कोरोना की तीसरी लहर के लिए कितना तैयार है देश?

कोरोना की तीसरी लहर के लिए कितना तैयार है देश?
Coronavirus Delhi Curfew

आर.के. सिन्हा
कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने कुछ ही दिनों में देश को अंदर तक हिला कर रख दिया है. इसने अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण, औरत-मर्द में कोई भेदभाव नहीं किया. इसने हरेक घर तक जाकर अपना असर दिखाया. लेकिन, अब दूसरी लहर कमजोर पड़ने लगी है. कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों की तादाद प्राय: हरेक जगह पर घट रही है. यह संतोष का विषय तो हो सकता है, पर अब कुछ बातों को गांठ में बांध लेना भी जरूरी है. पहली बात तो यह है कि कोरोना वायरस हमारे बीच में अब लम्बे समय तक रहने वाला है. यही नहीं, इसकी तीसरी लहर आने के भी संकेत मिलने लगे हैं या कहा जाए कि वह कभी भी आ सकती है.

सबसे बड़ी चिंता का विषय है कि तीसरी लहर दूसरी की तुलना में अधिक मारक हो सकती है. तब रोगियों की संख्या भी दूसरी लहर की तुलना में कहीं अधिक होगी. यह वास्तव में एक डराने वाली स्थिति है. आईआईटी दिल्ली ने जारी अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि तीसरी लहर में अकेले दिल्ली में ही रोजाना 45 हजार नए मामले आ सकते हैं. यह सुनकर भी रूह कांप उठती है. ऐसे में रोजाना करीब 9 हजार रोगियों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ेगी. दिल्ली को इसके लिए तैयार रहना होगा.  यदि यह हालात बनते है तो इससे निपटने के लिए दिल्ली में अस्पतालों और रीफिलिंग के लिए कुल मिलाकर प्रतिदिन 944 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत पड़ेगी. इतनी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन की व्यवस्था करना कोई आसान काम नहीं है. जाहिर है, अगर हम तीसरी लहर पर सारे देश की स्थिति पर बात करें तो हालात तो अकल्पनीय रूप से खराब हो सकते हैं. भगवान करे कि यह न हो. अब दुनिया को और आघात न सहन पड़ें. पर किसी ने कहां सोचा था कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर देखते ही देखते अपने शिकंजे में सारे देश को ही ले लेगी. इसलिए युद्ध स्तर पर आगे के लिए तैयारी करना तो लाजिमी है.

चूंकि देश में संक्रमण की दर कम हो रही है इसलिए सरकारों और मेडिकल की दुनिया से जुड़ो लोगों को अभी आराम करने के मोड में तो कतई नहीं आना चाहिए. हमें अभी भविष्य में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए समुचित व त्वरित कदम उठाते ही रहने चाहिए. सबतो पता है कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से देश भर में हजारों जानें गईं. अब ये हालात नहीं होने चाहिए. कोरोना के रोगियों के बीच ऑक्सीजन की भारी कमी को देखा गया. उसे देखते हुए अब सब राज्यों को ऑक्सीजन उत्पादन, स्टोरेज और उसके वितरण में सुधार करने की तुरंत आवश्यकता है. सभी अस्पतालों को ऑक्सीजन निस्तारण प्रक्रिया के लिए आवश्यक सभी प्रकार के नोजल, एडेप्टर्स और कनेक्टर्स मुहैया कराने चाहिए. मैं मानता हूँ कि सभी सरकारें और स्थानीय निकायें ऐसा अबतक ही कर भी रही होंगी. प्रधानमंत्री जी तो सबकी मदद के लिये दिन-रात खड़े है हीI

किसे नहीं पता कि अप्रैल महीने में जब कोरोना की दूसरी लहर का पीक था तब सैकड़ों धनी-संपन्न लोगों तक को अस्पतालो में बेड नसीब नहीं हुआ. मुझे पता चला है कि राजधानी दिल्ली के एक मशहूर सेंट लॉरेस स्कूल के संस्थापक और कारोबारी श्री गिरिश मित्तल को लाख चाहने के बाद भी बेड नहीं मिला. अंत में उन्हें फरीदाबाद के एक अस्पताल मे भर्ती करवाया गया. वहां उनकी मृत्यु हो गई. इसी प्रकार प्रख्यात गीतकार डॉ. कुँवर बेचैन और प्रसिद्ध कवि पदमश्री डॉ. रवीन्द्र राजहंस को भी नोएडा के प्राइवेट अस्पताल में बचाया न जा सका. जब हर लिहाज से सक्षम लोगों का यह हाल हुआ है तो समझ लें कि बाकी के साथ क्या हुआ होगा. इसीलिये देश के हर छोटे-बड़े शहरों के अस्पतालों में ओक्सीजन वाले बेडों की संख्या भी बढ़ानी होगी.

इसके साथ ही अब देश को यह भी देखना होगा कि कोरोना के कारण किसी बच्चे के सिर से उसके माता-पिता का साया न उठे. कोरोना की दूसरी लहर के कारण न जाने कितने मासूम बच्चे अनाथ हो गए.  इन बच्चों के लिये मुफ्त पढ़ाई और आर्थिक मदद जैसी अनेक घोषणायें राज्य और केंद्र सरकारों ने की हैं. पर अभी इन बच्चों के सामने कुछ और दिक्कतें आ सकती हैं.  याद रखें कि कोरोना से मृत्यु का प्रमाण पत्र मिलना अत्यंत कठिन है. सैकड़ों लोग अस्पतालों के दरवाज़ों पर मर गये और बहुत से लोग तो घर पर ही मर गये.  बीच में ऐसे भी दिन आये कि टेस्ट होने का नम्बर ही नहीं आया और लोग मर गये . अब ये अनाथ बच्चे कहाँ जायेंगे प्रमाण पत्र बनवाने के लिए. सरकारी दफ्तरों की कठिन प्रक्रिया से कैसे गुजरेंगे? जिनके खाते बैंकों में हैं वह मर गये और उनके नॉमिनी भी मर गये अब बच्चे रह गये हैं उनका पैसा बैंकों से कैसे निकलेगा? इन सवालों के हल सरकारों को तुरंत तलाश करने होंगे. वर्ना घोषणाएं जमीन पर लागू करना कठिन होगा. बच्चों की मदद में सरकार और संस्थायें खुद आगे नहीं बढ़ेंगी तो ये तमाम घोषणाएं ज़बानी जमा खर्च बन कर रह जायेंगी .

यह सच है कि बहुत से लोग केदारनाथ जैसी आपदाओं में मारे जाते हैं और उनका बैंक एकाउंट लावारिस हो जाता है. बच्चे दर दर भटकते रहते हैं और पैसा बैंकों में पड़ा रहता है. ये अनाथ हुए बच्चे न मदद माँग पायेंगे न कागजी कार्यवाही पूरी कर पायेंगे . सरकार और समाज को खुद इनकी मदद को आगे आना होगा और नियमों में कुछ शिथिलता देनी होगी.

कोरोना से आगे भी बचे रहने के बाकी उपाय वही हैं. जैसे कि मास्क पहनना, सामाजिक दूरी बनाये रखना और हाथों को बार-बार साबुन से अच्छी तरह से धोना. ये तो सभी नागरिकों से कम से कम अपेक्षित है ही . हालांकि दूसरी लहर के बाद देखने में आ रहा है कि अब पहले वाली लापरवाही तो ज्यादा लोग नहीं कर रहे हैं. वे कम से कम मास्क तो पहन ही रहे हैं. अब उन्हें कोरोना की भयावहता का अंदाजा भी लग चुका है. जो लापरवाही करेगा, वही फंसेगा. वह अपने साथ अपनों को भी मरवाने का रास्ता साफ करेगा. इसलिए मास्क तो बड़े पैमाने पर पहने जाने लगे हैं. और कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन लेना भी अनिवार्य है, यह लोग समझने लग गये हैं..

देखिए, दुनिया के अनेक देशों ने अपनो को कोरोना से लड़ने के लिए तैयार कर लिया है. वहां पर तेजी से सब वैक्सीन लगवा रहे हैं. यही हमें भी करना होगा. हमें भी फिलहाल भीड़-भाड़ और बड़े आयोजनों से बचना होगा. अब पहले वाली दुनिया तो नहीं रहने वाली. यह बात लोगों को जितनी जल्दी समझ आ जाए उतना ही अच्छा रहेगा. (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं. यह लेखक के निजी विचार हैं.)

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