Zila Panchayat Basti News: पंचायत अध्यक्ष, ब्लाक प्रमुख चुनाव में देरी: दावेदारों को छूट रहा पसीना

Zila Panchayat Basti News: पंचायत अध्यक्ष, ब्लाक प्रमुख  चुनाव में देरी: दावेदारों को छूट रहा पसीना
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-भारतीय बस्ती संवाददाता-
बस्ती.
पंचायत चुनाव हुए  एक माह से ज्यादा का समय बीत चुका है. अभी तक जिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लाक प्रमुखों के चुनावी तारीखों की कोई सुगबुगाहट नहीं दिख रही है. जिससे चुनाव लड़ने वाले दावेदारों को बढ़ते खर्चों की वजह से पसीने छूटने लगे है. रोजाना लम्बी गाड़ियों का काफिला, समर्थकों की फौज का खर्च और वोटरों के नखरे दावेदारों को परेशान किये है.

जिला पंचायत अध्यक्ष चुनावों को महंगा माना जाता रहा है. समर्पित, कर्मठ तमगे से नवाजे जाने वाले चुने हुए सदस्य बिकने के लिए तैयार बैठे रहते है.  उनकी बिकवाली को भुनाने में लगे प्रत्याशी उन्हें खरीद कर पदों पर बैठ जाते है. ऐसे में  बिके हुए सदस्यों की गरिमा का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. पूर्व में सरकारें जल्द से जल्द पंचायत चुनाव करा कर जिला पंचायत अध्यक्षों और ब्लाक प्रमुखों पर अपनों की ताजपोशी करा लेती थीं.  इसके लिए सत्ताधारी दल  साम,दाम,दण्ड,भेद की नीति को अपनाने में भी नहीं हिचकते. इस बार के चुनाव में कोरोना संक्रमण को देखते हुए जिला पंचायत और ब्लाक प्रमुख चुनावों को टाल दिया गया. अभी तक चुनाव आयोग द्वारा तारीखों की घोषणा तक नहीं हुई है. जिससे आशंकाओं और कयासबाजियों को बल मिल रहा है. चुनावों में हो रही देरी से दावेदारों को पसीने छूट रहे है. ब्लाक प्रमुख के दावेदारों द्वारा क्षेत्र पंचायत सदस्यों को पैसा, मिठाई और साधने के चक्कर में सब गड्ड मड्ड होता दिख रहा है. सबसे ज्यादा परेशानी वहां हो रही है जहां धनबलियों की बहुतायत है. ऐसे में एक नेता जी के जाते ही दूसरे नेता जी की दस्तक बीडीसी के दरवाजे पर हो जाती है. 

चुनाव में हो रही देरी का खामियाजा दावेदारों से लेकर क्षेत्र पंचायत सदस्यों तक को भुगतना पड़ रहा है. षडयंत्र, मारपीट, गाली-गलौज, खरीद-फरोख्त की घटनाएं बढ़ती जा रही है. ऐसे में दावेदारों का कहना है की जल्द से जल्द चुनाव होना चाहिए. जिससे इस तरह की  घटनाओं पर विराम लगे. कमोबेश यही हाल जिला पंचायत अध्यक्ष पद के दावेदारों का है. इनके दरवाजों पर आशा भरी निगाहों से पहुंचने वाली भीड़ को संतुष्ट करते-करते नेता जी लोग  डिस्टर्ब हो जा रहे है. दबी जुबान से लोग कह रहे है की वोटरों के साथ ही समर्थकों की लम्बी-चैड़ी फौज का खर्चा संभालने वाले इन नेताओं को पद पर बैठने के बाद इनसे ईमानदारी से काम करने की सोचना भी बेमानी है. 

दावेदारों का एकसुर से कहना है की अब कोरोना संक्रमण की रफ्तार धीमी हो चुकी है. सब कुछ सरकार खोल ही रही है. ऐसे में सिर्फ चुनाव की तारीख घोषित करने में देरी करना समझ से परे है. जल्द से जल्द इन चुनावों का निपटाया जाना ही सबके हित में होगा.

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