यूपी पंचायत चुनावों में एनडीए में टूट! अकेले मैदान में उतर रहे हैं सहयोगी दल, बिजली कर्मियों की हड़ताल पर सरकार सख्त

उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की हलचल अब सियासी तूफान का रूप लेती दिख रही है। चुनावी मोर्चा खुलने से पहले ही एनडीए का कुनबा बिखरता नजर आ रहा है। बीजेपी के विश्वस्त सहयोगी दल अब अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं, जिससे प्रदेश की राजनीति में नई उठापटक की संभावनाएं पैदा हो गई हैं।
इस लेख में हम आपको विस्तार से बताएंगे कि कैसे एनडीए के सहयोगी दलों ने अलग रास्ता चुना, इस फैसले के पीछे की रणनीति क्या है, इसका बीजेपी पर क्या असर पड़ेगा, और आगे 2027 के विधानसभा चुनाव में इसका क्या मतलब हो सकता है।
पंचायत चुनाव से पहले एनडीए में दरार क्यों?
उत्तर प्रदेश में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर बीजेपी के तीन बड़े सहयोगी दल—अपना दल (एस), सुभासपा और निषाद पार्टी—ने अपने-अपने रास्ते चुनने का ऐलान कर दिया है।
उनके बाद ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा और संजय निषाद की निषाद पार्टी ने भी यही रास्ता चुना। इन दोनों दलों ने भी साफ कर दिया कि वे इस बार चुनाव में अकेले उतरेंगे।
यह घटनाक्रम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले चुनावों में इन दलों ने बीजेपी के साथ मिलकर अच्छी पकड़ बनाई थी, खासकर पूर्वांचल के इलाकों में।
क्या यह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है?
एनडीए के सहयोगी दलों का यह कदम बीजेपी के लिए निश्चित रूप से एक नई चुनौती है। पहले इन दलों के साथ मिलकर बीजेपी ने पंचायत चुनावों में बड़ी कामयाबी हासिल की थी। लेकिन अब वही पार्टियां जब विरोध में खड़ी होंगी, तो बीजेपी को खुद के खिलाफ लड़ते देखना होगा।
इससे न सिर्फ वोटों का बिखराव होगा, बल्कि जमीनी स्तर पर भी पार्टी की पकड़ कमजोर हो सकती है। इन दलों का मकसद भी यही है—अपने वजूद को साबित करना और 2027 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से ज्यादा सीटों या बेहतर सौदे की उम्मीद रखना।
इसका मतलब ये हुआ कि पंचायत चुनाव अब सिर्फ स्थानीय मुद्दों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि 2027 की रणनीति का ट्रेलर भी यहीं से शुरू होगा।
बीजेपी की रणनीति क्या होगी?
बीजेपी अब इन हालातों में अपनी ताकत झोंकने की तैयारी में है। पार्टी का मकसद होगा कि वह अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं को चुनाव मैदान में उतारे और यह साबित करे कि बिना गठबंधन के भी उसकी पकड़ मजबूत है।
2021 के पंचायत चुनाव में बीजेपी ने 80 में से 67 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष की सीटें जीती थीं। 885 क्षेत्र पंचायत सीटों में से 735 पर बीजेपी ने लड़ाई लड़ी और 668 पर जीत दर्ज की। 349 ब्लॉक प्रमुख निर्विरोध निर्वाचित हुए, जिनमें 334 बीजेपी के थे। यह बीजेपी की शक्ति का संकेत था, लेकिन अब जब सहयोगी विरोध में खड़े हों, तो स्थिति बदल सकती है।
क्या 2027 में फिर से एकजुट होंगे ये दल?
यह चुनाव राजनीतिक दृष्टि से इसलिए भी अहम होगा क्योंकि यही चुनाव इन दलों की मोल-भाव की ताकत को तय करेगा। अगर ये पार्टियां बीजेपी के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन करती हैं, तो भविष्य में ये ज्यादा सीटों की मांग कर सकती हैं।
लेकिन अगर इनका प्रदर्शन कमजोर रहा, तो 2027 के चुनाव से पहले ये दल फिर से बीजेपी से जुड़ने को मजबूर भी हो सकते हैं। यानी यह चुनाव एनडीए के भविष्य की दिशा तय करेगा।