कुआनों और मनवर की स्थिति गंभीर, शैवाल-जलकुंभी ने खराब की जीवनदायिनी नदियों की तस्वीर

'भाव का परिधान मैला हो गया है जिस नदी का जल सदा अमृत लगा था उस नदी का जल विषैला हो गया है’

कुआनों और मनवर की स्थिति गंभीर, शैवाल-जलकुंभी ने खराब की जीवनदायिनी नदियों की तस्वीर
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संवाददाता बस्ती. जीवन रेखा कही जाने वाली कुआनों को प्रकृति ने एक बार फिर मुस्कुराने का मौका दे दिया है. औद्योगिक इकाईयों का कचरा गिरना बंद हुआ तो कुआनों फिर से निर्मल हो गई. लेकिन कुआनों जलकुम्भी और शैवाल की चपेट में है. वैश्विक महामारी कोराना के चलते हुए लॉकडाउन में प्रकृति एक बार फिर अपने पुरातन स्वरूप की ओर वापस लौट रही है. न हवा मे जहर, न सड़कों पर धुआ उगलती गाड़ियां, ना औद्यौगिक इकाईयों से निकलने वाला गंदा पानी. कोरोना महामारी के दौर में लगे लाकडाउन में यह अब कम हो चुका है. जनपद मे बहने वाली कुआनों और मनोरमा अपनी  पुराने स्थिति में वापस आ रही है. नदियों को अपने पुराने अस्तित्व में वापस लाने की कवायद भले ही उसे उसका पुराना स्वरूप वापस न दिया पाई हो लेकिन कोरोना संकट काल ने नदियो को अपने स्वरूप में वापस आने का मौका दे दिया.

किसी कवि की यह पंक्तियां  ‘भाव का परिधान मैला हो गया है जिस नदी का जल सदा अमृत लगा था उस नदी का जल विषैला हो गया है’ अब यह बीते समय की बात हो गई है. लॉकडाउन के पहले चरण के साथ ही कुआनों के पानी में आये बदलाव के चलते जीवन रेखा कही जाने वाली कुआनो एक बार फिर प्रकृति का सुखद अहसास करा रही है .कुआनों  में यह बदलाव किसी भगीरथ प्रयास से नहीं हुआ बल्कि प्रकृति में घुलते जहर के कम होने से संभव हो पाया है.

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हालांकि कुआनों के बहते जल प्रवाह में जलकुम्भी और शैवाल अपना घर बना चुके है. नदी में कई जगहों पर जलकुम्भी के कारण नदी का पानी तक नही दिखाई दे रहा है.

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कुआनों और मनवर को लेकर कई आन्दोलन और राजनीतिक स्टंट भी हुए. कभी जल सत्याग्रह तो कभी कुछ लेागो ने नदियो में कूद-कूद कर जलकुम्भी निकाला. नदियों को साफ करने के लिए गजट और बजट दोनों पर खूब चाले भी चली गई. लेकिन कुआनों और मनवर के लिए मन से प्रयास नहीं हुए. आरती ,पूजा, महोत्सव, बस कुआनों और मनवर के लिए खूब हुए लेकिन धरातल पर अब भी हालात बेहतर नही है. हां प्रकृति के साथ मानवीय छेड़छाड़ थोड़ी सी कम हुई तो प्रकृति फिर एक बार मुस्करा उठी.

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