अब फेंके नहीं जाएंगे टूटे बेकार बर्तन, खादी आयोग ने निकाला हल

अब फेंके नहीं जाएंगे टूटे बेकार बर्तन, खादी आयोग ने निकाला हल
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खादी व ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी -KVIC) ने वाराणसी के सेवा पुरी में पहला टेराकोटा ग्राइंडर लॉन्च किया. यह मशीन बेकार और टूटे बर्तनों का पाउडर बनाएगी जिसका बर्तन निर्माण में पुनः उपयोग किया जा सकेगा.

केवीआईसी के चेयरमैन सुनील कुमार सक्सेना ने कहा कि पहले बेकार पड़े मिट्टी के बर्तनों को खल-मूसल के द्वारा पाउडर बनाया जाता था और इसके बारिक पाउडर को साधारण मिट्टी में मिलाया जाता था. एक निश्चित मात्रा में इस पाउडर को मिलाने से नए तैयार होने वाले बर्तन अधिक मजबूत होते हैं. इस टेराकोटा ग्राइंडर के माध्यम से बेकार और टूटे-फूटे बर्तनों का पाउडर बनाने का कार्य तेजी से होगा. इससे लागत में भी कमी आएगी और बर्तन बनाने वाली मिट्टी की कमी की समस्या भी दूर होगी.

उन्होंने कहा कि वाराणसी क्षेत्र में बर्तन बनाने वाली मिट्टी की कीमत 2600 रुपये प्रति ट्रेक्टर ट्रॉली है. यदि मिट्टी में 20 प्रतिशत टेराकोटा पाउडर मिलाया जाता है तो इससे 520 रुपये की बचत होगी. इससे गांवों में रोजगार के अवसर सृजत होंगे. इस ग्राइंडर को केवीआईसी के चेयरमैन ने डिजाइन किया है और इसका निर्माण राजकोट की एक इंजीनियरिंग इकाई ने किया है.

प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो के अनुसार इस अवसर पर केवीआईसी के चेयरमैन ने गांव के लोगों में बिजली से चलने वाले 200 पहियों (बर्तन बनाने वाला पहिया) वितरित किए. इससे 900 नई नौकरियां पैदा होंगी और वाराणसी स्टेशन में टेराकोटा उत्पादों की बढ़ती मांग भी पूरी होगी.

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रेल मंत्रालय ने क्षेत्रीय रेलवे और आईआरसीटीसी को पर्यावरण अनुकूल टेराकोटा उत्पादों का प्रयोग करने की सलाह दी है. इन उत्पादों में कुल्लड़, गिलास और प्लेट शामिल है. वाराणसी और रायबरेली रेलवे स्टेशनों पर खान-पान की इकाईयों को टेराकोटा उत्पादों में यात्रियों को खाद्य पदार्थ देने का सुझाव दिया गया है.

बर्तन निर्माण में लगे लोगों के लिए यह मशीन एक वरदान सिद्ध होगी. केंद्रीय सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री नितिन गडकरी ने 400 से प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर कुल्लड़ और अन्य टेराकोटा उत्पादों के उपयोग का प्रस्ताव दिया है.

स्वच्छ भारत अभियान के तहत केवीआईसी ने जयपुर में प्लास्टिक मिश्रित कागज का निर्माण प्रारंभ किया है. यह निर्माण कार्य री-प्लान (प्रकृति में प्लास्टिक को कम करना) परियोजना के तहत कुमारप्पा राष्ट्रीय हस्त निर्मित कागज संस्थान (केएनएचपीआई) में किया जा रहा है.

इस परियोजना के तहत प्लास्टिक का संग्रह किया जाता है फिर इसकी सफाई होती है और इसे मुलायम बनाया जाता है. फिर इसे कागज के कच्चे माल में 80 प्रतिशत (लुगदी) और 20 प्रतिशत प्लास्टिक मिलाया जाता है. संस्थान ने सितंबर, 2018 से अब तक 6 लाख से ज्यादा हस्तनिर्मित, प्लास्टिक मिश्रित कैरीबैगों की बिक्री की है.

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