क्रांतिवीर पिरई खां स्मृति समिति से जुड़े लोग आज जाएंगे महुआ डाबर

क्रांतिवीर पिरई खां स्मृति समिति से जुड़े लोग आज जाएंगे महुआ डाबर
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महुआ डाबर, बस्ती. बर्बर फिरंगी हुकूमत के खिलाफ बगावत की चिंगारी में फैल गई थी. गोरखपुर के सिपाहियों ने 8 जून 1857 को राजकोष लूटने की कोशिश की. कैप्टन स्टील और उनकी 12वीं अश्वारोही दल को आजादी के मतवालो ने पीछे खदेड़ दिया तो वही 8 एवं 9 जून को फैजाबाद तथा गोण्डा के सिपाहियों की टुकड़ी ने भी ब्रिटिश सरकार को ललकार दिया था. क्रांति की ज्वाला जलाने वाले पिरई खां और उनके क्रांतिकारी साथी देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए आमादा थे.

महुआ डाबर के पास से षड्यंत्रकारी अंग्रेज अफसर दानापुर (पटना) जा रहे थे. भारतमाता के बहादुर बेटों को जुल्मी अंग्रेज अफसरो के इस रास्ते से आने की भनक लग गई. गुलामी की बेडियां तोड़ने और फिरंगियों से दो-दो हाथ करने के लिए पूरा इलाका एकजुट हो गया. पिरई खां के नेतृत्व में लाठी-डंडे, तलवार, फरसा, भाला, किर्च आदि लेकर यहां के रहवासियों की टुकड़ी ने मनोरमा नदी पार कर रहे अंग्रेज अफसरों पर 10 जून 1857 को हमला बोल दिया. लेफ्टिनेंट लिंडसे, लेफ्टिनेंट थामस, लेफ्टिनेंट इंगलिश, लेफ्टिनेंट रिची, लेफ्टिनेंट काकल और सार्जेंट एडवर्ड को मौत के घाट उतार दिया. तोपची सार्जेंट बुशर जान बचाकर भागने में सफल रहा. उसने ही घटना की जानकारी वरिष्ठ अफसरों को दी. इस क्रांतिकारी घटना ने तहलका मचा दिया. महुआ डाबर एक्शन ने ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिला दी.

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बौखलाई अंग्रेज सरकार ने 20 जून 1857 को पूरे जिले में मार्शल ला लागू कर दिया गया था. 3 जुलाई 1857 को बस्ती के कलक्टर पेपे विलियम्स ने घुड़सवार फौजो की मदद से महुआ डाबर गांव को घेरवा लिया. घर-बार, खेती-बारी, रोजी-रोजगार सब आग के हवाले कर तहस- नहस कर दिया गया. इस गांव का नामो निशान मिटवा कर ‘गैरचिरागी’ घोषित कर दिया. यहां पर अंग्रेजों के चंगुल में आए निवासियों के सिर कलम कर दिए गए. इनके शवों के टुकड़े-टुकड़े करके दूर ले जाकर फेंक दिया गया. इतना ही नहीं अंग्रेज अफसरों की हत्या क अपराध में जननायक पिरई खां का भेद जानने के लिए गुलाम खान, गुलजार खान पठान, नेहाल खान पठान, घीसा खान पठान व बदलू खान पठान आदि क्रांतिकारियों को 18 फरवरी 1858 सरेआम फांसी दे दी गई. जनपद गजेटियर में महुआ डाबर की घटना का जिक्र मिलता है. आजाद भारत में तमाम प्रयासो के बावजूद महुआ डाबर के क्रांतिवीरो को बिसरा दिया गया. शासन-प्रशासन ने महुआ डाबर को लेकर कई बार घोषणाएं की लेकिन आज भी महुआ डाबर एक अदद स्मारक के लिए तरस रहा है.

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क्रांतिवीर पिरई खां स्मृति समिति से जुड़े लोग आज जाएंगे महुआ डाबरः

कोविड नियमों का पालन करते हुआ समिति से जुड़े युवा महुआ डाबर क्रांति दिवस के अवसर पर महुआ डाबर जाएंगे. यहां वो अपनी धुंधला दी गई गौरवशाली विरासत को याद करेंगे.

महुआ डाबर 1857 जनविद्रोह स्मरण दिवसः क्रांतिवीर पिरई खां स्मृति समिति

इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय वेब संवाद का आयोजन दोपहर एक बजे करेगी. जिसे शहीद ए आजम भगत सिंह के भांजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह, दिल्ली

विश्वविद्यालय से जुड़े इतिहासकार डॉ. सौरभ बाजपेयी, क्रांतिकारी लेखक शाह आलम आदि संबोधित करेंगे. इस दौरान विश्व के 125 भाषाओं में गाकर तीन बार गिनीज बुक में दर्ज सुविख्यात गायक डॉ. गजल श्रीनिवास अपनी विशेष प्रस्तुतियां देंगे. आनलाइन सत्र का संचालन विचारक दुर्गेश कुमार चौधरी करेंगे. यह जानकारी   क्रांतिवीर पिरई खां स्मृति समिति के संयोजक, आदिल खान ने दी.

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