यूपी में धान किसान परेशान! 2369 रुपये समर्थन मूल्य के बावजूद 1600–1800 में बिक रही फसल
खरीद में देरी से बढ़ी किसानों की मुश्किल
खरीफ विपणन वर्ष 2025-26 के अंतर्गत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों जैसे हरदोई, लखीमपुर खीरी और सीतापुर में धान की सरकारी खरीद शुरू हो चुकी है. लेकिन राजधानी लखनऊ में यह प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हो पाई है. इसका सीधा असर किसानों की जेब पर पड़ा है. सरकार ने इस साल धान का समर्थन मूल्य 2369 रुपये प्रति क्विंटल निश्चित किया है, व्यापारी किसानों से मात्र 1600 से 1800 रुपये प्रति क्विंटल पर ही खरीद रहे हैं.
सूनी पड़ी मंडियां
लखनऊ की मुख्य मंडियों में धान की आवक बेहद कम है, लेकिन आसपास के इलाकों में बिचौलियों की खूब चल रही है. खासकर बख्शी का तालाब (बीकेटी) क्षेत्र में हर दिन सैकड़ों क्विंटल धान बिक रहा है. बीते एक महीने में केवल बीकेटी क्षेत्र से लगभग 3000 क्विंटल धान बाहर के जिलों और राज्यों तक भेजा जा चुका है. यानी जहां सरकारी खरीद केंद्र शांत हैं, वहीं निजी व्यापारी खेतों से सीधे माल उठाकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं.
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धान खरीद की नोडल अधिकारी व एडीएम (नागरिक आपूर्ति) ज्योति गौतम ने इस विषय पर जानकारी देते हुए बताया कि इस बार जिले के स्थानीय राइस मिलर्स को प्राथमिकता दी जाएगी. उन्होंने कहा कि 1 नवंबर से जिले में 30 केंद्रों पर धान की खरीद शुरू कर दी जाएगी जिससे किसानों को उचित मूल्य मिल सके और बाजार में स्थिरता बनी रहे.
किसान बोले — “मजबूरी में बेचना पड़ा सस्ता धान”
भौली गांव के किसान धीरेंद्र प्रताप सिंह और देवरी रुखारा के मकरंद सिंह यादव का कहना है कि सरकारी खरीद शुरू न होने के कारण उन्हें अपने धान को कम दामों में बेचना पड़ा. वे बताते हैं कि सरकारी केंद्रों पर पंजीकरण और सत्यापन की प्रक्रिया इतनी पेचीदा है कि कई किसान उसमें फँसना ही नहीं चाहते.
कृषि विशेषज्ञ सत्येंद्र कुमार सिंह के अनुसार, रबी की बुवाई के लिए किसानों को खाद, बीज और कीटनाशक के पैसे चाहिए होते हैं. जब खरीद देर से शुरू होती है, तो वे मजबूर होकर बिचौलियों के पास जाते हैं. सरकार की धीमी प्रक्रिया और जागरूकता की कमी किसानों को बड़ा घाटा दे रही है.
राइस मिलर्स भी परेशानी में
सिर्फ किसान ही नहीं, राइस मिल संचालक भी धान की कम खरीद से प्रभावित हैं. डालीगंज के मिलर घनश्याम अग्रवाल और चिनहट के राजेंद्र सिंह बताते हैं कि सरकारी खरीद घटने से सालभर मिलों में कुटाई के लिए पर्याप्त धान नहीं मिल पाता. पहले लेवी सिस्टम के चलते संतुलन बना रहता था, लेकिन अब स्थिति कठिन होती जा रही है.
उनका कहना है कि अगर सरकार नीति नहीं बदल सकती, तो कम से कम खरीद समय पर शुरू हो और अवधि भी बढ़ाई जाए. राजेंद्र सिंह ने कहा “हर महीने मिल चलाने में 4-5 लाख रुपये का खर्च होता है. अगर धान नहीं मिलेगा, तो मिल बंद करने की नौबत आ जाएगी.”
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शोभित पांडेय एक समर्पित और अनुभवशील पत्रकार हैं, जो बीते वर्षों से डिजिटल मीडिया और ग्राउंड रिपोर्टिंग के क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। खबरों की समझ, तथ्यों की सटीक जांच और प्रभावशाली प्रेज़ेंटेशन उनकी विशेष पहचान है। उन्होंने न्यूज़ राइटिंग, वीडियो स्क्रिप्टिंग और एडिटिंग में खुद को दक्ष साबित किया है। ग्रामीण मुद्दों से लेकर राज्य स्तरीय घटनाओं तक, हर खबर को ज़मीनी नजरिए से देखने और उसे निष्पक्षता के साथ प्रस्तुत करने में उनकी विशेष रुचि और क्षमता है।