Haryana Nuh Violence: नूंह के दोषियों को मिले कड़ी सजा

Haryana Nuh Violence: नूंह के दोषियों को मिले कड़ी सजा
NUH Haryana news
डॉ. ओपी त्रिपाठी
नूंह का सांप्रदायिक अंधड़ फिलहाल शांत लगता है, लेकिन क्या दबा-छिपा है, उसकी संभावनाएं भी नहीं बता सकते. हालांकि सर्वोच्च अदालत ने आदेश दिया है कि सरकारें तय करें कि कोई नफरती भाषण न दिया जाए. माहौल को भडकाया-उकसाया न जाए. हिंसा की कोई गुंजाइश न हो, लिहाजा अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए जाएं. शांति और सौहार्द कायम रहना चाहिए. यह जिम्मेदारी हरियाणा, दिल्ली, उप्र और केंद्र की सरकारों की तय की गई है. अदालत ने जुलूस, रैली, प्रदर्शन आदि की वीडियोग्राफी और रिकॉर्डिंग के भी आदेश दिए हैं. फिलहाल सुनवाई जारी है. 
 
नूंह के इतिहास की बात करें तो इसका इतिहास करीब 1200 साल पुराना बताया जाता है. हरियाणा से राजस्थान और उत्तर प्रदेश तक फैले मेवात क्षेत्र की राजधानी के नाम से प्रसिद्ध नूंह शहर को किशनधज नामक ब्राह्मण ने इंदौर से आकर बसाया था. इसका उल्लेख मेवात के शोध पर लिखी गई किताबों में मिलता है. बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने ब्राह्मणों से सारी जमीन छीनकर खानजादों (एक समुदाय)को नूंह की बिसवेदारी सौंप दी. एक समय नूंह में खानजादों और कुरैशियों की सबसे अधिक आबादी थी. बताया जाता है आधे से अधिक आबादी इन दोनों जातियों की ही थी. देश बंटवारे के समय अधिकांश कुरैशी और खानजादे पाकिस्तान चले गए. इस शहर के आसपास देहात में मेव और जाट समाज बसता है. जिनके भाईचारे की मिसाल आज भी कायम है. इसीलिए यहां की तहजीब को देश की सांझी संस्कृति मानकर हिंदू-मुस्लिम, गंगा-जमुनी तहजीब कहा जाता है.
 
पिछले वर्ष कुछ संगठनों ने शोभायात्रा के दौरान एक धार्मिक स्थान को क्षतिग्रस्त किया था लेकिन उस वक्त अमन कमेटी की अपील पर कोई अवांछनीय घटना नहीं हुई और शांति बनी रही. क्षतिग्रस्त निर्माण की मरम्मत करा दी गई थी. बीते सोमवार को हुए बवाल ने तीन दशक की शांति को पलीता लगाया है. नूंह हिंसा के पूरे प्रकरण में मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी, कथित गोरक्षकों, को ‘खलनायक’ चित्रित किया गया है. क्या सिर्फ दो हिंदूवादी चेहरों के कारण हरियाणा के एक संवेदनशील इलाके को हिंसा और दंगे की आग में झोंका गया? सांप्रदायिक दोफाड़ के हालात पैदा किए गए? हिंसा में अब तक 7 लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें 2 होमगार्ड गुरसेवक और नीरज, नूंह के शक्ति, पानीपत के अभिषेक, गुरुग्राम के इमाम, बादशाहपुर के प्रदीप शर्मा व एक अन्य व्यक्ति शामिल हैं. 
 
राज्य में पुलिस ने कुल 93 केस दर्ज किए हैं. 186 लोगों को गिरफ्तार और 78 को हिरासत में लिया है. नूंह हिंसा की जांच के लिए स्पेशल टास्क फोर्स की 8 और 3 स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीमें बनाई गई हैं. नूंह में 46, गुरुग्राम में 23, पलवल में 18 और रेवाड़ी-फरीदाबाद में 3-3 एफआईआर दर्ज हुई हैं. नूंह में 139 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. नूंह में गिरफ्तार किए गए 4 लोग पलवल और 6 लोग भरतपुर-अलवर के हैं. इसी बीच अरावली पहाड़ियों की शांत सुंदरता के बीच, एक परेशान करने वाली वास्तविकता सामने आ रही है. पूछताछ में यह बात सामने आई है कि इन आरोपियों ने भीड़ में शामिल होकर हथियरों और डंडों से हमला किया था. आरोपियों ने यह भी बताया कि हिंसा के बाद कई घुसपैठिए मेवात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में जाकर छिप गए हैं.
 
नूंह हिंसा में दंगाइयों ने जज की कार भी जला दी. हमले में महिला जज और उनकी तीन साल की बेटी बाल-बाल बच गईं. उनकी गाड़ी पर 100-150 लोगों ने हमला किया था. उन्होंने एक रोडवेज वर्कशॉप में छिपकर अपनी जान बचाई. वकीलों की मदद से उन्हें निकाला गया. क्या एक न्यायाधीश भी सांप्रदायिक हो गया? क्या यह हमला भी मोनू-बिट्टू के भडकाऊ वीडियो के कारण किया गया? अब नूंह के प्रवासी मजदूरों ने भी पलायन करना शुरू कर दिया है. उनमें कई मुस्लिम भी हैं. गुरुग्राम के समीप एक गुरुकुल पर दो बार हमले की कोशिश की गई. उन अनाम ग्रामीणों का बहुत आभार है कि उन्होंने जान की बाजी लगाकर गुरुकुल को खंडहर होने से बचा लिया. बेकसूर दुकानदारों और व्यापारियों को लूटा गया, उनके प्रतिष्ठान जला कर राख कर दिए, करोड़ों की संपत्ति तबाह कर दी गई और कुछ कारोबारियों को तो जान से मार कर सडक किनारे फेंक दिया गया. क्या ऐसे हालात मोनू और बिट्टू के कारण बन सकते हैं? नूंह हिंसा के बाद प्रशासन ने तावडू इलाके में 200 से ज्यादा झुग्गी-झोपड़ियों पर बुलडोजर चलाया. ये कंस्ट्रक्शन अवैध था. पुलिस सूत्रों ने भास्कर को बताया कि यहां बांग्लादेशी रोहिंग्या अवैध तरीके से रह रहे थे और हिंसा में शामिल थे. कई युवकों का नाम एफआईआर में दर्ज है. 
 
मोनू मानेसर ने एक निजी चैनल से कहा- हिंसा से एक दिन पहले की वीडियो में मैंने कुछ गलत बोला हो तो बताएं, मैं हिंसा की जिम्मेदारी ले लूंगा. मैं पिछले 4 साल से लोगों से यात्रा में शामिल होने की अपील कर रहा हूं. हिंसा के लिए यूट्यूबर जिम्मेदार हैं. मोनू मानेसर ने बताया कि उसने वीएचपी की सलाह पर जुलूस में भाग नहीं लिया क्योंकि उन्हें डर था कि उसकी उपस्थिति से तनाव पैदा हो सकता है. ट्विटर पर कथित तौर पर उसे नूंह आने की चुनौती देने की धमकियां भी दी गईं.एएसपी ने कह दिया था कि मोनू मानेसर नहीं आया. इसके बाद भी लोगों ने वीडियो बनाए कि सिलेंडर रखे हैं, फूंक देंगे. इससे सारा माहौल बिगड़ा. इससे पहले हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज भी मोनू मानेसर के वीडियो में कुछ भी आपत्तिजनक न होने की बात कह चुके हैं.
 
नूंह के सवाल और दोषारोपण सिर्फ मोनू, बिट्टू तक ही सीमित नहीं हैं. यह जिला ‘लघु आतंकीस्तान’ भी है. हिंसा, तनाव के दौरान भीड़ ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाती रही. नूंह से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर, एक गांव में, मस्जिद बनाई जा रही थी, जिसकी फंडिंग पाकपरस्त आतंकी संगठन ‘लश्कर-ए-तैयबा’ ने की थी. राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने इसीलिए मस्जिद पर छापा मारा था. वह केस अब भी जारी है, लेकिन मस्जिद का निर्माण रुकवा दिया गया है. असल में हिंसा में षामिल लोगों का मकसद साफ था कि वो इलाके में दहषत का माहौल बनाना चाहते थे. उनके निषाने पर एक खास संप्रदाय के लोग थे. मोनू मानेसर तो सिर्फ बहाना ही था. दंगाईयों का मकसद क्या था, वो जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, साफ हो रहा है. नूंह साइबर क्राइम का भी बड़ा गढ़ है. जिस तरह साइबर थाने पर हमला किया गया है, उससे भी दंगाईयों के इरादे काफी हद तक साफ हो जाते हैं. हां, ये अलग बात है कि दंगाई आग लगाने और जान लेने के बाद स्वयं को पीड़ित दिखाने का स्वांग रचा रहे हैं.  
 
नूंह की सांप्रदायिक और नफरती लपटें गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोहना, पलवल आदि शहरों तक भी लपलपाती रही हैं. गुरुग्राम में ‘ब्लू चिप’ की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दफ्तर बाल-बाल बचे हैं. अलबत्ता दुनिया भर में हमारी ‘साइबर सिटी’ की साख पर बट्टा जरूर लग जाता! नूंह हरियाणा का दूसरा सबसे गरीब और पिछड़ा जिला है. उसके बावजूद सांप्रदायिकता में अव्वल है. प्रार्थना है इस इलाके में अमन-चैन बना रहे. दोनों पक्षों को समझदारी दिखानी चाहिए और जो भी इस हिंसा के आरोपी हों उन्हें बचाने की बजाय कानून के हवाले करना चाहिए. इसी में सब की भलाई है. बहरहाल ऐसी सांप्रदायिक हिंसा और हत्यारे हमलों के मद्देनजर सवाल वहीं अटका रहता है कि हिन्दू-मुसलमान के दरमियान इतनी नफरत, इतना विभाजन क्यों है, जबकि दशकों से वे साथ-साथ जी रहे हैं? उनके दरमियान सामाजिकता भी है, वे एक ही देश के नागरिक हैं.
 
यहां लेखक के निजी विचार हैं. 
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