जनरेशन Z का स्टॉक मार्केट की तरफ बढ़ता खतरनाक आकर्षण: आसान पैसा कमाने के चक्कर में बर्बादी की दास्तान

जनरेशन Z का स्टॉक मार्केट की तरफ बढ़ता खतरनाक आकर्षण: आसान पैसा कमाने के चक्कर में बर्बादी की दास्तान
Generation Z's growing dangerous attraction towards the stock market: A tale of ruin in pursuit of easy money

कुछ समय पहले एक ट्वीट ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया। यह ट्वीट था सीए रोशन अग्रवाल का, जिसमें उन्होंने एक ऐसा सच उजागर किया जो आज के युवाओं की मानसिकता और उनकी आदतों को बारीकी से दर्शाता है।

इस ट्वीट में सीए रोशन ने एक बीटेक थर्ड ईयर के छात्र का इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते समय जो अनुभव किया, वो चौंकाने वाला था। वह छात्र स्टॉक मार्केट की "फ्यूचर्स और ऑप्शंस" ट्रेडिंग का इतना आदि हो चुका था कि अपने दोस्तों, बैंक और यहां तक कि अपने माता-पिता के अकाउंट से भी पैसे निकालकर ट्रेडिंग कर रहा था।

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इस लत का परिणाम?

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बिना कोई इनकम जनरेट किए, सिर्फ दो सालों में वह छात्र 46 लाख रुपये गवां चुका था।

लेकिन ये कहानी यहीं नहीं रुकती।

चेन्नई में रहने वाले 26 वर्षीय ई. भुवनेश की कहानी तो और भी दुखद है। शेयर मार्केट में रातों-रात अमीर बनने की उम्मीद में उन्होंने भी दोस्तों से उधार और बैंक से लोन लेकर भारी निवेश किया।

जब सब कुछ डूब गया और कर्ज का बोझ असहनीय हो गया, तब उन्होंने आत्महत्या कर ली।

यह सिर्फ दो केस नहीं हैं। अगर आप ध्यान से देखें, तो आपको सोशल मीडिया और न्यूज़ रिपोर्ट्स में ऐसे हजारों युवाओं की कहानियां मिल जाएंगी, जो शेयर मार्केट की "हाइप" में फंसकर अपने जीवन की दिशा ही खो चुके हैं।

SEBI की रिपोर्ट भी खतरे की घंटी बजा रही है

SEBI की ताज़ा रिपोर्ट्स यह बताती हैं कि भारत में 10 में से 9 इन्ट्राडे ट्रेडर्स और 10 में से 9 फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस ट्रेडर्स को घाटा ही होता है।

पिछले 3 वर्षों में रिटेल इन्वेस्टर्स ने कुल मिलाकर 1.8 लाख करोड़ रुपये से भी ज़्यादा का नुकसान झेला है। इसके बावजूद युवाओं का एक बड़ा वर्ग अब भी ट्रेडिंग को शॉर्टकट पैसा कमाने का तरीका मान रहा है।

हम क्या कह रहे हैं?

यह बात स्पष्ट कर देना जरूरी है कि यहां स्टॉक मार्केट या निवेश को गलत नहीं कहा जा रहा है।

जब कोई व्यक्ति रिसर्च और ज्ञान के आधार पर, जोखिम को समझकर निवेश करता है, तभी उसे "इन्वेस्टमेंट" कहा जा सकता है।

मगर आज की पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा बिना रिसर्च, बिना समझ, और सिर्फ हाइप के आधार पर पैसा लगा रहा है।

यह एक बहुत ही खतरनाक ट्रेंड है, जो अब ऑब्सेशन और एडिक्शन का रूप ले चुका है।

मीडिया, सोशल मीडिया और फिन इन्फ्लुएंसर्स की भूमिका

आज का दौर "ड्रीम सेलिंग" का है। पहले मल्टीलेवल मार्केटिंग में यह देखा गया, अब वही ट्रेंड फाइनेंशियल इन्फ्लुएंसर्स के ज़रिए चल रहा है।

यह फिन इन्फ्लुएंसर्स खुद को ट्रेडिंग गुरु बताकर ऑनलाइन कोर्स, टिप्स और एक्सक्लूसिव व्हाट्सएप ग्रुप्स के ज़रिए युवाओं को लुभाते हैं।

इन्हें देखकर युवा सोचने लगते हैं कि अगर ये लोग ट्रेडिंग से इतनी लग्जरी लाइफ जी सकते हैं, तो वो क्यों नहीं?

हकीकत यह है कि इन फिन इन्फ्लुएंसर्स की खुद की आमदनी का मुख्य जरिया वो कोर्स और टिप्स ही होते हैं, स्टॉक मार्केट नहीं।

"Scam 1992" और FOMO का असर

वेब सीरीज 'Scam 1992' की सफलता के बाद शेयर मार्केट को लेकर युवाओं की कल्पनाएं और उम्मीदें बहुत तेज़ी से बढ़ी हैं।

साथ ही सोशल मीडिया पर ‘FOMO’ यानी “Fear Of Missing Out” का दबाव भी युवाओं को तेजी से ट्रेडिंग की ओर खींच रहा है।

हर कोई यही सोचता है कि अगर मैंने अभी स्टॉक ट्रेडिंग शुरू नहीं की, तो मैं पीछे रह जाऊंगा।

अब स्मार्टफोन और ऐप्स ने इस लत को और आसान बना दिया है

आज की तारीख में कोई भी अपने स्मार्टफोन से कुछ मिनटों में ट्रेडिंग शुरू कर सकता है।

ट्रेडिंग ऐप्स भी गेम की तरह डिज़ाइन किए जाते हैं – बैजेस, रिवार्ड्स, लीडरबोर्ड्स – यह सब युवाओं के दिमाग को उस ओर आकर्षित करता है।

कई बार छोटे और अनजाने स्टॉक्स को "पंप एंड डंप" स्कीम के जरिए युवाओं के सामने पेश किया जाता है, जहां एक हाइप बनाकर शेयर की कीमत को आर्टिफिशियली बढ़ाया जाता है और फिर अचानक गिरा दिया जाता है।

2023 में SEBI ने ऐसे मामलों में 55 बिजनेस एंटिटीज के खिलाफ कार्रवाई की थी।

स्टॉक मार्केट का यह ‘गेम’ कब तक?

जब तक पैसा बन रहा है, तब तक यह सब ठीक लगता है। लेकिन जैसे ही लॉस होना शुरू होता है, इन अनुभवहीन युवाओं का आत्मविश्वास टूटने लगता है।

कुछ तो मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम भी उठा लेते हैं।

तो समाधान क्या है?

1. फाइनेंशियल लिटरेसी को बढ़ाना होगा। सरकार और स्कूलों को युवाओं को निवेश की समझ और जिम्मेदारी सिखाने की ज़रूरत है।

2. फेक फिन इन्फ्लुएंसर्स के खिलाफ सख्त कदम उठाने होंगे। SEBI पहले ही इस दिशा में एक्टिव है, लेकिन और मजबूत रेगुलेशन की जरूरत है।

3. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी ज़िम्मेदारी लेनी होगी। जहां ट्रेडिंग को गेम की तरह प्रमोट किया जा रहा है, वहां उसे रोकना होगा।

4. परिवार और दोस्तों को साथ देना होगा। युवा अगर किसी ट्रैप में फंस रहे हैं, तो उन्हें अकेला न छोड़ा जाए।

शेयर मार्केट अपने आप में कोई बुरी चीज नहीं है। बुरा तब होता है जब इसे बिना जानकारी, बिना जिम्मेदारी, और बिना योजना के अपनाया जाता है।

युवाओं को ये समझना होगा कि स्टॉक मार्केट पैसा बनाने का शॉर्टकट नहीं, बल्कि एक गंभीर और रिस्क से भरी दुनिया है।

दूसरों के दिखाए सपनों और हाइप के चक्कर में अपनी असल ज़िंदगी को दांव पर न लगाएं।

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