Azadi Ka Amrit Mahotsav : 5 दिनों तक बांसी में रहे चंद्रशेखर आजाद, जानें उस दौरान क्या-क्या हुआ?
सुभाष पााण्डेय
स्वतंत्रता संग्राम के दूसरे दौर में भी सिद्धार्थनगर जिले के भू-भाग पर क्रांति की ज्वाला लगातार धधकती रही. यहां के अनेक सपूतों ने आजादी के लिए अपना सर्वत्र न्योछावर किया था. सत्याग्रहियों का जोश देखकर एक अंग्रेजपरस्त राजा चंगेरा जिसे ऑनरेरी मजिस्ट्रेट का दर्ज प्राप्त था की हत्या करने के लिए क्रांतिवीर चंद्रेशखर आजाद भी एक बार बांसी आए थे. यह और बात थी कि एक पखवारे की मेहनत के बाद वह अपने मिशन में विफल रहे थे.
सिद्धार्थनगर क्षेत्र में अंग्रेज परस्त राजाओं और सांमतों का जुल्म चरम पर था. नेपाल सीमा से सटे बढ़नी के बरगदवा गांव में बलभद्र पांडेय, शोहरतगढ़ क्षेत्र के अयोध्या यादव जैसे सत्याग्रहियों पर अंग्रेजी पिट्ठुओं का अत्याचार जारी था. उसी समय बांसी के निकट स्थित ग्राम तेजगढ़ राजा चंगेरा की ओर से फूंक दिया गया था. चंद्रशेखर आजाद को हो रहे अत्याचारों की सूचना बराबर मिलती रहती थी.
बस्ती गजेटियर के मुताबिक बांसी के राजा चंगेरा के अत्याचार की खबर सुनकर परेशान चंद्रशेखर नौ सितंबर 1929 को बांसी आ धमके. वह दिन भर बांसी में राजा चंगेरा की हत्या करने की फिराक में घूमते रहते थे और रात में मुंशी हर नारायण लाल, तिवारीपुर निवासी पंडित शेषदत्त त्रिपाठी के घर अलग-अलग समय में रुक जाते थे. दोनों लोगों को पता नहीं था कि पढ़ाई के दिनों में बनारस के बैजनाथ शिव मंदिर में बगल की कोठी में रहने वाला चंदू नामक युवक ही वास्तव में चंद्रशेखर आजाद है. बहरहाल चंद्रशेखर आजाद लगभग 15 दिन बांसी में रहे. बताते हैं कि राजा चंगेरा को अपनी हत्या का अहसास हो गया था, इसलिए वह लखनऊ भाग गया था. यह जानकारी होने के बाद आजाद ने बांसी रहने की जरूरत नहीं समझी और चले गए थे.
इस बीच सत्याग्रह में गिरफ्तार मुंशी हर नारायण लाल बनारस जेल भेजे गए तब क्रांतिकारी आजाद की धोती और लंगोट दिए थे. उस समय भी मुलाकात के बाद भी आजाद ने नारायण लाल को अपनी असलियत नहीं बताई थी. बताया जाता है कि 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेंड पार्क (अब चंद्रशेखर आजाद पार्क) में शहीद हुए चंद्रशेखर आजाद की फोटो देखने के बाद वह जान सके कि बनारस और बांसी में उनके निकट रहने वाला चंदू ही क्रांतिवीर चंद्रशेखर आजाद ही थे.
पेड़ पर बैठ कर आजाद पढ़ते थे किताबें
कुदारन गांव के बाग में दिन में पेड़ पर बैठकर चंद्रशेखर आजाद किताब पढ़ते थे. रात में राजा चंगेरा की टोह लेने के लिए निकल पड़ते थे. आजाद की मौजूदगी की सूचना किसी प्रकार राजा चंगेरा तक पहुंची तो वह चुपके से बांसी छोड़ कर फरार हो गया था.
आजाद की धोती व गुप्ती बांसी में ही छूट गई थी
अपनी योजना में असफल होने के बाद पुलिस से बचते हुए इटवा रोड से होकर गोबरहवा पहुंचे और वही से चंद्रशेखर आजाद गायब हो गए थे. जाते समय उनकी धोती और गुप्ती शेषदत्त त्रिपाठी के यहां ही छूट गई थी उन्होंने बांसी निवासी अपने एक सेनानी मित्र लाला हरनारायन को पत्र लिखा था कि उनकी धोती और गुप्ती छूट गई है उसे भेज दो.
राजा चंगेरा ने सेनानियों के पैर में रस्सी बांध कर घोड़े से खिंचवाया था
1922 में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध असहयोग आंदोलन जोरों पर था. गांव के लोग तो संगठित थे ही उनके साथ आसपास के गांवों भगौतापुर,अडगडहा, मधुकरपुर, हर्रैया के प्रमुख लोग भी संगठन में शामिल हो गए थे. गोरखपुर की ओर से आकर 13 कांग्रेसियों ने राजा चंगेरा के अत्याचार के खिलाफ सत्याग्रह शुरू कर दिया था. सत्याग्रह में मिठवल के बाबा ढोढे गिरि भी शामिल हो गए थे. राजा चंगेरा ने इन सभी के पैर में रस्सी बंधवाकर घोड़ों से मीलों तक घसिटवाया था.
तहसील का खजाना लूटने व बांसी थाना पर कब्जा करने की बनाई थी योजना
राजा चंगेरा से बदला लेने के लिए 1942 में करो या मरो नारे का नारा के साथ 21 अगस्त की रात बांसी के आर्य समाज मंदिर में कांग्रेसी वालियंटरों ने एक गुप्त बैठक रात 12 बजे द्वारिका यादव की अध्यक्षता में की थी. योजना के अनुसार बांसी तहसील का खजाना लूटने, बांसी-उस्का टेलीफोन लाइन काटने, बांसी थाने पर कब्जा जमाने की रणनीति बनी थी. उसी रात मधुकरपुर गांव के बीच से बांसी-उस्का के बीच के टेलीफोन तार को काटकर द्वारिका यादव ने गिरा दिया था.
तीन बार फूंका गया था तेजगढ़ गांव
स्वतंत्रता आंदोलन में बांसी तहसील के तेजगढ़ गांव के योगदान को नहीं नकारा जा सकता. अग्रेंजों के जुल्म का विरोध करने पर राजा चंगेरा ने न केवल तेजगढ़ गांव को तीन बार फुंकवा दिया था बल्कि गांव के स्वतंत्रता सेनानी द्वारिका प्रसाद यादव समेत 56 वीर किसानों को यातनाएं दी थी . उनसे 500 रुपया सामूहिक जुर्माना भी वसूल किया गया था. महात्मा गांधी के विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार के आह्वान को सुनकर तेजगढ़ गांव में नमक बनाने की फैक्ट्री शुरू की गई थी. राजा चंगेरा ने अपनी फौज व बांसी पुलिस का सहयोग लेकर तेजगढ़ गांव में चल रही नमक बनाने की भट्ठी एक माह चलने के बाद तोड़वा दी थी और पूरे गांव को दोपहर में ही फूंकवा दिया था. द्वारिका यादव जब सेना के लोगों लोगों के हाथ नहीं लगे तब उनके पिता अयोध्या प्रसाद को खूब मारापीटा और घर से निकाल दिया था. उनके साथ कई अन्य के घरों में दूसरों को बसा दिया था.
द्वारिका ने खेाला था राजा के खिलाफ मोर्चा ’
रतन सेन डिग्री कॉलेज के प्राचार्य मिथिलेश त्रिपाठी व इतिहास के प्रवक्ता बताते हैं कि तेजगढ़ निवासी द्वारिका यादव ने लोगों को संगठित करते हुए सामंती राजा चंगेरा के अत्याचार को बंद करने के लिए आंदोलन चलाया था. द्वारिका का सहयोग गांव के ही विशुन सहाय पांडेय, जगन्नाथ मुराव, सीताराम बढ़ई व भग्गल कुर्मी ने खुलकर किया था. राजा ने सेना को भेजकर तेजगढ़ गांव को दोबारा फुंकवा दिया था. चगेरा ने तेजगढ़ गांव में नमक कि फैक्ट्री को बन्द कर तोड़वा दिया था इस प्रकार बांसी और आस पास के दर्जनों गांवों का स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत ही अभूतपूर्व योगदान रहा.द्वारिका यादव, विशुन सहाय पांडेय, रामशंकर बुकसेलर समेत तेजगढ गांव के 49, भगौतापुर, अडगडहा और मधुकरपुर गांव के दो-दो व हर्रैया गांव के एक कुल 56 किसानों को बांसी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. द्वारिका यादव, विशुन व रामशंकर को जेल भेजकर 56 किसानों से सामूहिक तौर पर 500 रुपया जुर्माना वसूला करते हुए यातनाएं दी गई थी.