भारतीय बस्ती स्थापना दिवस 2025: बाबू जी के बिना भारतीय बस्ती

भारतीय बस्ती स्थापना दिवस विशेषांक

भारतीय बस्ती स्थापना दिवस 2025: बाबू जी के बिना भारतीय बस्ती
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समय किसी के लिये नहीं रुकता, देखते ही देखते भारतीय बस्ती ने दैनिक के रूप में प्रकाशन यात्रा के 46 वर्ष पूर्ण कर लिये. इस वर्ष आयोजन तो होंगे किन्तु संस्थापक सम्पादक और मेरे पूज्य पिता श्री दिनेश चन्द्र पाण्डेय भौतिक रूप से उपलब्ध नहीं होंगे. उनका मार्ग दर्शन सदैव प्राप्त होगा, इसमें संदेह नहीं.

18 फरवरी 2025 मंगलवार के दिन बाबूजी कुछ बीमार थे, उन्हें बहुत मुश्किल से मनाकर अस्पताल पहुंचाया गया. मुझे देखते ही कहा कि मैं बिल्कुल ठीक हूं, अभी घर चले जायेंगे, जाओ अखबार देखो. मुझे क्या पता था कि बाबू जी से यह मेरा अंतिम संवाद है.

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अब मेरी जिम्मेदारी पहले से अधिक बढ़ गई है. बाबूजी थे तो कभी-कभी नाराज होने का मौका था, अब शिकायत करें भी तो किससे. बाबूजी ने भारतीय बस्ती का पाक्षिक, साप्ताहिक और दैनिक के रूप में जो बीजारोपण किया और जिस तरह का संस्कार दिया, समाचार पत्र उसी गति से गतिमान है.

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कभी-कभी ऐसा लगता है कि मानो बाबूजी देख रहे हैं कि उनकी भौतिक अनुपस्थिति में  अखबार किस तरह चल रहा है. बस्ती और अयोध्या के दोनों संस्करण नियमित रूप से गतिमान है. बड़े बेटे राहुल सांकृत्यायन के कहने, बेटी सविता के सुझाव पर छोटे बेटे वागार्थ सांकृत्यायन को अखबार से जोड़ लिया है. वे भारतीय बस्ती डॉट काम का कार्य पूरी निष्ठा से देख रहे हैं.

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समय बदल गया है, अखबार एक साथ कई और नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. वैसे भी जिन्हें चुनौतियों से डर लगता हो पत्रकारिता का क्षेत्र उनके लिये नहीं है. नयी तकनीकों ने कार्य को आसान बनाने के साथ ही कई जटिलतायें भी पैदा कर दिया है. सोशल मीडिया के संक्रमणकाल, सूचना विस्फोट के इस समय में अपने पथ पर अडिग रहना आसान नही है.

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आये दिन छोटे-मझोले समाचार पत्र बंद हो रहे हैं. इसके बावजूद भारतीय बस्ती जन सहयोग से अपने लक्ष्य की ओर निर्भीकता के साथ इसलिये गतिमान है क्योंकि उसे चाहने वाले पाठकों, शुभेच्छुओं की एक सुदीर्घ परम्परा है. भारतीय बस्ती के पास सूचनातंत्र के नवीनतम तकनीक से समृद्ध नई पीढी है जो आश्वस्त कर रही है कि चाहे जितनी चुनौतियां सामने आयें.

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बाबूजी के आशीर्वाद से यह यात्रा अनवरत जारी रहेगी. बाबूजी के भौतिक शरीर की अनुपस्थिति ने मुझे कमजोर करने की जगह और मजबूत बना दिया है. मुझे  अनेक ऐसी घटनायें याद हैं जब बाबूजी समाचारों के सवाल पर कभी झुके नहीं. आखिरी समय तक वे पूर्ण, सचेत और समग्र पत्रकार के रूप में जीवन्त रहे. पूर्ण विश्वास है कि 47 वें वर्ष में पाठकों, शुभेच्छुओं का आशीर्वाद, सुझाव पूर्ववत प्राप्त होता रहेगा और भारतीय बस्ती का यह कांरवा निरन्तर गतिमान रहेगा. सीमित संसाधन और मजबूत हौसलों के बीच 46 वर्ष की श्रम साधना सहज नहीं है. जब अपने गांव सल्टौआ गोपालपुर विकास खण्ड के भिऊरा गांव से कक्षा 5 पास कर बस्ती आया तो कक्षा 6 से ही पत्रकारिता से जुड़ गया.

बाबूजी मेरे पत्रकारिता के गुरू हैं और मेरी आखिरी सांस तक बने रहेंगे. उनकी अनुपस्थिति भी भारतीय बस्ती परिवार को साहस देगी इसमें संदेह नहीं. 

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प्रदीप चंद्र पाण्डेय, भारतीय बस्ती समाचार पत्र के संपादक हैं. वह बीते 30 सालों से ज्यादा समय से पत्रकारिता में सक्रिय है.