Afghanistan में चिंता वाली सरकार

बहरहाल, अब अफगानिस्तान में कोई लोकतांत्रिक सरकार नहीं है, अब 'इस्लामिक अमीरातÓ का राज है. कहना कठिन है कि वहां भविष्य में चुनाव होंगे या नहीं. ऐसे में अमेरिका व रूस भी चिंतित हैं. वे अफगानिस्तान के मसले पर भारत के संपर्क में हैं. अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के प्रमुख भारत की यात्रा कर चुके हैं और रूसी सुरक्षा परिषद के सचिव भी विदेश मंत्री व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से मिल चुके हैं. हालांकि, अमेरिका, रूस व चीन आदि किसी देश ने तालिबानी सरकार को फिलहाल मान्यता नहीं दी है. आज होने वाले वर्चुअल ब्रिक्स सम्मेलन में भी रूस, चीन के साथ अफगान मामले पर भारत से बातचीत होने के आसार हैं. बहरहाल, वह भ्रम टूटा है कि नई तालिबान सरकार पिछली से भिन्न होगी, क्योंकि सरकार में शामिल अधिकांश मंत्री पिछली तालिबान सरकार में भी शामिल थे, जिसमें पाक की बड़ी भूमिका है.
बहरहाल, अंतरिम सरकार बनने में गतिरोध के बाद आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद के काबुल पहुंचने के बाद साफ हो गया है कि तालिबानी पाक की सक्रिय भागीदारी से आगे बढ़े हैं. पंजशीर के कथित पतन में पाक की भूमिका पर अफगानिस्तान में सवाल उठे हैं. पाक हस्तक्षेप के खिलाफ काबुल व अन्य शहरों में प्रदर्शन भी हुए हैं और तालिबानियों ने प्रदशर्नकारियों पर बाकायदा फायरिंग की है.
बहरहाल नई सरकार में मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद प्रधानमंत्री, मुल्ला अब्दुल गनी बरादर व मुल्ला अब्दुल सलीम हनफी को उपप्रधानमंत्री, शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई को उप-विदेश मंत्री बनाया गया है. जबकि हिब्तुल्लाह अखुंदजादा कहने को सरकार में सर्वोच्च नेता होंगे, लेकिन उनकी भूमिका सिर्फ मार्गदर्शक की ही होगी. भारत की सबसे बड़ी चिंता सिराजुद्दीन हक्कानी होंगे, जिन्हें 2008 में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हमले का मास्टर माइंड माना जाता है. वहीं 2011 में काबुल स्थित अमेरिकी दूतावास के निकट नेटो के अड्डे पर हमले का भी दोषी बताया जाता है जो आज भी अमेरिका की कुख्यात आतंकवादियों की सूची में शामिल है, जिस पर बाकायदा मोटा इनाम रखा गया था. ऐसे में आईएसआई के बेहद करीबी सिराजुद्दीन हक्कानी के गृहमंत्री बनने से भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है. उसके संगठन में बड़ी संख्या पाक आतंकवादियों की है.
वैसे भी अफगानिस्तान में लश्कर, जैश, आईएसआईएस व अल-कायदा के गुटों की सक्रियता किसी से छिपी नहीं है. मुंबई से लेकर पुलवामा व पठानकोट हमलों में लश्कर व जैश का हाथ रहा है. हमलों में आईएसआई की भूमिका भी उजागर हुई है. ऐसे में भारतीय चिंता वाजिब भी है. वैसे भी तालिबान प्रवक्ता कह चुका है कि कश्मीर समेत दुनिया के किसी भी भाग में मुस्लिमों के लिये आवाज उठाना हमारा अधिकार है. भले ही आज भारत अफगानिस्तान की राजनीति को प्रभावित करने की स्थिति में न हो, लेकिन अफगान भूमि में सक्रिय जैश व लश्कर जैसे आतंकी संगठन तालिबान की मदद से भारत को प्रभावित करने की स्थिति में हैं. वैसे भी तालिबान की सोच अमेरिका व अफगान सरकार की मदद करने के चलते भारत विरोधी रही है. भारत को तालिबान से निपटने के लिये व्यावहारिकता का सहारा लेना होगा.
ताजा खबरें
About The Author
