मुंबई बनाम हैदराबाद मैच में अंपायर के फैसले ने मचाया बवाल, रिकल्टन के आउट होने के बाद नो बॉल की गूंज से उठे सवाल

मुंबई और हैदराबाद के बीच हुए हालिया आईपीएल मुकाबले में एक अजीबो-गरीब फैसला सामने आया, जिसने पूरे सोशल मीडिया को दो हिस्सों में बांट दिया है। फैंस के बीच बहस छिड़ी हुई है कि क्या अंपायर ने सही निर्णय लिया या फिर यह किसी तरह की ‘खेल भावना’ के खिलाफ था।
पूरा मामला जुड़ा हुआ है रियान रिकल्टन से, जो जीशान अंसारी के पहले ओवर में आउट होकर मैदान छोड़ चुके थे। लेकिन जैसे ही वह मैदान से बाहर जा रहे थे, अचानक अंपायरों ने गेंद की जांच शुरू की और थोड़ी देर बाद फैसला आता है कि वह गेंद नो बॉल थी। इस वजह से रिकल्टन को फिर से खेलने का मौका मिल गया। उन्होंने इसके बाद रन भी बनाए, और मैच का रुख भी एकतरफा हो गया।
अब असली सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हुआ था, जिस पर अंपायरों ने नो बॉल दिया?
दरअसल, नियम कहता है कि यदि विकेटकीपर गेंद को पकड़ते वक्त स्टंप्स से आगे निकल जाए और गेंद अभी भी "इन प्ले" हो, तो वह नो बॉल मानी जाती है। यही हुआ इस मामले में। जब क्लासन ने गेंद पकड़ी, तो उनका हाथ स्टंप्स के आगे आ चुका था, जिससे वह डिलीवरी नियमों के मुताबिक अवैध हो गई। अंपायर अनिल चौधरी ने खुद कमेंट्री में इस नियम की पुष्टि की।
यहां तक सब ठीक था, लेकिन असली विवाद तब शुरू हुआ जब इस फैसले की जांच एक खास अपील या संदर्भ के बाद की गई। कमेंट्री में जब अनिल चौधरी से पूछा गया कि क्या हर बॉल पर ऐसी चेकिंग होती है, तो उन्होंने कहा कि नहीं, सिर्फ रिव्यू के दौरान ही चेकिंग होती है।
यहीं से सवाल उठता है कि अगर हर बॉल पर यह जांच नहीं होती, तो फिर रिकल्टन वाली गेंद पर इतनी बारीकी से क्यों देखा गया? क्या मुंबई के मुकाबलों में तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है? और अगर हां, तो क्या यह बाकी टीमों के साथ न्याय है?
लोग सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। कोई कह रहा है कि नियम सही है लेकिन उसका पालन सभी मैचों में एकसमान नहीं हो रहा, तो कोई मानता है कि अंपायरों की नज़र मुंबई के मैचों में कुछ ज्यादा ही पैनी होती है।
यह पहली बार नहीं हुआ है जब मुंबई के मुकाबले में अंपायरिंग को लेकर सवाल उठे हों। पिछले मैच में स्टार्क की एक गेंद को नो बॉल करार दिया गया था, जबकि ठीक वैसी ही गेंद जब विग्नेश पुथूर ने डाली थी, तब नो बॉल नहीं दी गई थी। उस पर भी काफी बहस हुई थी।
इस पूरे विवाद के बीच हैदराबाद की टीम पर इसका असर साफ नजर आया। उन्होंने पहले बल्लेबाजी करते हुए सिर्फ 162 रन बनाए। अभिषेक शर्मा ने 28 गेंदों में 40 रन बनाए, हेड ने 29 गेंदों में 28 रन बनाए। दोनों का स्ट्राइक रेट वैसा नहीं था जैसा टी20 में होना चाहिए।
क्लासन, नितीश रेड्डी, अनिकेत सभी ने धीमी बल्लेबाजी की, और अंत में जब जरूरत थी एक फाइटिंग टोटल की, तो वहां भी टीम चूक गई। अनिकेत ने जरूर कोशिश की कि आखिरी ओवरों में रन गति बढ़ाई जाए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
इसके बाद मुंबई ने इस लक्ष्य का पीछा बेहद आसानी से कर लिया। उन्होंने बिना किसी दबाव के रन बनाए और मुकाबला एकतरफा बना दिया। यह जीत उनके लिए राहत लेकर आई है और अब वे प्लेऑफ की दौड़ में दोबारा गंभीर दावेदार बन सकते हैं।
वहीं हैदराबाद के लिए यह हार किसी बड़े झटके से कम नहीं है। इस हार के बाद उनकी आईपीएल 2025 की यात्रा लगभग समाप्त मानी जा रही है।
हालांकि इस मैच में असली चर्चा का केंद्र बना वही फैसला, जिसने रिकल्टन को दोबारा खेलने का मौका दिया। लोगों का मानना है कि इस एक निर्णय ने न सिर्फ मुकाबले का रुख बदला, बल्कि अंपायरिंग की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े कर दिए।
अगर आईपीएल जैसी बड़ी लीग में हर बॉल पर समान रूप से तकनीक का इस्तेमाल नहीं होता और कुछ विशेष परिस्थितियों में ही नियमों की याद आती है, तो यकीनन ये फैंस और खिलाड़ियों दोनों के लिए चिंता का विषय है।
अब देखना होगा कि आने वाले मैचों में अंपायरिंग के स्तर में कोई सुधार आता है या फिर इस तरह की बहसें यूं ही चलती रहेंगी।