-भारतीय बस्ती संवाददाता-
बस्ती. बस्ती का स्वास्थ्य विभाग खुद शक के घेरे में आ चुका है. कोरोना से लड़ने के लाख दावों के बीच सरकार के फरमान को शहर के कुछ निजी अस्पताल संचालक विभागीय सांठगांठ से शासन को ठेंगा दिखा रहे है. कुकुरमुत्तों की तरह उगे इन अस्पतालों में हाल ये है की कोरोना के बढ़ते मामलों पर ये जमकर लूट मचाने से बाज नहीं आ रहे. अधिकतर पकड़े गये संदिग्ध अस्पतालों में न तो डाक्टर मिले और न ही प्रशिक्षित चिकित्साकर्मी और स्टाफ. इसके बावजूद इन अस्पतालों पर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ कोरम पूरा करने पर जोर दिया जा रहा है.
पूरे शहर में खुले इन अस्पतालों की असल संख्या तो खुद जिले के जिम्मेदारों को ही नहीं है. स्वास्थ्य विभाग के जिस बड़े अधिकारी को निजी अस्पतालों को देखने की जिम्मेदारी मिली है वो अस्पतालों की जांच तो करते है. मगर सीज करने की कार्रवाई के कुछ दिनों के भीतर ही जिस तरह से अस्पताल खुल जाते हैं वो इनके कार्यप्रणाली पर ही सवालिया निशान लगा देती है. पिछले हफ्ते स्वास्थ्य विभाग के नाक के नीचे संचालित हो रहे हैप्पी अस्पताल को कोविड मरीज से प्रति घंटे पांच हजार की दर से आक्सीजन देने के आरोप पर सीज कर दिया गया था. बावजूद इसके हैप्पी अस्पताल खुल कर जिम्मेदारों को मुंह चिढ़ा रहा है. इसी तरह जामडीह रोड पर न्यू अवध अस्पताल पर भी सिद्धार्थनगर की एक मरीज से आक्सीजन के नाम पर भारी भरकम कीमत लेने का आरोप लग चुका है.
सोमवार को भी एक ऐसा ही मामला सामने आया जिसे सुनकर सबके रोंगटे खड़े हो गये. पचपेड़िया रोड पर स्थित आस्था हास्पिटल में कोरोना मरीज को चालीस हजार में सिलेंडर देने का आरोप लगा है. इस पर विभागीय कार्रवाई चल रही है. इसी तरह बड़ेबन के पास स्थित शिवा हास्पिटल पर भी अवैध ढंग से संचालन का आरोप भाजपा के युवा नेता राहुल पटेल ने लगाया है. उच्चाधिकारियों को दिये तमाम शिकायती पत्रों के बावजूद अब तक कार्रवाई न होने से प्रशासन की मंशा सवालों के घेरे में है. देखना होगा की तमाम दावों के बीच संचालित हो रहे इन अवैध अस्पतालों के संरक्षणदाता पर प्रशासन कब तक मेहरबान रहता है. लोग चुप्पी पर अवाक है.