Lok Sabha Election 2024: क्या इन संस्थाओं को अपनी विश्वसनीयता की भी फ़िक्र है?

Lok Sabha Election 2024: क्या इन संस्थाओं को अपनी विश्वसनीयता की भी फ़िक्र है?
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तनवीर जाफ़री
भारतीय संविधान में लोकतंत्र के जिन तीन स्तम्भों का ज़िक्र किया गया है वे हैं विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका. यह और बात है कि मीडिया के बढ़ते दायरे व इसके बढ़ते प्रभाव के चलते इसे भी लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने लगा. जबकि संवैधानिक दृष्टि से 'चौथा स्तम्भ' नाम की कोई चीज़ नहीं है. आम अवधारणा है कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहे जाने वाला भारत जिसे पिछले कुछ समय से 'मदर ऑफ़ डिमॉक्रेसी' भी कहा जा रहा है यह इन्हीं उपरोक्त चार स्तम्भों पर टिका हुआ है.
 
परन्तु आज देश में जो हालात दिखाई दे रहे हैं उसे देखकर साफ़ लग रहा है कि अकेले विधायिका ही इस महान लोकतंत्र को अपने ही तरीक़े से संचालित व निर्देशित करना चाह रही है. इंतेहा तो यह है कि संविधान की शपथ लेने वाला कर्नाटक राज्य का भारतीय जनता पार्टी का ही एक सांसद जो एक सार्वजनिक सभा में कहता सुना गया है कि -'हिंदुओं को फ़ायदा पहुंचाने के लिए संविधान से धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाया जा सकता है.
 
अगर यह सब बदलना है, तो सिर्फ़ लोकसभा में बहुमत के वोटों से नहीं होगा. हमें लोकसभा के साथ-साथ राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी.' उधर भाजपा इस सांसद के विरुद्ध कोई कार्रवाई करने के बजाय ख़ुद ही 'अबकी बार 400 पार' का नारा भी दे रही है.  इस पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि -' भाजपा का आख़िरी लक्ष्य बाबासाहेब के संविधान को ख़त्म करना है. राहुल ने कहा कि 'भाजपा सांसद का बयान कि उन्हें 400 सीट संविधान बदलने के लिए चाहिए, नरेंद्र मोदी और उनके ‘संघ परिवार’ के छिपे हुए मंसूबों का सार्वजनिक ऐलान है'.
 
आश्चर्य है कि एक तरफ़ तो वर्तमान सत्ता 'मदर ऑफ़ डिमॉक्रेसी' की  'आज़ादी का अमृत महोत्सव'  मनाने का उद्घोष कर रही है दूसरी तरफ़ न केवल संविधान बदलने बल्कि लोकतंत्र के स्तम्भों को भी धराशायी करने की कोशिश की जा रही है? विधायिका द्वारा अपने को ही सर्वोच्च समझते हुये कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे स्तंभों को भी पंगु बनाने की कोशिश की जा रही है. लोकतंत्र के स्वयंभू चौथे स्तंभ को तो लगभग पूरी तरह अपाहिज बनाकर उसे सत्ता की बैसाखियों पर चलने के लिये मजबूर कर दिया गया है.
 
पूरा विश्व भारतीय मीडिया के 'गोदी मीडिया ' जैसे नये नामकरण से हतप्रभ है. यदि न्यायपालिका का कोई निर्णय संकीर्ण मानसिकता रखने वाले 'सत्ता के चाहवानों' को नहीं भाता तो वे सीधे मुख्य न्यायाधीश को अपमानित करने वाले वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर रहे हैं. स्वतंत्र भारत के इतिहास में न्यायपालिका ख़ासकर मुख्य न्यायाधीश का इस क़द्र अपमान होते पहले कभी नहीं देखा गया.
 
इसी तरह कार्यपालिका से सम्बंधित प्रवर्तन निदेशालय व सी बी आई जैसी अत्यंत महत्वपूर्ण व प्रतिष्ठित संस्थाओं को भी सत्ता कथित तौर पर अपने इशारों पर नचा रही है. प्रवर्तन निदेशालय (ई डी )पर तो यह आरोप है कि गत कुछ वर्षों में ई डी ने जिन नेताओं के विरुद्ध कार्रवाई की उनमें 95 प्रतिशत विपक्षी दलों के ही नेता हैं. पिछले कुछ ही दिनों के अंदर जिस तरह हेमंत सोरेन व अरविंद केजरीवाल जैसे मुख्य मंत्री पद पर आसीन विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार किया गया और असम में हिमन्त बिश्व शर्मा और महाराष्ट्र में अजित पवार जैसे भ्रष्टाचार के आरोपियों पर सत्ता द्वारा 'नज़्र-ए-इनायत की गयी इसे देख कर भी पक्षपात व विद्वेष के पहलू साफ़ नज़र आ रहे हैं. यह भी साफ़ दिखाई दे रहा है कि किस तरह E D व CBI जैसी प्रतिष्ठित व सम्मानित संस्थाओं का दुरूपयोग दल बदल करने से लेकर चुनावी बॉन्ड के नाम पर की गयी 'धन वसूली ' तक के लिये कथित रूप से किया जा रहा. कई ऐसे भी उदाहरण भी हैं कि सत्ता का 'मिशन' पूरा होते ही E D व CBI की कार्रवाई रुकवा दी गयी . यहाँ तक कि अभी भी कई प्रमुख विपक्षी नेता ऐसे हैं जो सत्ता विरोधी होने के बावजूद सिर्फ़ इसलिये खुलकर सत्ता की मुख़ालिफ़त नहीं कर पा रहे क्योंकि उन्हें E D व CBI की कार्रवाई का ख़तरा है. 
 
इसी तरह देश का सबसे बड़ा,सबसे प्राचीन,विश्वसनीय व सबसे प्रतिष्ठित बैंक स्टेटबैंक ऑफ़ इण्डिया इसी सत्ता के दबाव में आकर अपनी साख गँवा बैठा. 2 जून 1806 को बैंक ऑफ़ कलकत्ता के नाम से गठित वर्तमान स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया या SBI ने इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में अपनी प्रतिष्ठा दांव दी है . अनुमानतः इस विशाल उपक्रम में क़रीब 260033 कर्मचारी कार्यरत हैं.  वर्तमान में 20,400 शाखाओं  व लगभग 64,000 से अधिक एटीएम / एवं आहरण मशीन की सुविधा प्रदान करने वाले देश के इस सबसे बड़े बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्डने मामले में चल रही सुनवाई के दौरान 6 मार्च को दायर एक याचिका में पहले तो इसका विस्तृत ब्यौरा देने में अपनी असमर्थता जताते हुए 30 जून तक की मोहलत मांगी थी, जिसे 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया.
 
और अगले दिन 12 मार्च तक यानी 24 घंटों में ही ब्यौरा पेश करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा SBI पर बरती गयी सख़्ती का नतीजा यह हुआ कि इसी दौरान शेयर मार्केट में 6 घंटे के कारोबार के दौरान SBI का शेयर मूल्य गिर गया. देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के शेयर मूल्य में उस समय तेज़ गिरावट देखी गई. एक ही दिन में इसके मार्केट कैपिटलाइजेशन में 13,075 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है. और निवेशकों के 13,075 करोड़ रुपए हवा में उड़ गये.ज़ाहिर है ऐसी स्थिति तभी आती है जब किसी संस्थान या उपक्रम पर विश्वसनीयता का संकट गहराता है और लोगों का विश्वास उठ जाता है. 
 
कार्यपालिका से संबंधित सभी संस्थाओं व संस्थानों व उपक्रमों को आँखें मूँद कर या सरकार के दबाव में आकर काम करने के बजाय अपने विवेक से तथा निष्पक्ष तरीक़े से काम करना चाहिये.  आज जो लोग सरकारें चला रहे हैं और लोकतंत्र के विभिन्न स्तम्भों को ध्वस्त करना चाह रहे हैं कोई ज़रूरी नहीं कि यही हमेशा सत्ता में रहें परन्तु सत्ता के इशारों पर नाचने वाली E D,CBI,SBI जैसी अनेक संस्थाओं के प्रमुखों को यह फ़िक्र ज़रूर करनी चाहिये कि इन्हीं स्वार्थी सत्ताधारियों की वजह से देश विदेश में इन संस्थाओं की जो विश्वसनीयता धूमिल हो रही है क्या उसकी भरपाई यह दाग़दार स्वार्थी व सत्ता के भूखे राजनेता कभी कर सकेंगे ? (यह लेखक के निजी विचार हैं.)
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