बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर: सरकार 300 करोड़ चाहती है ठाकुर जी के कोष से, सेवायतों ने जताई कड़ी आपत्ति

मामले की गंभीरता को देखते हुए सेवायत पुजारी रजत गोस्वामी ने हाई कोर्ट में एक रिट याचिका भी दायर की थी, जिसमें साफ तौर पर आग्रह किया गया कि सरकार कॉरिडोर जरूर बनाए, लेकिन मंदिर का पैसा इसमें कतई न लगाया जाए।
क्या है बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर का प्रस्ताव?
सरकार की योजना है कि बांके बिहारी मंदिर को भव्य और दिव्य बनाया जाए, जिससे श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं मिल सकें। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या और भीड़ को देखते हुए सरकार का मानना है कि एक सुव्यवस्थित कॉरिडोर बनाना जरूरी है, जो मंदिर तक पहुँचने में सहायता करेगा।
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ठाकुर जी के नाम पर जमा कोष से सरकार को क्यों ऐतराज है?
सेवायत पुजारी रजत गोस्वामी के अनुसार, बांके बिहारी मंदिर का फंड सन 1939 से लगातार ऑडिट के तहत संचालित होता रहा है। ठाकुर जी के नाम पर जमा एफडी से पूरे साल की पूजा, उत्सव, बिजली बिल, कर्मचारियों का वेतन, ठाकुर जी के वस्त्र, सेवाएं और प्रसाद जैसे कार्य किए जाते हैं।
वर्तमान में मंदिर की कुल आय ₹360 करोड़ है। यदि सरकार इसमें से ₹300 करोड़ कॉरिडोर के लिए ले लेती है, तो केवल ₹60 करोड़ ही शेष बचेंगे। सेवायतों का सवाल है कि इतने कम फंड में मंदिर की साल भर की व्यवस्था कैसे सुचारु रूप से चलाई जाएगी?
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने भी सरकार से यह सवाल पूछा कि जब सरकार अयोध्या और काशी विश्वनाथ जैसे बड़े प्रोजेक्ट चला रही है और वहाँ मंदिरों का पैसा नहीं लिया गया, तो बांके बिहारी मंदिर के मामले में ऐसा क्यों किया जा रहा है?
कोर्ट ने सरकार से यह स्पष्ट जानकारी माँगी कि क्या काशी और अयोध्या में मंदिर कोष का उपयोग हुआ था, लेकिन सरकार की तरफ से इस पर कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया गया।
सेवायतों की आपत्ति का असल कारण
सेवायतों का तर्क है कि मंदिर का पैसा ठाकुर जी की सेवा के लिए होता है, न कि सरकारी परियोजनाओं के लिए। उन्होंने कहा कि यदि सरकार वास्तव में श्रद्धालुओं की भलाई चाहती है तो वह अपने फंड से कॉरिडोर बनाए, न कि ठाकुर जी की एफडी में हाथ डाले।
उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल, चीफ स्टैंडिंग काउंसिल और एडिशनल एडवोकेट जनरल पेश हुए, लेकिन सरकार ने कोर्ट के निर्देश के बावजूद किसी भी प्रकार की मीडिएशन या संवाद की कोशिश नहीं की।
क्या सरकार मंदिरों का नियंत्रण चाहती है?
सेवायतों के अनुसार, सरकार ने उच्च न्यायालय में दिए एफिडेविट में यह भी कहा है कि उत्तर प्रदेश के 129 मंदिरों का नियंत्रण उन्हें दे दिया जाए, क्योंकि इन सबमें किसी न किसी प्रकार का विवाद है। यह भी सवाल खड़ा करता है कि क्या सरकार इन मंदिरों को धीरे-धीरे अधिग्रहण की दिशा में ले जा रही है?
क्या मंदिर के आस-पास के देवालयों को भी खतरा है?
सेवायतों की चिंता यह भी है कि मंदिर के आसपास के अन्य देवालयों और ठाकुर जी की मूर्तियों का क्या होगा? क्या सरकार काशी की तर्ज पर वहां से भी ठाकुर जी को विस्थापित करेगी? इस संबंध में सरकार ने न कोई चर्चा की और न ही किसी प्रकार का रोडमैप प्रस्तुत किया।
कुल मिलाकर मामला कहाँ अटका है?
सरकार की योजना है कि वह 3 साल में यह कॉरिडोर बनाकर तैयार करेगी। इसके लिए वह ठाकुर जी के नाम से भूमि अधिग्रहण भी करेगी और रजिस्ट्री भी ठाकुर जी के नाम से होगी, क्योंकि पैसा उन्हीं का लगेगा। लेकिन सेवायतों का सवाल है कि अगर सरकार पैसा मंदिर से लेगी, जमीन ठाकुर जी के नाम पर होगी, और मंदिर का मैनेजमेंट भी अपने हाथ में लेना चाहती है, तो यह श्रद्धालुओं की आस्था और मंदिर की परंपरा पर सीधा हस्तक्षेप होगा।
बांके बिहारी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है। सरकार को श्रद्धालुओं की सुविधा की चिंता है, यह सराहनीय है। लेकिन मंदिर के कोष को बिना सेवायतों की सहमति के इस्तेमाल करना न केवल धार्मिक भावनाओं का अपमान है, बल्कि वर्षों से चली आ रही मंदिर की पारंपरिक व्यवस्था को भी संकट में डालना है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या अंतिम निर्णय लेता है – क्या सरकार अपने फंड से कॉरिडोर बनाएगी या फिर ठाकुर जी के नाम पर जमा धन से यह कार्य किया जाएगा?