उत्तर प्रदेश के इस गांव को 28 वर्षों की प्रशासनिक भूल ने दो जिलों के बीच फंसा दिया, ग्रामीणों को हो रहा भारी नुकसान

उत्तर प्रदेश: यूपी में स्थित बस्ती जनपद की सीमा से सटे भरवलिया उर्फ टिकुइया गांव पिछले 28 सालों से एक गंभीर प्रशासनिक भूल की वजह से विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर है. गांव की स्थिति दो जिलों बस्ती और संतकबीरनगर के बीच उलझकर रह गई है, जिसके कारण यहां के लगभग 1000 से अधिक निवासियों को सरकारी योजनाओं, आधारभूत सुविधाओं और प्रमाण-पत्रों की प्राप्ति में भारी कठिनाई झेलनी पड़ रही है. बंटवारे के समय राजस्व विभाग की चूक से यह गांव राजस्व अभिलेखों में संतकबीरनगर जिले का हिस्सा बना, जबकि पंचायती और विकासीय योजनाओं में इसे बस्ती के कुदरहा ब्लॉक की ग्राम पंचायत चकिया में दिखाया गया. इस असहजता के कारण गांव प्रशासनिक पेंच में फंसा रह गया है, और इसका खामियाजा आमजन भुगत रहा है.
भरवलिया गांव के निवासियों का कहना है कि जब देश में विकास योजनाएं तेजी से लागू हो रही हैं, तब उनका गांव अब भी छप्पर के घरों में जीवन गुजारने को मजबूर है. यहां अब तक शौचालय, आवास, पक्के रास्ते जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं. ग्रामीण रामसवार, सुमित्रा देवी, राजबली और रोहित राजभर सहित कई लोगों ने बताया कि उनका आधार कार्ड बस्ती जिले का है, लेकिन जाति, निवास और आय प्रमाण-पत्र संतकबीरनगर के धनघटा तहसील से निर्गत होता है. यहां के लोग त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में बस्ती जिले में मतदान करते हैं, परंतु विधानसभा और लोकसभा चुनावों में संतकबीरनगर के प्रतिनिधियों को चुनते हैं. इस दोहरे प्रशासनिक नियंत्रण ने न सिर्फ योजनाओं के लाभ से गांव को दूर किया है, बल्कि रोजगार, भर्ती और प्रमाण-पत्र सत्यापन जैसी आवश्यक प्रक्रियाएं भी जटिल बना दी हैं.
सन् 1997 में जिले के बंटवारे के साथ भरवलिया उर्फ टिकुइया गांव यह स्थिति बन गई. राजस्व, विकास और पुलिस प्रशासन की स्पष्टता न होने के कारण यह गांव एक भ्रमित पहचान के साथ जी रहा है. गांव के पूर्व प्रधान संतराम ने कहा कि अधिकारियों से लेकर नेताओं तक सभी को ज्ञापन सौंपा गया, परंतु इस पर विशेष ध्यान दिया ही नहीं गया. विधायक गणेश चौहान ने इस मामले में हस्तक्षेप का भरोसा दिलाते हुए कहा कि वह खुद गांव में जाकर स्थिति का जायजा लेंगे और शासन स्तर पर इसे उठाकर गांव को एक जिले में स्थायी रूप से शामिल कराने का प्रयास करेंगे. गांव की मांग अब केवल एक ही है इसे राजस्व, विकास और पुलिस प्रशासन की दृष्टि से पूरी तरह से किसी एक जिले में स्पष्ट रूप से सम्मिलित किया जाए, ताकि लोग विकास का वास्तविक लाभ पा सकें.