ये देशभक्त कर रहे ओलंपिक आंदोलन को भारत में मजबूत
The Olympic Games 2024
आर.के. सिन्हा
ओलंपिक खेल दुनिया को जोड़ते हैं, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है. इसके बहाने हर चार सालों के बाद दुनियाभर के खेल प्रेमियों को एक से बढ़कर एक खिलाड़ियों के श्रेष्ठ प्रदर्शन को देखने का मौका भी मिलता है. जो खिलाड़ी ओलंपिक खेलों में पदक प्राप्त करते हैं, वे सारी दुनिया में अपनी छाप छोड़ते हैं. हमारे अपने देश में फिलहाल ओलंपिक खेलों की विभिन्न स्पर्धाओं को खेल प्रेमी ध्यान से देख रहे हैं. लेकिन, कुछ लोग और संस्थाएं भी ओलंपिक आंदोलन को गति प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती हैं. उनमें राजधानी के सेंट स्टीफंस कॉलेज को स्थापित करने वाली संस्था दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी (डीबीएस) और सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ के पूर्व महानिदेशक अश्वनी कुमार जैसे महानुभावों का शानदार योगदान रहा है. जब देश मनु भाकर के कांस्य पदक जीतने पर खुशी मना रहा था, तब राजधानी में ब्रदर्स हाउस में भी मनु भाकर की जीत का जश्न मनाया जा रहा था. वहां रहने वाले ईसाई पादरी इस बात पर और भी खुश थे कि मनु के कोच जसपाल राणा उनसे संबंधित हैं. दरअसल, राणा सेंट स्टीफेंस कॉलेज के छात्र रहे हैं, जिसे दिल्ली ब्रदरहुड सोसाइटी (डीबीएस) द्वारा स्थापित किया गया था.
अब बात कर लें अश्वनी कुमार जी की. वे भारत में ओलंपिक खिलाड़ियों की भावी पीढ़ी को प्रेरित करते रहेंगे. वे बीएसएफ के दूसरे महानिदेशक थे. उन्होंने 1972 के म्युनिख ओलंपिक के बाद ओलंपिक खेलों के सुरक्षा पहलुओं की निगरानी की थी. वे मॉन्ट्रियल (1976), मॉस्को (1980), लॉस एंजिल्स (1984), बार्सिलोना (1992), अटलांटा (1996) और सिडनी (2000) खेलों की सुरक्षा टीम का नेतृत्व कर रहे थे. 1972 के म्यूनिख ओलंपिक खेलों में फिलिस्तीनी आतंकवादियों ने ओलंपिक गांव पर हमला करके इजरायली टीम के दो सदस्यों को मार भी डाला था.
म्यूनिख के बाद, ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन ओलंपिक खेलों को बिना किसी अप्रिय घटना के आयोजित करने की मांग उठने लगी थी . तब अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने अश्वनी कुमार से खेलों के सुरक्षा पहलुओं की देखभाल करने का अनुरोध किया. आईओसी को पता था कि वे पुलिसिंग जानते हैं. हॉकी प्रेमी और इम्पीरियल पुलिस (आईपी) अधिकारी (अब भारतीय पुलिस सेवा), अश्वनी कुमार ने म्यूनिख के बाद के ओलंपिक खेलों में, ओलंपिक गांवों और स्टेडियमों सुरक्षा को बढ़ा दिया था. यह भी सच है कि बढ़ी हुई सुरक्षा ने उस उत्सवपूर्ण और खुले माहौल को कम कर दिया जो ओलंपिक का मूल है. लेकिन, म्यूनिख में हादसे के बाद आयोजकों के पास कोई विकल्प भी तो नहीं था.
अश्वनी कुमार को देश ने पहली बार तब जाना था जब उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के हत्यारे सुच्चा सिंह को नेपाल में जाकर पकड़ा था. कैरों राजधानी में अपने मित्र से मिलकर वापस चडीगढ़ जा रहे थे. रास्ते में सोनीपत के पास राई में उनका सुच्चा सिंह और उनके साथियों ने कत्ल कर दिया था. अश्वनी कुमार नेपाल में सुच्चा सिंह का पीछा करते हुए काफी दूर तक भागे थे. दोनों में हाथापाई हुई. पर अश्वनी कुमार के घूंसों की बौछार ने सुच्चा सिंह को पस्त कर दिया था. इससे पहले भारत सरकार ने उन्हें 1951 में सौराष्ट्र के खूंखार डाकू भूपत गिरोह को खत्म करने के लिए भेजा था. वहां पर भी वे सफल हुए थे. हॉकी में तो मानों उनकी जान बसती थी. उन्होंने अपनी एक बेटी का नाम ही हॉकी रख दिया था. पंजाब पुलिस में रहते हुए वे भारतीय हॉकी संघ के अध्यक्ष बने. वहां से वे फिऱ भारतीय ओलंपिक संघ से भी जुड़ गए.
बहरहाल, सारा देश यह उम्मीद कर रहा है कि पेरिस ओलंपिक खेलों में भारत के हिस्से में पूर्व के ओलंपिक खेलों से अधिक पदक मिलेंगे. (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)