थन करेंगे लेकिन सत्ता जाने के बाद विचारधारा वाले समर्थक साथ छोड़ सकते हैं. उनके लिए महाराष्ट्र में दो ही विकल्प होंगे, भाजपा या राज ठाकरे की मनसे.

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इसलिए राज ठाकरे ने उपयुक्त समय जानकर चोट किया और संभव है भाजपा ने उन्हें प्रोत्साहित किया हो. राज ठाकरे ने यह संदेश दे दिया है कि शिवसेना हिंदुत्व आधारित पार्टी नहीं रही क्योंकि 3 मई यानी रमजान पूरा होने तक उसने मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर को मुंबई उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय के आदेशों के अनुसार नियमित करने का साहस नहीं दिखाया. राज ठाकरे यही साबित करना चाहते थे कि मुसलमानों के समक्ष शिवसेना भी उसी ढंग से नतमस्तक है जैसी बाकी तथाकथित सेकुलर पार्टियां. 3 मई के बाद कुछ हो जाए वह मायने नहीं रखता.  प्रश्न है कि आगे क्या होगा? राज ठाकरे का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? क्या भाजपा शिवसेना से अलग होने के बाद राज ठाकरे को इतना सशक्त करना चाहती है ताकि उनके साथ राजनीतिक साझेदारी होने का लाभ मिल सके और शिवसेना कमजोर हो जाए?

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इन सारे प्रश्नों का उत्तर भविष्य के गर्भ में है. किंतु महाराष्ट्र की राजनीति में बदलाव होगा इससे इनकार नहीं किया जा सकता. राज ठाकरे के साथ उमड़ा जनसमूह इस बात का प्रमाण है कि उनके लिए अभी संभावनाएं मौजूद है. बाला साहब ठाकरे द्वारा उद्धव ठाकरे को उत्तराधिकारी बनाने के कारण विभेद पैदा हुआ और 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना का त्याग कर दिया. उन्होंने मार्च 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना या मनसे का गठन किया. लेकिन उन्होंने अपने झंडे में चार ऐसे रंग दिखाएं जिससे लगता था कि वह सेक्यूलर राजनीति करना चाहते हैं. बाला ठाकरे के आरंभिक कार्यकाल की तरह राज ठाकरे ने महाराष्ट्र महाराष्ट्रीयन के लिए यानी भूमि पुत्रों की लड़ाई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ अभियान चलाया . इसका शायद आरंभ में थोड़ा असर हुआ और  2009 के विधानसभा चुनाव में मनसे के 13 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे. इसके बाद नगर निगम चुनावों में भी उनका प्रदर्शन अच्छा रहा. नासिक नगर निगम मनसे के कब्जे में आ गया. बीएमसी यानी बृहन्मुंबई नगरपालिका में उनके 27 कॉरपोरेटर निर्वाचित हुए.  वे उसे बनाए नहीं रख सके. 2014 के लोकसभा चुनाव में मनसे एक भी सीट नहीं जीत सकी. उसी साल के विधानसभा चुनाव में  मनसे केवल 1 सीट जीत पाई. 2019 लोकसभा चुनाव उन्होंने नहीं लड़ा. उसी वर्ष  विधानसभा चुनाव में मनसे ने 101 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए जिसमें से केवल 1 पर विजय मिली एवं 87 उम्मीदवारों के जमानत जब्त हो गए. इसके बाद राजनीति में उनकी संभावनाएं खारिज कर दी गई.

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सामान्य तौर पर यह हैरत में डालता है कि उनकी सभाओं में किसी राष्ट्रीय नेता की तरह भारी जनसमूह जुड़ता रहा लेकिन  वह वोटों में तब्दील नहीं हुआ. कारण यही माना गया कि उनके पास राजनीतिक और चुनाव प्रबंधन करने वाले लोगों की कमी है. दूसरे, मनसे विचारधारा को लेकर अस्पष्ट रही .उनका झंडा 4 रंगों का और इसके साथ घोषणा कि हमारी नीति धर्मनिरपेक्षता की है तो फिर लोग मनसे के साथ क्यों आएंगे? तीसरे, उत्तर भारतीयों का विरोध करके उन्होंने भूमि पुत्र सिद्धांत को आगे बढ़ाया जिससे भ्रम पैदा हो गई. तीसरे,राज ठाकरे  बयान देने या मंच पर भाषण देने के अलावा कभी भी सड़क पर उतर कर काम करने का व्यवहार नहीं दिखाया. इसलिए महाराष्ट्र की मीडिया में उन्हें विंडो पॉलीटिशियन की भी संज्ञा दी गई. 

मीडिया के साथ उनका व्यवहार अत्यंत रूखा और सख्त रहा. इस तरह वे महाराष्ट्र की राजनीति में अलग-थलग पड़ गए. इस समय की परिस्थितियां थोड़ी अलग है. 2019 का विधानसभा चुनाव भाजपा और शिवसेना ने एक साथ लड़ा. शिवसेना केवल 56 सीटें पाने के बावजूद मुख्यमंत्री पद की जिद पर अड़ गई और गठबंधन टूट गया. शरद पवार ने इसका लाभ उठाया तथा उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाकर उनके नेतृत्व में कांग्रेस राकांपा एवं शिवसेना की सरकार चल रही है. 105 सीटें पाकर भाजपा विपक्ष में है. शिवसेना की धोखेबाजी को लेकर भाजपा के अंदर क्षोभ  स्वाभाविक है. इसलिए भाजपा अगर राज ठाकरे को समर्थन और सहयोग देकर आगे कर रही होगी तो यह अस्वाभाविक नहीं. 

 राज ठाकरे ने 2020 से अपने पार्टी में बदलाव किया है. उन्होंने 4 रंगों की जगह केसरिया रंग का झंडा अपना लिया और स उसमें छत्रपति शिवाजी के राज प्रतीक अंकित किए हैं. इस तरह हिंदुत्व और मराठा स्वाभिमान को जोड़ा है. वर्तमान समय पूरे देश में हिंदुओं के अंदर हिंदुत्व को लेकर आलोड़न का है. इसमें राज ठाकरे की आवाज को समर्थन मिलना स्वभाविक है. किंतु उत्तर भारतीयों के विरुद्ध उन्होंने जिस तरह का अभियान चलाया उसे लेकर संदेह कायम है. इसे दूर करने के लिए उन्होंने अयोध्या आने की घोषणा की है. मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर के संदर्भ में उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा कर शिवसेना को घेरने की कोशिश की. इस तरह वे उत्तर भारतीयों के विरोधी होने के दाग से मुक्ति की कोशिश कर रहे हैं. वे अयोध्या आए और यहां भाजपा नेताओं से मुलाकात हुई या योगी आदित्यनाथ से मिले तो इसका संदेश जा सकता है.  तो कुल मिलाकर राज ठाकरे के लिए संभावनाएं हैं और उस दिशा में वे कोशिश कर रहे हैं. भाजपा ने राज ठाकरे के साथ गठबंधन किया तो उनका जनाधार मजबूत होगा और इसकी क्षति शिवसेना की होगी. 

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