कुआनों और मनवर की स्थिति गंभीर, शैवाल-जलकुंभी ने खराब की जीवनदायिनी नदियों की तस्वीर
'भाव का परिधान मैला हो गया है जिस नदी का जल सदा अमृत लगा था उस नदी का जल विषैला हो गया है’

किसी कवि की यह पंक्तियां ‘भाव का परिधान मैला हो गया है जिस नदी का जल सदा अमृत लगा था उस नदी का जल विषैला हो गया है’ अब यह बीते समय की बात हो गई है. लॉकडाउन के पहले चरण के साथ ही कुआनों के पानी में आये बदलाव के चलते जीवन रेखा कही जाने वाली कुआनो एक बार फिर प्रकृति का सुखद अहसास करा रही है .कुआनों में यह बदलाव किसी भगीरथ प्रयास से नहीं हुआ बल्कि प्रकृति में घुलते जहर के कम होने से संभव हो पाया है.
हालांकि कुआनों के बहते जल प्रवाह में जलकुम्भी और शैवाल अपना घर बना चुके है. नदी में कई जगहों पर जलकुम्भी के कारण नदी का पानी तक नही दिखाई दे रहा है.


कुआनों और मनवर को लेकर कई आन्दोलन और राजनीतिक स्टंट भी हुए. कभी जल सत्याग्रह तो कभी कुछ लेागो ने नदियो में कूद-कूद कर जलकुम्भी निकाला. नदियों को साफ करने के लिए गजट और बजट दोनों पर खूब चाले भी चली गई. लेकिन कुआनों और मनवर के लिए मन से प्रयास नहीं हुए. आरती ,पूजा, महोत्सव, बस कुआनों और मनवर के लिए खूब हुए लेकिन धरातल पर अब भी हालात बेहतर नही है. हां प्रकृति के साथ मानवीय छेड़छाड़ थोड़ी सी कम हुई तो प्रकृति फिर एक बार मुस्करा उठी.
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जितेंद्र कौशल सिंह भारतीय बस्ती के पत्रकार हैं. शुरुआती शिक्षा दीक्षा बस्ती जिले से ही करने वाले जितेंद्र खेती, कृषि, राजनीतिक और समसामयिक विषयों पर खबरें लिखते हैं.