महामारी के बीच महंगाई की शिकार जनता: रिफाइन्ड और सरसो तेल के बढ़े के दाम, आलू की कीमत भी दिखा रही आंख

महामारी के बीच महंगाई की शिकार जनता: रिफाइन्ड और सरसो तेल के बढ़े के दाम, आलू की कीमत भी दिखा रही आंख
Musturd Oil News

-भारतीय बस्ती संवाददाता-
बस्ती. कोरोना की दूसरी लहर और लॉकडाउन में खाद्यान्न सामग्री एवं सब्जियों की बढ़ती कीमतों से आम जनता कराह रही है. जीविका के सिमटते संसाधनों के बीच महगाई की चक्की में पिसना उसकी मजबूरी बन गई है. कोरोना की पहली लहर से आम जनता उबर भी नहीं पाई थी कि दूसरी लहर उस पर गाज बनकर गिर गई. महीनों से घरों में कैद लोगों के जहां एक ओर रोजगार छिन चुके है वहीं खाद्य सामग्रियो के बढ़ते दामों के कारण लोगों का जीना मुहाल हो गया है. लोगों का घरेलू बजट बालू की भीत की तरह भरभरा कर गिर चुका है.

अपनी जरूरतों को कम करने के बावजूद भी लोग सरसो तेल, रिफाइन्ड आयल के बढ़ते दामों से परेशान है. जनवरी महीने में 110 रूपये प्रति किलो बिकने वाला सरसो तेल मई के महीने में 190 रूपये प्रति किलो बिक रहा है. रिफाइन्ड आयल के दाम भी सरसो तेल के साथ बढ़ रहे है. 90 रूपये प्रति लीटर का रिफाइन्ड अब बाजार में 170 रूपये प्रति लीटर बिक रहा है.

खाद्य सामग्री तैयार कर बाजार मे उतारने वाली कम्पनियों ने जहां एक ओर दाम बढ़ाये तो वही बिचैलियो ने भी परम्परागत रूप से तैयार सरसो के तेल का भाव भी आसमान छूने लगा. इसी के साथ ही बाजार में गेहू की कीमत 16 रूपये प्रति किलो से 18 रूपये प्रति किलो है लेकिन उपभोक्ताओं को आटा 25 रूपये प्रति किलो मिल रहा है. ऐसे हालत मे जब रोजगार के साधन समाप्त हो चुके है लोग घरों मे कैद है ऐसे मे खाद्य सामग्रियों के साथ सब्जियों के बढ़ते दाम भी आंख दिखा रहे है. आलू 10 रूपये प्रति किलो से बढ़कर 15 से 20 रूपये प्रति किलो बिक रहा है वही प्याज की कीमत 25 रूपये प्रति किलो हो चुकी है. खाद्य सामग्रियो के बढ़ते दामो के साथ सब्जियो की कीमतों ने भी उझाल मारी है. शहर से लेकर गांव तक के बाजार में रोजमर्रा के जरूरतों से जुड़ी चीजें मनमाने दामों पर बिक रहे है. सरसो तेल के लिए कही 190 तो कही 200 तक भी दाम ग्राहको से लिया जा रहा है.

रोजगार और बंद कमाई रास्ते के बीच आम आदमी महंगाई की चक्की में पिस रहा है. ऐसे में लोगो के लिए अब घरेलू सामान जुटाना मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे हालात में जिन परिवारों को रोज कमा कर परिवार चलाना पड़ रहा था. उनको कोई रास्ता नही सूझ रहा है. महंगाई की मार ने जो तेवर दिखाये है उससे उबरना आम जनता के लिए मुश्किल होता जा रहा है. घरेलू सामानों की व्यवस्था करने में उसे रोना आ रहा है. महंगाई की मार से त्रस्त लोगों का कहना है कि यदि यही हाल रहा तो घर में दो जून की रोटी तक के लाले पड़ जाएंगे. गरीबों को सरकार चावल, गेहूं तो उपलब्ध करा रही है लेकिन अन्य सामानों की खरीदारी वह कहां से करे यह सवाल किया जा रहा है.

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