अष्टभुजा शुक्ल की कविताएं: कविजन खोज रहे अमराई
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Ashtabhuja Shukla Poems| अष्टभुजा शुक्ल की कविताएं
अष्टभुजा शुक्ल की कविताएं: कविजन खोज रहे अमराई

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जनता मरे , मिटे या डूबे इनने ख्याति कमाई .
शब्दों का माठा मथ-मथकर कविता को खट्टाते ।
और प्रशंसा के मक्खन कवि चाट-चाट रह जाते .
सोख रहीं गहरी मुषकैलें, डांड़ हो रहा पानी ।
गेहूं के पौधे मुरझाते , हैं अधबीच जवानी .
बचा-खुचा भी चर लेते हैं , नीलगाय के झुंड ।
ऊपर से हगनी-मुतनी में , खेत बन रहे कुंड .
कुहरे में रोता है सूरज केवल आंसू-आंसू ।
कविजन उसे रक्त कह-कहकर लिखते कविता धांसू .
बाली सरक रही सपने में , है बंहोर के नीचे ।
लगे गुदगुदी मानो हमने रति की चोली फींचे .
जागो तो सिर धुन पछताओ , हाय-हाय कर चीखो ।
अष्टभुजा पद क्यों करते हो कविता करना सीखो .
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