सपा ने किया ऐसा ट्वीट कि शर्मसार हो गए खुद अखिलेश और डिंपल यादव!

इस विवादास्पद पोस्ट के सामने आते ही बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया दी और सपा पर जोरदार हमला बोला। खुद ब्रजेश पाठक ने इस पर नाराजगी जताते हुए पोस्ट को शर्मनाक बताया और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को सीधे कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि यह पोस्ट न सिर्फ व्यक्तिगत हमला है बल्कि उनके दिवंगत माता-पिता का भी अपमान है।

ब्रजेश पाठक ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया में लिखा कि क्या यही समाजवादी पार्टी की संस्कृति है? क्या डिंपल यादव इस तरह की स्त्री विरोधी और अपमानजनक सोच को स्वीकार करेंगी? उनके इस बयान के बाद सियासत और भी गरम हो गई।
Read Below Advertisement
सवाल उठने लगे कि क्या अब राजनीति में व्यक्तिगत स्तर पर इतने नीचे गिर कर हमले किए जाएंगे?
बवाल बढ़ता देख सपा ने विवादित पोस्ट को डिलीट कर दिया। लेकिन इसके बाद पार्टी ने एक सफाई भी दी। समाजवादी पार्टी के मीडिया सेल की ओर से जारी बयान में कहा गया कि ब्रजेश पाठक बार-बार समाजवादी पार्टी को डीएनए से जोड़कर अपमानजनक टिप्पणियां करते हैं। इसीलिए उन्हें उन्हीं की भाषा में जवाब दिया गया। हालांकि पार्टी ने यह भी स्वीकार किया कि इस प्रकार की भाषा का उपयोग नहीं होना चाहिए और पोस्ट को डिलीट करना उचित समझा।
सपा की ओर से यह भी कहा गया कि जब आप किसी कांच पर पत्थर फेंकते हैं तो उसके टुकड़े खुद आपकी तरफ भी आते हैं। पार्टी ने यह भी तर्क दिया कि ब्रजेश पाठक सपा को लॉ एंड ऑर्डर, महिला सुरक्षा और गुंडागर्दी के मुद्दों पर डीएनए से जोड़ते आए हैं, ऐसे में जवाब भी उन्हीं की शैली में दिया गया।
सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या सोशल मीडिया की इस लड़ाई में सियासी दल अपनी सीमाएं भूलते जा रहे हैं? जहां एक तरफ डीएनए जैसे शब्दों का इस्तेमाल राजनीतिक विचारधारा पर कटाक्ष करने के लिए होता था, अब वही शब्द अपमान और व्यक्तिगत हमलों का जरिया बनते जा रहे हैं।
इस पूरे मामले से एक बात तो साफ है कि 2027 के चुनावों की तैयारी में अब भाषाई मर्यादाएं टूटने लगी हैं। राजनीतिक दल अपने विरोधियों पर हमला करते हुए भाषा की मर्यादा को ताक पर रख रहे हैं।
सवाल यही है कि क्या चुनावी रणनीति में अब इस तरह की “बिलो द बेल्ट” टिप्पणियों को ही हथियार बनाया जाएगा? क्या इससे आम जनता का भरोसा राजनीति से उठेगा या फिर यह सिर्फ एक सोशल मीडिया की लड़ाई बनकर रह जाएगी?
फिलहाल डीएनए की इस सियासत ने प्रदेश में गर्मी बढ़ा दी है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में इसका राजनीतिक असर किस पार्टी पर पड़ता है — सपा को नुकसान होगा या सहानुभूति मिलेगी? और क्या बीजेपी इसे बड़ा मुद्दा बनाकर चुनावी रणनीति में भुना पाएगी?