युद्ध और घृणा के विरोध की कविता करते थे सर्वेश्वर
प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा सक्सेरिया इण्टर कालेज के सभागार में आयोजित कार्यक्रम को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुये वरिष्ठ कवि अष्टभुजा शुक्ल ने कहा कि कुआनो सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के संसार में आज भी बह रही है, हम सभी के संसार में कोई न कोई भुला दी गई नदी बह रही है.
सर्वेश्वर बस इसलिए अलग थे कि वह उस नदी और उसके पास लगने वाले फुटहिया बाजार को कभी भूले नहीं. वहां मुर्दा जलते और अधजले रह जाते, धोबी कपड़े धोते लोगों को जोड़कर सर्वेश्वर ने कुंआनों को जीवन्त किया.
Sarveshwaras dayal saxena के साथ जुड़ा है संयोग
हिंदी नई कविता के सबसे प्रखर किरदारों में से एक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के साथ एक ऐसा संयोग जुड़ा है जैसा कदाचित हिंदी के किसी साहित्यकार के साथ नहीं है. वह पैदा भी हिंदी पखवाड़े में हुए (सितंबर 15, 1927) और निधन भी हिंदी पखवाड़े में हुआ. (सितंबर 24, 1983). सर्वेश्वर का रचना संसार आज भी थके हारे मनुष्य को आगे बढने का साहस दे रहा है.
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वे कहा करते थे-‘कविता में अपने गांव, शहर, समाज से होता हुआ दुनिया की ओर बढ़ता हूं. पर रास्ता तो अपनी मिट्टी से ही होकर है. कुआनो नदी किसी भी गरीब देश की नदी हो सकती है पर बहती उत्तर-प्रदेश में, मेरी जन्मभूमि बस्ती में है. इस नदी से राजधानी के वैभव में बैठकर भी मैं अपनी मिट्टी में चला जाता हूं, मुझे अपना गरीबी से घिरा बचपन याद आता है जो सारे देश में आज भी वैसा है. कहा कि सर्वेश्वर सदैव आम आदमी के बीच जिन्दा रहेंगे.
Sarveshwaras dayal saxena पर संगोष्ठी को इन्होंने भी किया संबोधित
गोष्ठी को डा. रामनरेश सिंह मंजुल, दशरथ प्रसाद यादव, कुलदीप नाथ शुक्ल, प्रगतिशील लेखक संघ अध्यक्ष सत्येन्द्रनाथ मतवाला, महामंत्री हरीश दरवेश ने कहा कि जब तक गरीबी, अन्याय, अत्याचार है, सर्वेश्वर की कवितायें अपने-अपने समय में सत्य के लिये मुठभेड़ करती रहेंगी.
इसी क्रम में डा. रामकृष्ण लाल जगमग के संचालन में आयोजित काव्य गोष्ठी में उस्ताद शायर ताजीर वस्तवी, विनोद कुमार उपाध्याय, पंकज कुमार सोनी, दीपक सिंह प्रेमी, डा. अजीत कुमार श्रीवास्तव, नवनीत पाण्डेय, सागर गोरखपुरी, डा. राम मूर्ति चौधरी, जगदम्बा प्रसाद भावुक, रहमान अली, शाद अहमद शाद, ओम प्रकाश पाण्डेय, दुर्गेश नन्दन मणि आदि ने कविताओं के माध्यम से सर्वेश्वर को नमन् किया.
कार्यक्रम में बटुकनाथ शुक्ल, मो. वसीम अंसारी, विनय कुमार श्रीवास्तव, मनमोहन श्रीवास्तव ‘काजू’ शैलेष श्रीवास्तव, पेशकार मिश्र, डा. वाहिद अली सिद्दीकी के साथ ही अनेक साहित्यकार, कवि, समालोचक उपस्थित रहे.
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