आगरा फिर बना रणक्षेत्र: बाबा साहेब की तस्वीर से भड़का दलित समाज, नर्सिंग होम पर फूटा गुस्सा

आगरा फिर बना रणक्षेत्र: बाबा साहेब की तस्वीर से भड़का दलित समाज, नर्सिंग होम पर फूटा गुस्सा
Agra again became a battleground: Dalit community enraged by Baba Saheb's picture, anger erupted on nursing home

आगरा, जिसे दलितों की राजधानी कहा जाता है, एक बार फिर भारी बवाल और उबाल का गवाह बना है। इस बार मामला किसी दलित नेता से नहीं, बल्कि सीधे बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर से जुड़ा है। जैसे ही यह खबर फैली कि एक निजी अस्पताल की छत पर बाबा साहेब की तस्वीरों वाली टाइल्स फर्श पर लगाई गई हैं, पूरे शहर में तूफान आ गया।

बताया जा रहा है कि हरिपर्वत क्षेत्र के दिल्ली गेट स्थित 'सरकार नर्सिंग होम' की छत पर टाइल्स में डॉक्टर अंबेडकर की छवि लगी हुई थी, जिस पर लोग चलते हैं। यह खबर फैलते ही आजाद समाज पार्टी के कार्यकर्ता मौके पर पहुंच गए और विरोध शुरू कर दिया। देखते ही देखते यह प्रदर्शन उग्र हो गया और पुलिस को मौके पर बुलाना पड़ा।

पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच जमकर धक्का-मुक्की हुई। आरोप है कि कार्यकर्ताओं ने पुलिस से भिड़ंत के दौरान वर्दी भी फाड़ दी। जवाब में पुलिस ने हल्का बल प्रयोग करते हुए कुछ लोगों को हिरासत में ले लिया, जिसके बाद भीम आर्मी और आजाद समाज पार्टी के अन्य सदस्य थाने पहुंच गए और अपने कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग करने लगे।

बसपा कार्यकर्ता भी इस आंदोलन में पीछे नहीं रहे। उन्होंने थाने का घेराव किया और अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।

क्या है पूरा मामला?

यह विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब लोगों को जानकारी मिली कि ‘सरकार नर्सिंग होम’ की छत पर बाबा साहेब की तस्वीरों वाली टाइल्स बिछी हुई हैं। सोशल मीडिया पर इसकी तस्वीरें वायरल हो गईं, और गुस्सा भड़क गया।

आंदोलनकारियों का आरोप है कि यह जानबूझकर किया गया अपमान है, ताकि लोग डॉक्टर अंबेडकर की तस्वीर पर पैर रखें। यह सीधे-सीधे दलित समाज की भावना को ठेस पहुंचाने वाला कृत्य बताया गया।

पुलिस की जांच में क्या सामने आया?

पुलिस ने जांच के बाद दावा किया है कि यह टाइल्स नर्सिंग होम में कार्यरत राकेश नामक व्यक्ति ने 17 अप्रैल को खुद ही लगाई थीं। राकेश, जो कि अस्पताल में चौकीदार और रिपेयरिंग का कार्य करता है, का अस्पताल से भुगतान को लेकर विवाद चल रहा था।

जांच के मुताबिक, 13 मई को राकेश ने ही उन टाइल्स को खुद उखाड़ दिया था, लेकिन 23 मई को वह अनिल करदम नाम के व्यक्ति के संपर्क में आया और दोनों ने मिलकर इस मुद्दे को भड़काने का प्रयास किया।

पुलिस का यह भी कहना है कि साजिश के तहत जन आक्रोश को भड़काया गया और प्रदर्शन करवाया गया। हालांकि, पुलिस की तत्परता से कोई बड़ी अप्रिय घटना नहीं घटी और स्थिति को काबू में कर लिया गया है।

राजनीतिक हलचल और दलित चेतना

इस घटना का असर अब राजनीति पर भी पड़ता दिख रहा है। आगरा में दलितों की बड़ी संख्या और प्रभाव को देखते हुए यह मुद्दा दलित अस्मिता का सवाल बन गया है।

कुछ महीने पहले समाजवादी पार्टी के दलित सांसद रामजीलाल सुमन के घर पर करणी सेना के हमले के बाद जैसे सियासत गरमाई थी, उसी तरह अब बाबा साहेब की तस्वीर से जुड़ा यह मुद्दा भी राजनीतिक रंग ले रहा है।

कांग्रेस ने पहले भी दलित मुद्दों को सदन में पुरजोर तरीके से उठाया है। अब देखना होगा कि इस बार यह मामला कितनी दूर तक जाएगा और किस पार्टी को इसका फायदा या नुकसान होगा।

बाबा साहेब का अपमान सिर्फ एक व्यक्ति या समाज का नहीं, बल्कि पूरे संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों का अपमान माना जा रहा है। अगर अस्पताल प्रबंधन इस मामले में निर्दोष है, तो साजिश करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई जरूरी है। वहीं अगर जानबूझकर ऐसा किया गया है, तो यह पूरी व्यवस्था पर सवाल है।

यह घटना यह भी दिखाती है कि दलित समाज अब अपने सम्मान को लेकर पहले से कहीं ज्यादा सजग और एकजुट है। ऐसे में प्रशासन और सियासी दलों को बेहद संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है।

On

About The Author