राहत की कॉल

दरअसल, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों को एजीआर बकाया के तौर पर 1,19 292 करोड़ रुपये के भुगतान करने को कहा था, जिसमें एक बड़ा हिस्सा भारती एयरटेल व वोडाफोन का था। इसके एक हिस्से का भुगतान इन कंपनियों ने किया भी था। अब सरकार की पहल के बाद टेलीकॉम कंपनियों को बैंकों से ऋण लेने और इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं को तर्कसंगत बनाने की पहल भी की गई है। इसके अलावा केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ड्रोन व वाहन उद्योग की विनिर्माण क्षमता में वृद्धि के लिये 26,058 करोड़ रुपये का उत्पादन आधारित प्रोत्साहन यानी पीएलआई योजना को भी हरी झंडी दी है। इसमें वैकल्पिक ऊर्जा वाले वाहन मसलन इलेक्ट्रिकल व हाइड्रोजन फ्यूल सेल वाहन भी शामिल होंगे। इस पैकेज का बड़ा हिस्सा जहां वाहन उद्योग को मिलेगा, वहीं एक सौ बीस करोड़ रुपये ड्रोन उद्योग के लिये आवंटित होंगे। सरकार की मंशा है कि देश में कलपुर्जा उद्योग का विकास किया जाये। इससे जहां उत्पादन व निर्यात को बढ़ावा मिलेगा, वहीं देश में रोजगार का भी विस्तार किया जा सकेगा। सरकार का सोचना है कि इस कदम से वैश्विक आपूर्ति श्रृखंला में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल सकेगा, जिससे वैश्विक वाहन कारोबार में भारत की भागेदारी बढ़ेगी। दूसरी ओर सरकार चाहती है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में ऑटो क्षेत्र की हिस्सेदारी में वृद्धि हो। वह चाहती है कि इसे सात फीसदी से बढ़ाकर बारह फीसदी के करीब लाया जाये। उम्मीद है कि सरकार के इस फैसले से अर्थव्यवस्था को तेजी मिलेगी। दूरसंचार कंपनियों के लिये घोषित राहत पैकेज के बाद टेलीकॉम कंपनियों के शेयरों में तेजी देखी गई। शेयर बाजार रिकॉर्ड स्तर पर बंद हुआ। निस्संदेह कर्ज में डूबा दूरसंचार क्षेत्र लंबे समय से इस राहत की प्रतीक्षा कर रहा था। साथ ही दूरसंचार क्षेत्र में निवेश की छूट मिलने से कंपनियां नए विदेशी निवेशक तलाश सकेंगी। इस नये निवेश से देश में 5-जी तकनीक के क्षेत्र में भी प्रगति हो सकेगी। साथ ही देश में इन्फ्रास्ट्राक्चर में सुधार का लाभ देश के करोड़ों मोबाइल उपभोक्ताओं को भी मिलेगा।
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