आतंकवाद के आरोपियों द्वारा शहीदों का अपमान किया जाना चिंताजनक

निर्मल रानी
विवादित,अनैतिक,अमर्यादित तथा असंवैधानिक बयान देना गोया इन दिनों एक फ़ैशन सा बन चुका है। ख़ास तौर पर ऐसे लोगों ने जिन्होंने लोकसेवा क्षेत्र में ऐसा कोई उल्लेखनीय कार्य न किया हो जिसकी वजह से उन्हें शोहरत मिल सके, इस श्रेणी के लोग समय समय पर कुछ कुछ ऐसे बयान देते रहते हैं जो विवादित व अमर्यादित होने के बावजूद टी आर पी परस्त मीडिया में छा जाते हैं। और बैठे बिठाए ऐसे नेताओं को 'यशस्वी ' होने का अवसर मिल जाता है। और जब ऐसा व्यक्ति सत्ता से सांसद /विधायक के रूप में न केवल सत्ता के शीर्ष से जुड़ा हो बल्कि उसकी संकीर्ण वैचारिक सोच का भी वाहक हो फिर तो चाहे वह राष्ट्रपति महात्मा गाँधी को अपमानित करे,चाहे गाँधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे का महिमामंडन करे,या पाकिस्तान प्रेषित आतंकवादियों की गोली से शहीद होने वाले किसी अशोक चक्र से सम्मानित होने वाले शहीद को अपमानित करे या लोकतांत्रिक तरीक़े से चुनी जाने वाली सरकार व उस राज्य के मतदाताओं का अपमान करे।
प्रज्ञा ठाकुर ने एक बार फिर अशोक चक्र सम्मानित अमर शहीद हेमंत करकरे को देशभक्त मानने से इनकार कर दिया है। उन्होंने फिर कहा है कि मुंबई हमले के वक्त शहीद हुए हेमंत करकरे को वह देशभक्त नहीं मानती हैं। मध्य प्रदेश के सीहोर में आपातकाल की वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने मीसाबंदियों को संबोधित करते हुए कहा कि 'एक इमरजेंसी 1975 में लगी थी और एक इमरजेंसी जैसी स्थिति 2008 में तब बनी थी जब मालेगांव ब्लास्ट में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को जेल में बंद किया गया था। उन्होंने कहा कि करकरे को लोग देशभक्त कहते हैं, लेकिन जो वास्तव में देशभक्त हैं वह उनको देशभक्त नहीं कहते। करकरे ने मेरे आचार्य, जिन्होंने मुझे कक्षा आठवीं में पढ़ाया, उनकी उंगलियां तोड़ दी थीं।' इससे पूर्व लोकसभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने शहीद करकरे की शान में गुस्ताख़ी करने वाले इसी तरह के बयान दिए थे। बल्कि 2019 में तो उन्होंने यहाँ तक कहा था कि चूंकि हेमंत करकरे ने उनके साथ हिरासत के दौरान बुरा बर्ताव किया था इस कारण उन्होंने करकरे को श्राप दिया था, इसी लिए करकरे की मृत्यु हो गई। अब एक बार फिर उनके 'सांस्कृतिक राष्ट्रवादी ' संस्कारों ने शहीद करकरे के लिए उन्हें वही भाषा बोलने के लिए मजबूर किया है जिसकी उन्हें सीख व शिक्षा मिली है।
इसी तरह प्रज्ञा ठाकुर ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के लिए कहा था कि 'नाथूराम गोडसे देशभक्त थे, हैं और रहेंगे। इस बयान से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आहत दिखाई दिए थे। प्रधानमंत्री ने कहा था ''गांधी के बारे में या गोडसे पर जो भी बातें की गयी। इस प्रकार जो भी बयान दिये गये हैं, ये बहुत ही खराब हैं, खास प्रकार से घृणा के लायक हैं, आलोचना के लायक हैं।"उन्होंने कहा, ''सभ्य समाज के अंदर इस प्रकार की भाषा नहीं चलती। इस प्रकार की सोच नहीं चल सकती। इसलिये ऐसा करने वालों को सौ बार आगे सोचना पड़ेगा।" मोदी ने कहा, ''दूसरा उन्होंने (प्रज्ञा) माफी मांग ली, अलग बात है। लेकिन मैं अपने मन से माफ नहीं कर पाऊंगा।"
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पिछले दिनों बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की सरकार क्या बन गयी कि प्रज्ञा ने ममता की तुलना 'ताड़का' से कर डाली। और भी अनेक असंसदीय व अमर्यादित शब्दों का प्रयोग इन्होंने ममता बनर्जी व बंगाल के मतदाताओं के प्रति किया। प्रज्ञा ठाकुर द्वारा बार बार इस तरह की घटिया भाषा बोलना,और प्रधानमंत्री द्वारा उनके प्रति रोषपूर्ण वक्तव्य देना ,परन्तु इन सब बातों की परवाह किये बिना बार बार इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल करते रहना, इससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि उन्हें उच्च स्तरीय वैचारिक संरक्षण हासिल है अन्यथा हेमंत करकरे जैसे महान शहीद की शहादत का अपमान करने का साहस देश के किसी नेता में नहीं। करकरे की शहादत पर प्रज्ञा ठाकुर के आपत्तिजनक बयान और उसपर भाजपा नेताओं की ख़ामोशी और ऐसे लोगों के विरुद्ध कोई कार्रवाई न करने से यह सवाल ज़रूर उठता है कि कहीं ऐसे बयानों के लिए पार्टी की ही मूक सहमति तो नहीं ? (यह लेखक के निजी विचार हैं.)