जब सवाल सुनने नहीं हैं तो प्रेस वार्ता का क्या मतलब?
पत्रकारों के सवालों को महत्व नहीं देना- लोकतंत्र में यह स्थिति शुभ संकेत नहीं
कोरोना महामारी के दौरान सरकार पर उठते सवालों को देखते हुये जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मण्डल स्तर पर समीक्षा कर रहे हैं वहीं राजनीतिक हलकों में यह सरगर्मियां तेज हैं कि आने वाले 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर मंत्रिमण्डल विस्तार के साथ ही अनेक निर्णय लिये जा सकते हैं जिससे जनता का भरोसा कायम रखा जा सके.
गुरूवार को मुख्यमंत्री योगी ने बस्ती और सिद्धार्थनगर जनपद में कोरोना मरीजों के उपचार की व्यवस्था का निरीक्षण कर आवश्यक निर्देश दिया. मुख्यमंत्री के भ्रमण से स्थितियों में कितना सुधार होगा इसके लिये तो इंतजार करना होगा किन्तु इतना तो हुआ ही कि प्रशासन सक्रिय हुआ और कुछ गांवों में साफ सफाई का अभियान चला. शहर के प्रमुख स्थानों के साथ ही अस्पतालों में विशेष साफ सफाई की गई.इस प्रेस वार्ता का क्या अर्थ?
मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से भी संवाद बनाया, अपनी बातों को रखा किन्तु पत्रकारों के सवालों को सिरे से खारिज कर दिया. भाजपा नेताओं, जन प्रतिनिधियों में यह नई शैली विकसित हुई है कि वे पत्रकारों के सवालों को महत्व नहीं देना चाहते किन्तु लोकतंत्र में यह स्थितियां शुभ संकेत नहीं है. जब पत्रकारों को सवाल पूछने का मौका ही नहीं दिया जायेगा तो प्रेस वार्ता का अर्थ ही क्या रहा.
बहरहाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक साथ कोरोना महामारी, दीमागी बुखार और सियासी दांवपेंच से भी दो चार होना है. मंत्रिमण्डल का विस्तार होगा या नहीं होगा, होगा भी तो उसका स्वरूप क्या होगा इसके लिये तो इंतजार ही करना होगा. यह समय मुख्यमंत्री योगी के भी अग्नि परीक्षा का दौर है क्योंकि न जाने क्यों अधिकांश विधायक से लेकर मंत्री तक कोरोना के मुश्किल समय में घरों में दुबके रहे और पीड़ित जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया गया था. ऐसे परिवार जिन्होने कुप्रबंधन के कारण अपनों को खोया है उन्हें गम भुलाने में वक्त लगेगा.