मृतक आश्रित की नौकरी के नाम पर चार साल तक खेल! रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ा गया बाबू

इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि कुछ अधिकारियों के लिए संवेदना, इंसानियत और जिम्मेदारी जैसे शब्दों का कोई महत्व नहीं रह गया है।
चार साल तक सिर्फ चक्कर लगवाता रहा बाबू
पूरा मामला सहारनपुर की रहने वाली शशिबाला तिवाया से जुड़ा है, जो स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत थीं। दुर्भाग्यवश उनका निधन हो गया, और नियम के अनुसार उनकी एक बेटी को मृतक आश्रित कोटे में नौकरी मिलनी चाहिए थी। लेकिन यहां से शुरू होता है भ्रष्टाचार का खेल।
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50 हजार की डिमांड, 10 हजार में हुआ ट्रैप
परिवार को बार-बार चक्कर लगवाने के बाद बाबू ने ₹50,000 की रिश्वत की मांग की। थक-हारकर मृतक महिला के पति मनोज कुमार ने एंटी करप्शन विभाग से संपर्क किया। विभाग ने योजना बनाई और मनोज कुमार को ₹10,000 की रकम के साथ भेजा गया।
जैसे ही राकेश कुमार ने यह पैसे लिए, टीम ने उसे मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी सीएमओ कार्यालय में उस समय हुई जब बाबू को अंदाजा तक नहीं था कि उसकी काली करतूत का पर्दाफाश होने वाला है।
गिरफ्तारी के बाद भी नहीं दिखा कोई पछतावा
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि जब बाबू को गिरफ्तार किया गया, तो उसके चेहरे पर कोई पछतावे का भाव नहीं था। हाथ जेब में डाले, बिल्कुल ठसक के साथ वह खड़ा रहा जैसे कोई अपराध नहीं किया हो, बल्कि कोई पुरस्कार जीत लिया हो।
यह रवैया यह दर्शाता है कि भ्रष्टाचार कुछ लोगों के लिए आदत बन चुका है, और उन्हें इस बात का कोई मलाल नहीं होता कि उनके कारण किसी परिवार की उम्मीदें टूट गईं।
एंटी करप्शन टीम की बड़ी कार्रवाई
एंटी करप्शन ब्यूरो मेरठ की टीम ने थाना सदर बाजार में इस बाबू के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है। शुरुआती जांच में पता चला है कि आरोपी बाबू के खिलाफ पहले भी भ्रष्टाचार से जुड़े कई सुराग सामने आए हैं।
टीम अब यह भी जांच कर रही है कि क्या इस बाबू ने पहले भी इसी तरह के मामलों में रिश्वत ली है? क्या और भी पीड़ित परिवार उसके चंगुल में फंसे हैं?
सीएमओ कार्यालय में हड़कंप
इस कार्रवाई के बाद सीएमओ कार्यालय में हड़कंप मच गया है। आम जनता और कर्मचारियों के बीच यह घटना चर्चा का विषय बन गई है। सूत्रों के मुताबिक आरोपी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी जल्द शुरू हो सकती है।
सवाल यह भी उठ रहा है कि यदि मनोज कुमार शिकायत न करते तो क्या इस बाबू की करतूतें ऐसे ही चलती रहतीं?
मृतक आश्रित की उम्मीदों पर पानी फेरने वाला सिस्टम
सरकारी नियमों के अनुसार यदि कोई सरकारी कर्मचारी सेवा के दौरान निधन हो जाए, तो उसके परिवार के किसी एक सदस्य को नौकरी दी जाती है ताकि परिवार का भरण-पोषण हो सके।
लेकिन जब ऐसे मामलों में भी भ्रष्टाचार हावी हो जाए, तो सोचिए कि एक आम नागरिक किस मानसिक और आर्थिक पीड़ा से गुजरता होगा।
चार साल तक एक परिवार को केवल दौड़ाया जाता रहा, और जब उम्मीदें खत्म हो गईं तब उन्हें एंटी करप्शन के पास जाना पड़ा। यह घटना सिर्फ एक बाबू की नहीं, बल्कि सिस्टम की संवेदनहीनता का भी आईना है।
क्या होगी अब कार्रवाई?
अब देखना होगा कि सिर्फ गिरफ्तारी के बाद मामले को शांत कर दिया जाएगा या आरोपी पर सख्त कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी।
क्योंकि यह सिर्फ रिश्वत लेने का मामला नहीं है, बल्कि एक पीड़ित परिवार की भावनाओं और अधिकारों के साथ खिलवाड़ का मामला है।
लोगों की मांग है कि आरोपी के खिलाफ न सिर्फ विभागीय कार्रवाई हो बल्कि ऐसी सज़ा दी जाए जिससे दूसरों को भी सबक मिले।
यह घटना एक बार फिर हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि भ्रष्टाचार ने हमारे सिस्टम को कितना खोखला कर दिया है।
मृतक आश्रित जैसी संवेदनशील प्रक्रिया को भी पैसे के लालच में घसीटना किसी भी समाज के लिए शर्मनाक है। जरूरत है कि ऐसे मामलों में त्वरित और कड़ी कार्रवाई हो ताकि कोई और शशिबाला का परिवार फिर ऐसे दर्द से न गुज़रे।
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