योगी सरकार की योजनाओं में अफसरों का खेल! मनचाहे ठेकेदारों को मिल रहे करोड़ों के ठेके
मिशन का उद्देश्य था पारदर्शिता
साल 2019 में लागू किए गए ईपीसी मिशन के अंतर्गत तय हुआ था कि 50 करोड़ से अधिक की परियोजनाएं बिना देरी और बिना अतिरिक्त लागत के पूरी की जाएंगी. इससे पहले टेंडर प्रक्रिया में भ्रष्टाचार, देरी और बार-बार लागत बढ़ाने के मामले सामने आते थे.
इस मिशन की शुरुआत के बाद कई बड़ी कंपनियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी. परिणामस्वरूप, टेंडर 15% तक सस्ते दामों पर निपटने लगे. कई प्रमुख प्रोजेक्ट जैसे 14 मेडिकल कॉलेज और 18 मंडलीय अटल आवासीय विद्यालय तय समय पर और कम लागत में पूरे हुए.
उदाहरण के तौर पर, अटल आवासीय विद्यालय की लागत 75 करोड़ तय थी, पर यह लगभग 70 करोड़ में ही पूरा हो गया, जिससे 5 करोड़ की बचत हुई. इसी तरह, मेडिकल कॉलेजों का औसत खर्च 275 करोड़ के बजाय 250 करोड़ रुपये में पूरा हुआ, जिससे प्रत्येक कॉलेज पर 20-25 करोड़ रुपये की बचत हुई.
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जब परियोजनाओं में करोड़ों रुपये की बचत हुई, तो कुछ अधिकारियों को खटकने लगा कि यह पैसा सरकारी खजाने में क्यों जा रहा है. जानकारों के अनुसार, लगभग 1500 करोड़ रुपये से अधिक की बचत हुई, जिससे अफसरों को मिलने वाला 5-8% तक का कमीशन बंद हो गया.
यहीं से गड़बड़ियां शुरू हुईं. कुछ वरिष्ठ इंजीनियर और अधिकारी अपने निजी फायदे के लिए नए रास्ते तलाशने लगे. ठेकेदारों से मिलकर उन्होंने कमीशन सिस्टम को फिर से जीवित करने की कोशिश शुरू की.
मुख्यमंत्री कार्यालय तक को भ्रमित किया जा रहा
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ अधिकारी अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर न केवल मिशन की मूल भावना को बिगाड़ रहे हैं, बल्कि कैबिनेट और मुख्यमंत्री कार्यालय तक को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं. भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति को अब उन्हीं लोगों ने कमजोर कर दिया है, जिन पर इसे लागू करने की जिम्मेदारी थी.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस योजना को खुद की निगरानी में पारदर्शी रखने की पहल की थी. लेकिन अब हालात उलट गए हैं. अधिकारियों ने अपने मनमुताबिक प्रशासनिक आदेशों के जरिए चहेते ठेकेदारों को टेंडर देना शुरू कर दिया है.
रातों-रात टेंडर की शर्तें बदली जा रही हैं, प्रेजेंटेशन और इंटरव्यू जैसी प्रक्रियाएं जोड़ी गई हैं, जिससे मनचाहे ठेकेदारों को पास और बाकी कंपनियों को बाहर किया जा सके. यहां तक कि उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम जैसी विश्वसनीय एजेंसियों को भी दरकिनार कर दिया गया, जिससे पसंदीदा कंपनियों को 10% से अधिक लागत पर काम दिया जा सके.
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शोभित पांडेय एक समर्पित और अनुभवशील पत्रकार हैं, जो बीते वर्षों से डिजिटल मीडिया और ग्राउंड रिपोर्टिंग के क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। खबरों की समझ, तथ्यों की सटीक जांच और प्रभावशाली प्रेज़ेंटेशन उनकी विशेष पहचान है। उन्होंने न्यूज़ राइटिंग, वीडियो स्क्रिप्टिंग और एडिटिंग में खुद को दक्ष साबित किया है। ग्रामीण मुद्दों से लेकर राज्य स्तरीय घटनाओं तक, हर खबर को ज़मीनी नजरिए से देखने और उसे निष्पक्षता के साथ प्रस्तुत करने में उनकी विशेष रुचि और क्षमता है।

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