बूस्टर डोज है गौ-पालन

बूस्टर डोज है गौ-पालन
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संजय द्विवेदी
बूस्टर डोज है गौ-पालन गाय आज भी भारतीय लोकजीवन का सबसे प्रिय प्राणी है. अथर्ववेद में कहा गया है..‘धेनुरू सदनम् रचीयाम्’’ यानी ‘‘गाय संपत्तियों का भंडार है.’ हम गाय को केंद्र में रखकर देखें, तो गांव की तस्वीर कुछ ऐसी बनती है कि गाय से जुड़े हैं किसान, किसान से जुड़ी है खेती और खेती से जुड़ी है ग्रामीण अर्थव्यवस्था. गाय हमारे आर्थिक जीवन की ही नहीं वरन आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन की भी आधारशिला है. सही मायने में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए गौ-पालन बूस्टर डोज बन सकता है. कौटिल्य के अर्थशास्त्र को देखें, तो आप पाएंगे कि उस समय में गायों की समृद्धि और स्वास्थ्य के लिये एक विशेष विभाग था.

भगवान श्रीकृष्ण के समय भी गायों की संख्या, सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक मानी जाती थी. नंद, उपनंद, नंदराज, वृषभानु, वृषभानुवर आदि उपाधियां गोसंपत्ति के आधार पर ही दी जाती थीं. गर्ग संहिता के गोलोक खंड में ये लिखा गया है कि जिस गोपाल के पास पांच लाख गाय हों, उसे उपनंद और जिसके पास 9 लाख गायें हो उसे नंद कहते हैं. महाभारत में युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्न ‘‘अमृत किम् ?’’ यानी ‘अमृत क्या है?’ के उत्तर में कहा कि ‘‘गवाऽमृतम्’’ यानी श्गाय का दूधश्. महात्मा गांधी ने भी कहा था कि ‘‘देश की सुख-समृद्धि गाय के साथ ही जुड़ी हुई है.’’

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जानकर हैरानी होगी कि जो पशु सूर्य की किरणों को सर्वाधिक ग्रहण करता है, वह है ‘गाय’ और यह दूध के माध्यम से हमें सौर ऊर्जा देती है. आपने कभी सोचा कि आज पश्चिमी देश क्यों उन्नति कर रहे हैं? विदेशों में चले जाइये, आपको भैंस नहीं मिलेगी, प्रायः आपको गाय मिलेगी. दो दशक से पश्चिमी देशों में श्वेत क्रांति चल रही है. एक अमेरिकन व्यक्ति प्रतिदिन एक से दो लीटर गाय का दूध पीता है और मक्खन खाता है. जबकि भारतीय व्यक्ति को औसतन मात्र 200 ग्राम दूध मुश्किल से प्राप्त होता है. कोलंबस 1492 में अमेरिका गया, वहां एक भी गाय नहीं थी. सिर्फ जंगली भैसों का पालन होता था. कोलंबस जब दूसरी बार अमेरिका गया, तब अपने साथ 40 गायों को ले गया, जिससे दूध की जरुरत पूरी हो सके. सन् 1640 में ये 40 गायें बढ़कर 30,000 हो गयीं. 1840 तक ये गायें बढ़कर ड़ेढ करोड़ और सन् 1900 में 4 करोड़ हो गईं.

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1930 में इनकी संख्या 6 करोड़ 40 लाख थी तथा मात्र पांच वर्ष पश्चात सन् 1935 में इनकी संख्या बढ़कर 7 करोड़ 18 लाख हो गई. 1985 में अमेरिका में 94 प्रतिशत लोगों के पास गायें थीं और हर किसान के पास दस से पंद्रह गायें होती थीं. पशु विशेषज्ञ डॉ.राइट ने 1935 में कहा था कि ‘‘गोवंश से होने वाली वार्षिक आय 11 अरब रुपये से अधिक है.” यह गणना 1935 के वस्तुओं के भावों के अनुसार लगाई गयी थी. आज सन् 1935 की अपेक्षा वस्तुओं के भाव कई गुना अधिक बढ़ गये.

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