OPINION: इतनी नफरत कहां से आती है ?
तनवीर जाफरी
मध्य एशिया क्षेत्र में इस्राईल व फिलिस्तीनियों के मध्य छिड़ा संघर्ष इन दिनों खतरनाक दौर में प्रवेश करता जा रहा है. जहाँ फिलिस्तीनियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले लड़ाकू संगठन हमास ने मस्जिद-ए-अक्सा में मौजूद फिलिस्तीनियों पर हुए यहूदी हमले के बाद इस्राईल पर दर्जनों राकेट दागे वहीं इस्राईली सेना ने भी आत्मरक्षा के अपने अधिकार के नाम पर अपनी पूरी सैन्य शक्ति के साथ जमीनी व हवाई हमले करने शुरू कर दिए हैं. लगता है इस्राईल ने फिलिस्तीनी क्षेत्र गाजा को पूरी तरह तबाह करने का इरादा कर लिया है. इस संघर्ष में जहां कुछ इस्राईली नागरिक भी हमास के हमलों में मारे गए हैं वहीं इस्राईली हमलों में बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी लोग मारे जा रहे हैं. इस्राईल का इतिहास पूरा विश्व जानता है कि यह वह यहूदी हैं जिन्हें उनके इसी तरह के आक्रामक रवैय्ये व विस्तारवादी विचारों की वजह से जो आज फिलिस्तीन सहित लगभग पूरे विश्व में देखा जा रहा है, हिटलर ने जर्मन में गैस चैंबर में डाल कर लगभग एक तिहाई यहूदियों का नरसंहार किया था और शेष को जर्मन से बाहर निकाल फेंका था. उस समय जिंदा बचे यहूदियों को दुनिया का कोई भी देश पनाह देने को राजी नहीं था. आखिर में इन्हें फिलिस्तीन की धरती पर शरण मिली. इनका साथ शुरू से ही ब्रिटेन व अमेरिका देते आ रहे हैं.
जहां तक भारत का प्रश्न है,तो भारत की भूमिका स्वतंत्रता के पश्चात् से ही मानवाधिकारों की रक्षा तथा दुनिया के सताए व पीड़ित-शोषित समाज के पक्ष में खड़े होने की रही है. भले ही अभी तक इसके दूरगामी नकारात्मक परिणाम ही क्यों न भुगतने पड़ रहे हों. उदाहरणतयः तिब्बत वासियों को पनाह देने को लेकर भारत-चीन के मध्य उपजा अमिट बैर और बांग्लादेश का साथ देने पर पाकिस्तान से रिश्तों में आई स्थाई कड़ुवाहट. लाखों बांग्लादेशी शरणार्थियों को भी पनाह देकर भारत ने प्रताणित लोगों के पक्ष में खड़े होने के अपने मानवीय चरित्र को दुनिया के सामने पेश किया है. और अपने इसी गांधीवादी राजनैतिक दर्शन के तहत भारत हमेशा फिलिस्तीन के पीड़ितों के साथ खड़ा दिखाई दिया है. फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के सबसे बड़े हस्ताक्षर रहे स्वर्गीय यासिर अराफात के साथ भारत के गहरे रिश्ते थे. जबकि इस्राईल के साथ तो राजनायिक संबंध भी नहीं थे. परन्तु समयानुसार इस्राईल ने अमेरिका की सरपरस्ती में स्वयं को न केवल आर्थिक बल्कि अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक संबंधों के क्षेत्र में भी स्वयं को इतना मजबूत कर लिया है कि आज न केवल भारत की वर्तमान दक्षिणपंथी सरकार के साथ उसके मधुर संबंध हैं बल्कि पाकिस्तान यहां तक कि सऊदी अरब सहित मध्य एशिया के कई देशों से भी उसने अपने अच्छे संबंध बना लिए हैं. इस्राईल के भारत सहित कई देशों के साथ व्यापारिक व सैन्य साजो-सामान के भी समझौते हुए हैं.
परन्तु इस्राईल-फिलिस्तीन के मध्य बिगड़ते वर्तमान हालात के मध्य भारत का वही एक दक्षिणपंथी वर्ग जो वर्तमान समय में बुरी तरह से कोरोना प्रभावित देशवासियों के पक्ष में खड़ा होने के बजाए अब भी सत्ता का भोंपू बना हुआ है वही वर्ग ट्वीटर पर श्स्टैंड विध इस्राईलश् ट्रेंड करा रहा है. और जालिम इस्राईली सेना व आक्रामक सरकार का साथ दे रहा है. दरअसल इनकी हमदर्दी इस्राईल के लोगों के साथ नहीं बल्कि इनका मकसद इसलिए फिलिस्तीनियों के विरुद्ध खड़े होना है क्योंकि वे मुस्लिम हैं और इस्राईली सेना उन की जमीन पर कब्जा व उनपर पर अत्याचार भी कर रही है. श्ेजंदक ूपजी पेतंमसश् ट्रेंड कराने में वही भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या आगे आए हैं जो भारत व अरब देशों के बीच भी अपने मुस्लिम विरोध के लिए जाने जाते हैं. और उनकी इसी विशेषता के चलते पदोन्नत भी किया जाता रहा है. देश में फिल्म जगत में नाकाम रहने के बाद मुस्लिम विरोध को ही अपनी प्रसिद्धि की सीढ़ी बनाते हुए राजनीति में अपने कैरियर की उज्जवल संभावनाएं तलाशने वाली कंगना रानावत भी इस्राईलियों के साथ खड़े होने वाली अभिनेत्री हैं.
सोशल मीडिया में इनके समर्थन में खड़े होने वाले यह वही तत्व हैं जो एक प्यासे मुसलमान बच्चे को मंदिर के बाहर पानी पीने के चलते उसकी बेरहमी से पिटाई करने वाले के साथ खड़े हुए थे. इन्हीं को राष्ट्रपति ट्रंप सिर्फ इसलिए श्महापुरुष श् नजर आते थे क्योंकि वे मुस्लिम विरोध को लेकर मुखरित रहते थे तथा कई मुस्लिम बाहुल्य देशों पर वीजा प्रतिबंध भी लगा दिया था. इन्हीं दक्षिणपंथी शक्तियों को हर रोहंगिया शरणार्थी आतंकी दिखाई देता है. यही लोग कोरोना काल में मुसलमान सब्जी विक्रेताओं को अपने मुहल्लों से यह कहकर भगाते थे कि यह सब्जी फरोश जानबूझकर कोरोना फैला रहे हैं. इन्हीं पक्षपातियों को देश में जमाअत की वजह से कोरोना फैलता दिखाई दिया था और कुंभ मेले में एक ही दिन में 14 लाख लोगों का स्नान करना श्आस्था का सैलाब उमड़ना श् नजर आया था. यही लोग अंतर्धार्मिक विवाह के भी विरुद्ध हैं और पूरे देश में किसी भी छोटे से छोटे हिन्दू-मुस्लिम विवाद को सांप्रदायिक मुद्दा बनाने तथा राजनैतिक लाभ उठाने में माहिर हैं.
परन्तु इसी देश में विशेषकर हिन्दू समुदाय में बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो पीड़ित फिलिस्तीनियों के साथ खड़े हैं और भारत में भी ऐसी अतिवादी शक्तियों का डटकर विरोध करते हैं.बंगाल व तमिलनाडु चुनावों में भी अभी इसी विचारधारा को मुंह की खानी पड़ी है. फिर भी यह सोचकर आश्चर्य होता है कि जिस भारत का सदियों से मुख्य ध्येय श्सर्वे भवन्तु सुखनःश् रहा हो,जिस देश में श्वसुधैव कुटुंबकम श् की हमेशा बात होती हो,जहाँ विश्व में शांति होने की दिन रात प्रार्थना की जाती हो उसी देश में इस तरह के जहरीले विचार पोषित करने वाले लोग आखिर कहाँ से संस्कारित होते हैं और इनके जेहन में इतनी नफरत आखिर कहाँ से आती है?