जिन पे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे

जिन पे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे
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तनवीर जाफ़री
भारतवर्ष गत कई दशकों से पाक प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है. पाकिस्तान द्वारा प्रेषित आतंकियों ने जहाँ सैन्य ठिकानों,सैन्य कर्मियों उनके परिजनों पर किये हमले किये वहीँ मुंबई में रेलवे स्टेशन व ताज होटल जैसे सार्वजनिक स्थलों  पर 26 /11 जैसा बड़ा हमला कर अपने दुस्साहस का परिचय देने की भी कोशिश की. परन्तु इनके अलावा पाकिस्तानी आतंकी आक़ाओं ने देश के रघुनाथ मंदिर,अक्षरधाम मंदिर,संकटमोचन मंदिर व अयोध्या जैसे कई प्रमुख पवित्र धर्मस्थलों को भी निशाना बनाया.राजनैतिक विश्लेषकों द्वारा उस समय यह लिखा व कहा जाता था कि पाकिस्तान व उसके पोषित गुर्गों द्वारा भारत में धर्मस्थलों को इसलिये निशाना बनाया जा रहा है ताकि भारत में हिन्दुओं व मुसलमानों के बीच नफ़रत की खाई गहरी की जा सके. देश के इन दोनों समुदायों के बीच नफ़रत व हिंसा का माहौल पैदा किया जा सके. 

परन्तु देश में साम्प्रदायिक शक्तियों की सक्रियता तथा पाकिस्तान के तमाम कुत्सित दुष्प्रयासों के बावजूद हमारे देश में साम्प्रदायिक एकता व सद्भाव पूरी मज़बूती से बरक़रार था. परन्तु गत एक दशक में हमारे देश में सांप्रदायिक शक्तियों का जिसतरह उभार हुआ है,ख़ास तौर पर ऐसे लोगों को जिसतरह सत्ता संरक्षण हासिल हो रहा है उन्हें देखकर तो साफ़ ज़ाहिर होता है कि अब हमारे ही देश में सक्रिय राजनैतिक संरक्षण प्राप्त असामाजिक तत्वों ने पाकिस्तानी आतंकी रणनीतिकारों का काम आसान कर दिया है. बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि भारत में अनेक धर्मस्थलों पर बड़े से बड़ा हमला करने के बावजूद भारतीय समाज में जो विघटन पाकिस्तान तीन दशकों में पैदा नहीं कर सका वह काम भारत में ही रहने वाले 'स्वयंभू राष्ट्रवादियों ' ने महज़ एक दशक के भीतर ही कर डाला.

पूरे देश में अब तक मॉब लिंचिंग की सैकड़ों घटनायें हो चुकी हैं. गौतस्करी के नाम पर सैकड़ों लोगों की जानें ली जा चुकी हैं. और नफ़रत की यह आग जो कि उम्मीद की जा रही थी कि शायद कोरोना काल के बाद क़ुदरत के क़हर से डर कर शायद ठंडी पड़ जायेगी परन्तु ठीक इसके विपरीत सत्ता व मीडिया के संयुक्त नेटवर्क ने इसे और भी प्रज्वलित कर दिया. कोरोना काल में मीडिया ने 'कोरोना जिहाद ' नामक नई  शब्दावली गढ़ डाली. लोगों के घरों के फ़्रिज व पतीलों में झाँक कर गौमांस ढूँढा जाने लगा. दो अलग अलग समुदायों के लड़कों व लड़कियों का साथ रहना,पढ़ना,घूमना पार्कों में बैठना सब मुश्किल हो गया. और नफ़रत की यह आग अब तो इतनी ज़्यादा फैल चुकी है कि इसने अनैतिकता की सभी हदें पार कर दी हैं.

 अब तो यदि हत्यारा व बलात्कारी बहुसंख्य समाज का है और पीड़ित परिवार या बलात्कार व हत्या की शिकार किशोरी अल्पसंख्यक समाज की तो यही सत्ता संरक्षित असामाजिक तत्वों की भीड़ हत्यारे व बलात्कारी के पक्ष में खुल कर खड़ी हो जाती है. इतना ही नहीं इस भीड़ में मंत्री नेता सांसद व विधायक तक शरीक ही नहीं होते बल्कि ऐसी भीड़ का नेतृत्व करते हैं.

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 कभी अल्पसंख्यक समाज के किसी रेहड़ी सब्ज़ी वाले की पिटाई कर दी जाती है तो कभी किसी  मेहनतकश रिक्शे वाले को मारा जाता है. कभी किसी ग़रीब की दाढ़ी जबरन काट दी जाती है तो कभी जय श्री राम का नारा लगाने के लिये बाध्य किया जाता है. जिन्हें ख़ुद पूरा वंदे  मातरम याद नहीं वह अल्पसंख्यकों को वन्देमातरम पढ़ने के लिये मजबूर करते हैं. और इंसानियत तो तब और भी शर्मसार होती है जब किसी मुस्लिम बच्चे को कई हट्टे कट्टे लोगों द्वारा मिलकर सिर्फ़ इस बहाने पीटा जाता है कि उसने मंदिर के बाहर लगे सार्वजनिक वाटर कूलर से अपनी प्यास बुझाने के लिये पानी क्यों पी लिया ? शायद इन 'राष्ट्रवादियों ' को भाई कन्हैया सिंह जी का वह मानवता पूर्ण मार्मिक इतिहास पता नहीं जबकि वह मैदान-ए-जंग में अपने दुश्मनों के घायल सैनिकों को भी पानी पिला कर मानवता की मिसाल पेश करते थे.

देश की एकता को बाधित करने वाले इन तत्वों को तथा इन्हें प्रोत्साहित करने व उकसाने वाले नेताओं को जिस प्रकार 'पदोन्नति ' दी जा रही है उससे भी सन्देश साफ़ है कि असामाजिक तत्व जो चाहे करें उनका सरकार या क़ानून अथवा प्रशासन कुछ नहीं बिगाड़ने वाला. इसीलिये अब इसतरह की घटनायें लुक छुप कर नहीं की जातीं बल्कि पूरे योजनाबद्ध तरीक़े से होती हैं. किसी ऐसी हिंसक घटना को अंजाम देने से पहले बाक़ायदा इसकी वीडीओ बनाई जाती  है. और ऐसी हिंसा पूर्ण  वीडीओज़ को सोशल मीडिया पर अपलोड कर उन्हें वायरल कराया जाता है. उसके बाद यही अपराधपूर्ण वीडीओ देशवासियों को धर्म के आधार पर विभाजित करने व समाज में फूट डालने का सबब बनती हैं.

 नतीजतन देश के किसी दूसरे क्षेत्र से कुछ ही दिन बाद इसी तरह की एक और घटना की ख़बर आ जाती है. पिछले दिनों मध्य प्रदेश के इंदौर में एक अल्पसंख्यक समुदाय के चूड़ी बेचने वाले ग़रीब युवक की बेरहमी से पिटाई की घटना को ही देखिये. सुनियोजित तरीक़े से कैसे उसकी पिटाई का वीडीओ बनाया गया. वीडीओ वायरल होने पर किस तरह मध्य प्रदेश के गृह मंत्री महोदय आक्रमणकारी असामाजिक तत्वों के बचाव में यह कहते हुए उतरे कि चूड़ी बेचने वाले की पिटाई का कारण यह था कि वह अपना असली नाम छुपा कर कोई हिन्दू नाम  रखकर चूड़ियां बेच रहा था. यह आरोप भी लगाया गया कि चूड़ी बेचने वाले ने किसी लड़की से छेड़ छाड़ की थी.

उपरोक्त घटनाक्रम में यदि यह मान भी लिया जाये कि चूड़ी विक्रेता युवक अपना नाम बदल कर चूड़ियां बेच रहा था तो भी सत्ताधीशों को इस बात पर शर्म आनी चाहिये कि उन्होंने  व उनके समर्थक अतिवादियों ने ही आख़िर ऐसा भयपूर्ण वातावरण क्यों पैदा किया जिसकी वजह से समाज के एक वर्ग में  इतना भय व्याप्त हो गया कि वह ग़रीब अपनी रोज़ी रोटी कमाने के लिये धर्म आधारित अपनी असली पहचान छुपाने के लिये मजबूर हुआ ? बात यहीं ख़त्म नहीं हुई बल्कि जब पुलिस ने राष्ट्रव्यापी आलोचना,शोर शराबे व हंगामे के बाद वायरल वीडीओ के आधार पर कुछ आक्रमणकारी अतिवादियों की गिरफ़्तारी की तो उन के समर्थन में हज़ारों लोगों की भीड़ हिंदुत्ववादी ध्वज लेकर सड़कों पर उतर आयी और  आपत्तिजनक नारे लगाते हुये हमलावरों को छुड़ाने की मांग करने लगी. ठीक उसी तरह जैसे 6दिसंबर 2017 को राजस्थान में लव जिहाद के नाम पर अफ़राज़ुल की  दिनदहाड़े हत्या करने व उसे ज़िंदा जला कर मार डालने वाले के हत्यारे शंभु रैगर के समर्थन में भीड़ उतर आई थी. उसी तरह जैसे जनवरी 2018 में कठुआ में ग़रीब मज़दूर परिवार की 8 वर्षीय कन्या आसिफ़ा बानो के सामूहिक बलात्कारियों व हत्यारों के समर्थन में तिरंगा झण्डा हाथों में लेकर सत्ताधारी मंत्रियों व विधायकों की एक भीड़ सड़कों पर उतर आयी थी.ऐसे और भी दर्जनों उदाहरण मौजूद हैं.

क्या इस तरह की घटनायें पाकिस्तानी मंसूबों को पूरा नहीं करतीं ? यह भी कहा जा सकता है कि धार्मिक उन्माद फैलाने के पाकिस्तानी दुष्प्रयासों को उतनी सफलता नहीं मिल सकी जितनी सत्ता समर्थित इन तत्वों को मिल रही है. दंगाइयों,हत्यारों,बलवाईयों व समाज को तोड़ने वाले तत्वों पर से मुक़द्द्मे वापस लेना,पुलिस द्वारा इनके विरुद्ध कार्रवाई न करना,ऐसे लोगों को गोदी मीडिया द्वारा हीरो बनाकर पेश करना,उन्हें राजनैतिक पद नवाज़ना यह सब बक़ौल साक़िब लखनवी इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये पर्याप्त है कि -

बाग़बाँ ने आग दी जब आशियाने को मेरे. 
जिन पे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे.. (यह लेखक के निजी विचार हैं)

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