Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में विपक्ष के लिए शुभ नहीं हो रहा जून-जुलाई! 1 साल में दो बार बदली तस्वीर

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Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में विपक्ष के लिए शुभ नहीं हो रहा जून-जुलाई! 1 साल में दो बार बदली तस्वीर
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Maharashtra Politics Crisis: महाराष्ट्र की राजनीति में बीते एक साल में जो हुआ, उसकी शायद ही कभी किसी ने कल्पना की हो. बीते साल इसी जून जुलाई के महीने में शिवसेना टूटी और उसके दो फाड़ हो गए. इस साल महीना भी जून जुलाई का ही है लेकिन दल और दिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के टूट गए. मई महीने में जहां दावा किए जा रहे थे कि एनसीपी, संगठानात्मक बदलाव से गुजरेगी और चीफ शरद पवार के इस्तीफा देने और वापस लेने के बीच जो इमोशनल ड्रामा चला, उसकी राजनीति में शायद ही कोई मिसाल मिलती हो.

जो लोग तब रो रहे थे और भावुक थे, वो आज मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. जिन्होंने कहा था कि हम शरद पवार के बिना एनसीपी चला सकते, वो आज एनसीपी लेकर ही किसी और के साथ चले गए. महाराष्ट्र की राजनीति में विपक्ष के लिए बीते 2 साल में जून-जुलाई का महीना शुभ साबित नहीं हो रहा है.

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शिवसेना और एनसीपी के टूटने के बाद सवाल तो कई हैं, लेकिन जवाब देने वाले वही घिसा पिटा बयान पेश कर रहे हैं. बात बीते साल की शिवसेना में हुई बगावत की करें तो दावा किया जा रहा था कि बागी, कांग्रेस और एनसीपी के मंत्रियों से परेशान थे. उनका दावा था कि शिवसेना के एजेंडे और जनता तक विकास पहुंचाने में महाविकास अघाड़ी के ये दो अहम घटक, बाधा बन रहे थे. दावा यहां तक था कि शिवसेना के नेताओं और कार्यकर्ताओं की सरकार में सुनी नहीं जा रही है. इसलिए उन्हें बागी रुख अख्तियार करना पड़ रहा है. अब जबकि एनसीपी का बड़ा हिस्सा, अजित पवार की अगुवाई में बीजेपी-शिवसेना (शिंदे गुट) की सरकार में शामिल हो चुका है, तब यह देखना दिलचस्प होगा कि बागी शिवसैनिकों का रुख अब क्या होगा.

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शिवसेना टूटी तो एनसीपी के नेताओं और समर्थकों ने दावा किया कि उनके 'चाणक्य' शरद पवार के आगे भारतीय जनता पार्टी कहीं नहीं टिकेगी और उनकी पार्टी में टूट की आशंका कहीं दूर-दूर तक नहीं है. इतना ही नहीं मई महीने में जब शरद पवार ने अपने इस्तीफे की पेशकश की तो भी यह कहा गया कि ये एनसीपी चीफ, विपक्ष और बीजेपी को अपनी राजनीतिक हैसियत से परिचित कराना चाहते थे.

क्योंकि यही वह समय था, जब अजित पवार समेत कई नेताओं के बीजेपी में जाने की आशंकाएं, संभावनाओं में तब्दील होने लगीं थी. शरद पवार को लगा कि वह अपने इस्तीफे और उसके बाद हुए इमोशनल ड्रामे से पार्टी की डूबती नैया को बचा लेंगे. मगर ये हो न सका और अब ये आलम है कि...

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मौजूदा राजनीतिक समय में महाराष्ट्र शायद इकलौता राज्य होगा, जहां दो प्रमुख दलों के अब दो गुट हैं. शिवसेना पहले ही उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे में बंट चुकी है, तो अब एनसीपी में भी चाचा और भतीजे के अलग-अलग दो गुट हो चुके हैं. इन गुटों में भी अब सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, आगामी लोकसभा चुनाव या महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव तक सीएम बने रहेंगे? क्योंकि अजित पवार जिस ताकत के साथ, बीजेपी के साथ आए हैं, उससे शिंदे पर सत्तारूढ़ दल की निर्भरता थोड़ी ही सही लेकिन कम हो गई है.

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माना जाता है कि अजित पावर, सरकार में भी बड़े पोर्टफोलियो मांग सकते हैं जिससे शिंदे और बीजेपी के बीच खटास बढ़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा शिवसेना के उद्धव गुट के नेता संजय राउत ने दावा किया है कि अब जल्द ही अजित पवार नए सीएम होंगे और एकनाथ शिंदे से बीजेपी पीछा छुड़ा लेगी. राउत के इस बया पर शिंदे गुट और बीजेपी दोनों ने चुप्पी साध रखी है.

1 साल के भीतर ही बड़े राजनीतिक उथल-पुथल देख चुके महाराष्ट्र में आगे क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन जिस तरह से राजनीति करवट बदल रही है, किसी भी दावे, आशंका और संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. सरकार बनने और बिगड़ने में भूमिका नेताओं की होती है लेकिन मतदान, जनता का होता है. जनता का मूड क्या है? ये अब कोई सर्वे तो ढंग से बताने से रहा, इसलिए चुनावों का इंतजार करना ही बेहतर है.

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