क्या है संगम नोज़, योगी आदित्यनाथ ने किया यहाँ जाने से मना

क्या है संगम नोज़, योगी आदित्यनाथ ने किया  यहाँ जाने से मना
Sangam Nose (1)

संगम नोज पर मिट्टी का कटाव होने से घाट का आकार हमेशा बदलता रहता है और यह ढलानदार बना रहता है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 1650 मीटर क्षेत्र में रेत की बोरियां बिछाकर घाट तैयार किया गया है, ताकि अधिक से अधिक लोग स्नान कर सकें।

क्यों यहीं महाकुंभ स्नान की श्रद्धालुओं में रही होड़

संगम नोज़ वह जगह है, जहाँ गंगा और यमुना नदी का मिलन होता है. यही वजह है कि यहां श्रद्धालुओं की सबसे अधिक भीड़ होती है। यहां दोनों नदियों का पानी अलग-अलग रंग में दिखाई देता है. यमुना का पानी जहाँ हल्का नीला होता है, वहीं गंगा का पानी हल्का मटमैला दिखाई देता है। यहां आकर यमुना नदी समाप्त हो जाती है और गंगा में मिल जाती है. कुंभ में इस क्षेत्र को संगम घाट के तौर पर चिह्नित किया गया है, भगदड़ मचने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने श्रद्धालुओं से संगम नोज न जाने की अपील की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि वो यहाँ पहुंचने की कोशिश ना करें और जिस घाट पर हैं, वहीं स्नान करें। लेकिन अमृत स्नान के दिन घाटों पर नावों को बंद कर दिया जाता है ताकि श्रद्धालु नाव लेकर संगम ना पहुंच पाए और श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित किया जा सके। कुंभ की शुरुआत 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के पहले स्नान के साथ हुई थी. दूसरे दिन यानी 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर कुंभ का दूसरा और अखाड़ों का पहला अमृत स्नान था। कुंभ में अमृत स्नान का ख़ास महत्व है. अमृत स्नान को श्राजयोग स्नानश् भी कहा जाता है. महाकुंभ मेला सबसे प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान है।

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प्रयागराज में क्या है संगम नोज
त्रिवेणी संगम में गंगा-यमुना और अदृश्‍य सरस्‍वती के संगम होने से नोज बनता है. इसी स्‍थल को संगम नोज कहा जाता है. यही वह स्‍थल है जिसे त्रिवेणी संगम या संगम नोज कहा जाता है. संगम की महत्‍वा के कारण ही हर कोई यहां पुण्‍य की डुबकी लगाने की मंशा लेकर प्रयागराज पहुंचता है. महाकुंभ में करोड़ों श्रद्धालु संगम नोज में स्‍नान के लिए पहुंच रहे हैं. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान विष्‍णु अमृत से भरा कुंभ (बर्तन) लेकर जा रहे थे. इस दौरान असुरों से छीना-झपटी में अमृत की चार बूंदें गिर गई थीं. यह बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्‍जैन रूपी तीर्थ स्‍थानों में गिरीं. जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं वहां हर तीन-तीन साल पर बारी-बारी से कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. इन तीर्थों में संगम को तीर्थराज के नाम से जाना जाता है. संगम में हर 12 साल पर महाकुंभ का आयोजन होता है।।। 

 

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