नेपाल के रास्ते उत्तर भारत में धर्म परिवर्तन की लहर? 3000 लोगों की सूची से उठे बड़े सवाल

उत्तर भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में इन दिनों एक संवेदनशील मुद्दा तेज़ी से चर्चा में है—नेपाल के रास्ते सिख समाज के भीतर हो रहा कथित धर्म परिवर्तन। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे इलाकों, विशेष रूप से पीलीभीत और आसपास के गांवों में इसे लेकर गंभीर आरोप सामने आए हैं।
स्थानीय धार्मिक संगठनों और समाजसेवियों का दावा है कि नेपाल के रास्ते कुछ विदेशी मिशनरी एजेंसियां यहां आकर गरीब और असहाय लोगों को अंधविश्वास और प्रलोभन के माध्यम से ईसाई धर्म में परिवर्तित कर रही हैं।
इस पूरे विवाद की जड़ में क्या है? आइए विस्तार से जानते हैं—
पीलीभीत के इंडो-नेपाल बॉर्डर पर मौजूद गांवों में कथित धर्म परिवर्तन का यह मामला तब चर्चा में आया जब समाजसेवी हरपाल सिंह जग्गी ने इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाया। उन्होंने दावा किया कि इस क्षेत्र में 2500 से 3000 लोगों ने धर्म परिवर्तन किया है, जिनमें अधिकतर सिख समुदाय से हैं।
प्रलोभन, अंधविश्वास और हिप्नोसिस के जरिए प्रचार?
जग्गी का आरोप है कि नेपाल से कुछ प्रोटेस्टेंट पादरी आते हैं, स्थानीय एजेंट बनाते हैं और लोगों को प्रभावित करते हैं।
कई घटनाओं में कथित 'चंगाई सभाओं' की बात सामने आई है, जहां बीमार लोगों को यीशु मसीह के नाम पर ठीक करने का दावा किया गया।
उदाहरण के तौर पर, एक महिला ने बताया कि उसके पति को कैंसर था। गुरुद्वारे में अरदास करने से कोई लाभ नहीं हुआ, लेकिन जब वे 'चंगाई सभा' में गए तो उनके पति अस्थायी रूप से ठीक हो गए। हालांकि बाद में वही बीमारी वापस आई।
इन घटनाओं के माध्यम से यह दावा किया गया कि "यीशु मसीह बीमारियां ठीक करते हैं, जबकि गुरु ग्रंथ साहिब नहीं" — इस तरह की बातें सिख समुदाय की आस्था पर सीधा हमला मानी जा रही हैं।
बाहरी एजेंसियों की भूमिका और सुरक्षा को खतरा
हरपाल सिंह जग्गी ने आरोप लगाया कि यह केवल एक धार्मिक मुद्दा नहीं, बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा है। उनका कहना है कि कोरियन एजेंसियों और अन्य विदेशी संगठनों के जरिए प्रचार सामग्री और आर्थिक सहायता दी जा रही है।
उनके मुताबिक कई लोग जो अब भी पहनावे से सिख दिखते हैं — पगड़ी, दाढ़ी आदि में कोई बदलाव नहीं — लेकिन उनकी आस्था अब चर्च में है, गुरुद्वारे में नहीं।
गरीबी और विकास की कमी बन रही है कारण?
जग्गी ने सीधा इशारा किया कि यह क्षेत्र अत्यंत गरीब है, जहां बाढ़, कटान, बेरोजगारी, शिक्षा और चिकित्सा की भारी कमी है।
उनके अनुसार, यह आर्थिक और सामाजिक असुरक्षा ही उन लोगों को प्रलोभन में लाकर धर्म परिवर्तन की ओर ढकेल रही है।
उनका कहना है कि सरकार को यहां विकास कार्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए और सभी धार्मिक संगठनों को मिलकर इस पर कार्य करना चाहिए।
क्या जबरन धर्म परिवर्तन हो रहा है? या लोग स्वेच्छा से बदल रहे हैं?
बहस का बड़ा मुद्दा यही है। कई लोग कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से धर्म बदलता है, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन आरोप है कि ‘स्वेच्छा’ केवल दिखावा है, असल में प्रलोभन, आर्थिक मदद, या चमत्कारों के वादों के जरिए ऐसा कराया जा रहा है।
प्रशासन के पास क्या हैं सबूत?
हरपाल सिंह ने बताया कि उन्होंने जिला प्रशासन को कम से कम 1000 लोगों की सूची सौंपी है, जिनके धर्म परिवर्तन की पुष्टि हुई है।
इनमें से कई परिवार अब ‘घर वापसी’ कर चुके हैं, यानी फिर से सिख धर्म में लौट चुके हैं।
उन्होंने प्रशासन की ओर से हुई एक गिरफ्तारी का भी ज़िक्र किया और कहा कि कुछ स्थानीय नेताओं और रसूखदारों की संलिप्तता की जांच होनी चाहिए।
यह मुद्दा केवल एक धर्म से जुड़ा विवाद नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है।
यदि आरोप सही हैं तो इसे सिर्फ धार्मिक कोण से नहीं, बल्कि एक संविधान, कानून और मानव अधिकार के स्तर पर देखा जाना चाहिए।
ज़रूरत इस बात की है कि—
सरकार इस क्षेत्र के विकास पर ध्यान दे,
धार्मिक संगठन मिलकर सही जानकारी फैलाएं,
और जो लोग लालच या भ्रम में धर्म बदलते हैं, उनके साथ संवाद किया जाए।
क्योंकि किसी भी धर्म में जाना या आना केवल स्वेच्छा, ज्ञान और आस्था का निर्णय होना चाहिए — किसी चमत्कार या लालच का नहीं।