Kisan Andolan: मझधार में फंसा किसान आंदोलन?
मोदी सरकार के सख्त रवैये के कारण दम फूलने लगा?

अजय कुमार
नये कृषि कानून के विरोध में आंदोलन कर रहे किसान नेताओं का, मोदी सरकार के सख्त रवैये के कारण दम फूलने लगा है. वहीं धरना स्थल पर किसानों की लगतार कम होती संख्या ने आंदोलकारी किसानों की नींद उड़ा रखी है. एक समय था जब मोदी सरकार किसानों से बातचीत से समस्या सुलझाने के लिए बुलावे पर बुलावा भेज रही थी,तब तो किसान नेता अड़ियल रवैया अपनाए हुए थे और अब जबकि आंदोलनकारी किसान नेता चाहते हैं कि केन्द्र सरकार उन्हें वार्ता के लिए बुलाए तो सरकार बातचीत के मूड में नजर नहीं आ रही है. ऐसा क्यों हो रहा है. यह बात आम मानुष भले नहीं समझ पाए,लेकिन संभवता सरकार को इस बात का अहसास हो गया है कि आंदोलनकारी किसान समस्या का समाधान करना ही नहीं चाहते हैं, इसी लिए किसान नेताओं द्वारा सरकार से बातचीत के लिए कोई नया प्रस्ताव भी नहीं भेजा है. मतलब साफ है कि अभी भी किसान नेता नये कृषि कानून की पूरी तरह से वापसी से कम पर सहमत नहीं हैं और सरकार पहले ही कह चुकी है कि वह नया कृषि कानून किसी भी हालत में वापस नहीं लेगी.
दरअसल, आंदोलकारी, सरकार के पास बातचीत का प्रस्ताव भेजकर सिर्फ अपने आंदोलन को जिंदा रखने और इसे टूट से बचाने की कोशिश में लगे हैं. क्योंकि तमाम किसान अपने नेताओं से पूछ भी रहे हैं कि यदि सरकार से बातचीत नहीं होगी तो रास्ता कैसे निकलेगा. कब तक आंदोलन को खींचा जा सकता है. कोरोना महामारी के समय आंदोलन को जारी रखने पर भी किसान नेता बंटे हुए हैं. खासकर कोरोना को लेकर भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत जिस तरह की बे सिर-पैर की बातें कर रहे हैं,उससे किसानों में कुछ ज्यादा ही गुस्सा है. कई किसान नेता तो खुलकर कह रहे हैं कि यह किसान नहीं सियासी आंदोलन बन गया है. किसान आंदोलन को लेकर मोदी सरकार की सोच की बात की जाए तो ऐसा लगता है कि सरकार नये कृषि कानून के माध्यम से बिना बिचैलियों के किसानों से अधिक से अधिक गेहूं-चावल खरीद कर किसानों के बीच यह मैसेज पहुंचाना चाहती है कि दरअसल, कथित किसान आंदोलन, किसानों का नहीं बिचैलियों का आंदोलन है. नये कृषि कानून से इन बिचैलिओं को ही नुकसान हो रहा है,जबकि किसान फायदे मे हैं. किसान फायदे में हैं, यह बात साबित करने के लिए सरकार द्वारा अनाज की खुल कर खरीद की जा रही है. पंजाब जहां किसान आंदोलन सबसे अधिक उग्र हुआ था, वहां अबकी से सरकारी गेहूं-चावल की रिकार्ड खरीददारी हुई है,जिससे किसान गद्गद हैं. बिचैलियों को दरकिनार कर उसके खाते में सीधे पैसा आ रहा है,जिस वजह से पंजाब में आंदोलन की धार कुंद पड़ती जा रही है. उत्तर प्रदेश में भी यही हाल है. यहां भी सरकारी गेहूं-चावल की खरीद में योगी सरकार पूरी ताकत लगाए हुए है.इसी वजह से गाजीपुर बार्डर पर बैठे किसान नेताओं के तंबू उखड़ने लगे हैं.
केन्द्र सरकार ने भी गेहूं और धान की खरीद में पिछले साल की तुलना में इस बार रिकॉर्ड बनाने का दावा किया है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 14 मई 2021 तक करीब 1.48 करोड़ किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 2,12,572 करोड़ का गेहूं -चावल खरीदा गया हैं. पिछले सीजन में 282.69 लाख मिट्रिक टन की गई खरीद की तुलना में इस सीजन में अब तक 366.61 लाख मिट्रिक टन गेहूं की खरीद की गई है. चालू रबी विपणन सीजन में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 72,406.11 करोड़ रुपये की खरीद से लगभग 37.15 लाख किसान लाभान्वित हुए हैं. 14 मई तक कुल 742.41 लाख मीट्रिक टन (खरीफ फसल 705.52 लाख मीट्रिक टन और रबी फसल 36.89 लाख मीट्रिक टन) से अधिक धान की खरीद के साथ खरीफ के चालू सीजन 2020-21 में खरीद करने वाले राज्यों में धान की खरीद सुचारू रूप से जारी है. पिछले साल इसी अवधि में 687.24 लाख मीट्रिक टन की खरीद की गई थी. चालू खरीफ विपणन सीजन के खरीद अभियान के जरिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 1,40,165.72 करोड़ रुपये की खरीद से लगभग 1.11 करोड़ किसान लाभान्वित हुए हैं. इसके अलावा, राज्यों के प्रस्ताव के आधार पर मूल्य समर्थन योजना (पीसीएस) के तहत तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और आंध्र प्रदेश के लिए खरीफ विपणन सीजन 2020-21 और रबी विपणन सीजन 2021 के लिए 107.37 लाख मीट्रिक टन दलहन और तिलहन की खरीद को मंजूरी दी गई.
समझ में नहीं आ रहा है कि क्यों हमारी अदालतें, किसान संगठनों की हिमायत करने वाले समाजसेवी संगठन और राजनीतिक दल किसान नेताओं पर इसके लिए दबाव क्यों नहीं बनाते कि वे अपना धरना खत्म करें? न जानें क्यों जिन लोगों का कुंभ की भीड़ से कोरोना फैलता दिखता है,उन्हें किसान आंदोलन स्थल पर जुटी भीड़, ईद की नमाज के समय एकत्र लोगों से कोरोना महमामारी फैलने का खतरा क्यों नहीं दिखता है. सवाल यह भी है कि नये कृषि कानूनों पर विशेषज्ञ समिति की समीक्षा रपट पर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला क्यों नहीं सुना रहा है ताकि ’दूध का दूध और पानी का पानी’ हो जाए. एक तरफ तो सुप्रीम कोर्ट कोरोना संकट से जुड़ी समस्याओं का स्वतःसंज्ञान लेकर मोदी सरकार को खराखोटा सुना रहा है,वहीं संक्रमण फैलाने का कारण बने किसान आंदोलन पर ध्यान देने की उसे जरूरत नहीं महसूस होती है? यह लेखक के निजी विचार हैं.