Wayanad News: वायनाड त्रासदी से सबक लेने की जरूरत
-डाॅ. ओ.पी. त्रिपाठी
केरल के वायनाड में आए भारी भूस्खलन से प्रलय मच गया है. हादसे में अब तक 300 के करीब लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, हजारों लोग घायल हैं और मलबे में दबे लोगों की तलाश चल रही है. देर रात आई आपदा ने जन-धन की हानि को बढ़ाया है. इस आपदा ने 11 साल पहले आई केदारनाथ त्रासदी की यादें ताजा कर दी हैं. जो रात में सोया था, उसे उठने तक का मौका नहीं मिला और सुबह मलबे में मिला. चारों तरफ बर्बादी ने इन गांवों की खूबसूरती को उजाड़ दिया. भूस्खलन से उपजी बड़ी मानवीय त्रासदी इस बात का प्रमाण है कि प्राकृतिक रौद्र को बढ़ाने में मानवीय हस्तक्षेप की भी बड़ी नकारात्मक भूमिका रही है. भूस्खलन और उसके बाद तेज बारिश से राहत व बचाव के कार्यों में बाधा आने से फिर स्पष्ट हुआ है कि कुदरत के रौद्र के सामने आज भी सारी मानवीय व्यवस्था बौनी साबित होती है.वैज्ञानिक बार-बार चेता रहे हैं कि भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा का पैटर्न बदलता जा रहा है. वर्षा अक्सर एक छोटे से क्षेत्र में तीव्र, अल्पकालिक या गरज के साथ हो रही है. वजह भी दक्षिण-पूर्व अरब सागर के गर्म होने की बताई जा रही है. मंगलवार को केरल जिले के वायनाड में अपने साथ किए जा रहे खिलवाड़ से गुस्साई प्रकृति भी रौद्र रूप में सामने आ गई. प्रकृति के इस रूप ने केरल की हरियाली से लबरेज उन तमाम तस्वीरों को मटियामेट कर दिया जिनके माध्यम से केरल को सर्वाधिक समृद्ध जैव विविधता वाले राज्य के रूप में पहचाना जाता है.
जलवायु-परिवर्तन ने भी बारिश की स्थिति और भू-स्खलन की तीव्रता को बढ़ाया है. एक शोध में कहा गया है कि जो वायनाड साल भर बूंदाबांदी और मानसून की बारिश वाला ठंडा, नम वातावरण वाला इलाका होता था, जलवायु-परिवर्तन के कारण अब सूखा, गर्म, लेकिन मानसून के दौरान भारी, तीव्र बारिश वाला क्षेत्र बन गया है. इस बदलाव से भू-स्खलन का जोखिम बढ़ा है. 2018 के मानसून में भी खूब बारिश हुई थी, तब करीब 400 लोगों की जान चली गई थी. उसके बाद केरल में भू-स्खलन वाला क्षेत्र बढ़ गया है.
प्रथम दृष्टया इस तबाही को एक प्राकृतिक आपदा के रूप में वर्णित किया जा रहा है, लेकिन जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इलाके और वन क्षेत्र को लगातार हुए नुकसान जैसे कारकों के प्रभाव को भी नकारा नहीं जा सकता. उल्लेखनीय है कि बीते वर्ष भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा जारी भूस्खलन के मानचित्र के अनुसार भारत के भूस्खलन की दृष्टि से सबसे अधिक संवेदनशील जिलों में दस जिले केरल में स्थित हैं. जिसमें वायनाड 13वें स्थान पर हैं.
वर्ष 2021 के एक अध्ययन के अनुसार केरल में सभी भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील इलाके पश्चिमी घाट में स्थित हैं. जिसमें इडुक्की, एर्नाकुलम, कोट्टायम, वायनाड, कोझिकोड और मलप्पुरम जिले शामिल हैं. जाहिर है इस चेतावनी को तंत्र ने गंभीरता से नहीं लिया.निस्संदेह, मौजूदा परिस्थितियों में जरूरी है कि विभिन्न राज्यों में ऐसी आपदाओं से बचाव की तैयारी करने और निपटने के लिये तंत्र को बेहतर ढंग से सुसज्जित करने के तौर-तरीकों पर भी युद्धस्तर पर काम किया जाए. यदि ऐसी आपदाओं से बचाव के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित कर ली जाती है तो जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकता है.
विडंबना है कि केरल के मामले में ऐसा नहीं हो पाया है. इसमें दो राय नहीं कि हाल के वर्षों में देश में आपदा प्रबंधन की दिशा में प्रतिक्रियाशील तंत्र सक्रिय हुआ है और जान-माल की क्षति को कम करने में कुछ सफलता भी मिली है, लेकिन इस दिशा में अभी बहुत कुछ करना बाकी है. इसके साथ ही पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास और पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रभाव के बारे में विशेषज्ञों की चेतावनियों पर ध्यान देने की जरूरत है. जिसके लिये राज्य सरकारों की सक्रियता, उद्योगों की जवाबदेही और स्थानीय समुदायों की जागरूकता की जरूरत है.
जाने कितनी ही बार हमने ‘ईश्वर के अपने देश’ के रूप में केरल को देखा-सुना है. यह इसलिए भी क्योंकि प्रकृति ने इस राज्य को सौंदर्य के अनगिनत विशेषणों से अलंकृत किया है. यही वजह है कि केरल घरेलू पर्यटकों के लिए सबसे पसंदीदा जगह है. वायनाड में हुए भयावह भूस्खलन की तस्वीरों ने सबको इस कद्र बेचैन कर दिया है कि अब जरूरत उन कारणों की तलाश की हो गई है जिनकी वजह से यह विनाशलीला सामने आई.
ऐसी आपदाएं हमें सबक देती हैं कि भले ही हम कुदरत का कोहराम न रोक सके लेकिन जन-धन की हानि को कम करने के प्रयास जरूर किये जा सकते हैं. वायनाड के इलाके में तमाम केंद्रीय व राज्य की एजेंसियां तथा सेना और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक राहत-बचाव कार्य में जुटे हैं. घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया जा रहा है और विस्थापितों को राहत शिविरों में पहुंचाया जा रहा है. साथ ही लापता लोगों को तलाशने का काम युद्ध स्तर पर जारी है. हालांकि, तेज बारिश व विषम परिस्थितियों से राहत कार्य में बाधा पहुंच रही है.
भारत में हर सरकार और नागरिक विकास चाहते हैं. उसके लिए जो निर्माण-कार्य किए जाते हैं, वे बेलगाम और अनियोजित हंै. खनन तक धड़ल्ले से कराया जाता है. पहाड़ को काटते-तोड़ते रहेंगे, तो ऐसे ‘प्रलय’ कैसे रोके जा सकते हैं? इस पर सोचना चाहिए. देश के अन्य हिस्सों से भी बरसाती कहर के समाचार आ रहे हैं. बिहार हर वर्ष बाढ़ के कहर से सहम जाता है. वहां पर हर वर्ष बड़ी तादाद में जान और माल का नुकसान होता है. इस कहर से बिहार को बचाने के लिए इस वर्ष के बजट में विशेष आर्थिक सहायता दी गई है. अन्य राज्यों को भी उदारता के साथ विशेष आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए. खासकर हिमाचल पिछले वर्ष भी बुरी तरह प्रभावित हुआ था, और इस वर्ष भी बरसात का कहर उसने देखा है. उसे केंद्रीय मदद की सख्त जरूरत है.
वायनाड की त्रासदी का बड़ा सबक यह है कि हमें प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण ढंग से इस्तेमाल के प्रति नये सिरे से प्रतिबद्ध होना होगा. लेकिन विडंबना यह है कि विगत के वर्षों में वायनाड में कई बार हुई भूस्खलन की घटनाओं को राज्य शासन ने गंभीरता से नहीं लिया है. यह अच्छी बात है कि सभी राजनीतिक दलों व केंद्र तथा राज्य सरकार ने आपदा के प्रभावों से मुकाबले में एकजुटता दिखायी है. ऐसे मामलों में राजनीति होना ठीक भी नहीं है. (यह लेखक के निजी विचार हैं.)