खंडवा लोस के टिकट को लेकर भाजपा और कांग्रेस पसोपेश में ... ?

खंडवा लोस के टिकट को लेकर भाजपा और कांग्रेस पसोपेश में ... ?
Madhya Pradesh Politics

भोपाल खंडवा लोकसभा उपचुनाव में टिकट को लेकर भाजपा और कांग्रेस में भीतरी मतभेद सामने आए हैं. इस कारण से दोनों दलों में स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है. इससे दोनों दलों के कार्यकर्ता पसोपेश में हैं. सूत्रों के अनुसार भाजपा में यह माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री के दबाव में हर्षवर्धन सिंह चौहान के नाम पर सहमति बनती जा रही है लेकिन पता चला है कि ऐसा नहीं है. विष्णु दत्त शर्मा ने हर्षवर्धन सिंह चौहान का विरोध किया है. उनका तर्क है कि परिवार के लोगो को टिकट नहीं देने का फैसला पार्टी कर चुकी है. इस आधार पर अनेक नेता पुत्रों के टिकट 2018 के चुनाव में कटे हैं. सूत्रों के अनुसार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष यह भी मानते हैं कि स्वर्गीय नंदू भैया के पुत्र होने के अलावा हर्षवर्धन सिंह चौहान ने कोई योग्यता नहीं है और ना ही अनुभव है. सूत्रों का यह भी कहना है कि हर्षवर्धन सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर अलग-अलग पड़ गए हैं. दूसरी और अर्चना चिटनीस को लेकर भी समस्या है. यदि परिवारवाद के फॉर्मूले के कारण हर्षवर्धन सिंह चौहान का टिकट कटता है तो पराजित प्रत्याशी को लोकसभा चुनाव नहीं लडऩे का निर्णय भी पार्टी 2019 में कर चुकी है. ऐसे में अर्चना चिटनीस के टिकट को लेकर भी दिक्कत है. अर्चना चिटनीस के समर्थक संघ का हवाला दे रहे हैं. लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि संघ ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसे में भाजपा के समक्ष खंडवा लोकसभा उपचुनाव के टिकट को लेकर भ्रम बना हुआ है. उधर, कांग्रेस में भी कमलनाथ अरुण यादव पर पूरी तरह से भरोसा करने के लिए तैयार नहीं हैं. हालांकि अरुण यादव का चुनाव अभियान तेजी से चल रहा है. अरुण यादव और सचिन यादव दोनों ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के दौरे भी कर लिए हैं और कार्यकर्ताओं की बैठकें भी ली हैं. कमलनाथ ने अरुण यादव को यह कहकर उलझा दिया कि सर्वे के बाद ही टिकट का फैसला होगा. अभी पार्टी ने किसी नाम पर विचार नहीं किया है. जबकि 15 दिन पूर्व तक यह मान जा रहा था कि अरुण यादव को क्लीयरेंस मिल गया है. सूत्रों का कहना है कि सहमति तो अरुण यादव के नाम पर ही बनेगी लेकिन कमलनाथ अभी कुछ समय इंतजार करना चाहते हैं. इस बीच भजपा के प्रदेश प्रभारी शिव प्रकाश ने उपचुनाव को लेकर फीडबैक लिया है और प्रदेश भाजपा कार्यालय में एक बड़ी बैठक को आहूत किया है. इस बैठक में लोकसभा उपचुनाव और तीनों विधानसभा उपचुनाव के प्रभारियों को आमंत्रित किया गया था. इस बैठक में चुनाव संचालन संबंधी अनेक महत्वपूर्ण निर्णय हुए लेकिन प्रत्याशी को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी. भाजपा के पदाधिकारी के अनुसार जब तक निर्वाचन आयोग अधिसूचना जारी नहीं करता तब तक टिकट को लेकर जल्दबाजी करने की आवश्यकता नहीं है. इसलिए भाजपा ने टिकट वितरण की बजाय चुनाव संचालन और चुनाव अभियान पर अधिक फोस किया है. कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि अरुण यादव के टिकट को लटकाने के पीछे कमलनाथ की रणनीति यह है कि उन्हें थोड़ा और ह्यूमीलेट किया जाए. इसके अलावा यह भी चर्चा है कि कमलनाथ जानते हैं कि यदि अरुण यादव लोकसभा का चुनाव जीते हैं तो सीधे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के दावेदार होंगे. इस कारण भी अरुण यादव को लेकर उनके मन में असुरक्षा की भावना है. अरुण यादव की जीत से कमलनाथ विरोधी खेमा मजबूत होगा. अभी अरुण यादव भले ही शांत बैठे हो लेकिन चुनाव के बाद वे कमलनाथ के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं. हालांकि कांग्रेस के एक पदाधिकारी के अनुसार खंडवा में अरुण यादव को टिकट देने के अलावा कमलनाथ के पास कोई विकल्प नहीं है. सुरेंंद्र सिंह शेरा अरुण यादव के समक्ष नहीं टिकते. यदि उनकी हाउसवाइफ राजश्री ठाकुर को टिकट मिलता है तो कांग्रेस पहले दिन से ही पिछड़ जाएगी. ऐसे में कई कांग्रेसी मानते हैं कि अरुण यादव को नाहक ही लटकाया जा रहा है. खंडवा लोकसभा टिकट को लेकर कमलनाथ के मन में दोहरी आशंका है. यदि अरुण यादव जीतते हैं तो उनके विरोधी खेमे को ताकत मिलेगी और यदि सुरेंद्र सिंह शेरा की पत्नी को टिकट दिया गया और कांग्रेस पराजित होती है तो भी कमलनाथ की कुर्सी खतरे में आ सकती है. कमलनाथ के रणनीतिकार जानते हैं कि अरुण यादव को बायपास करके सुरेंद्र सिंह शेरा को टिकट दिया तो जा सकता है लेकिन सीट नहीं जीती जा सकती.

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