जयन्ती पर याद किये गये मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक बाबूराम वर्मा ने कहा कि मीर तकी मीर और मिर्जा गालिब के बाद हिन्दुस्तान में उर्दू का सबसे महान शायर माना जाता है. उर्दू जबान और अदब की तारीख फिराक गोरखपुरी के बिना अधूरी है.
विशिष्ट अतिथि रामदत्त जोशी ने कहा कि फराक की शख्सियत में इतनी पर्तें, इतने आयाम, इतना विरोधाभास और इतनी जटिलता थी कि वो हमेशा से अध्येताओं के लिए एक पहेली बन कर रहे. तीन मार्च 1982 को भले ही फिराक साहब ने दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी शायरी आज भी मौजूं है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने कहा कि फिराक की शुरुआती शायरी यदि देखें, तो उसमें जुदाई का दर्द, गम और जज्बात की तीव्रता शिद्दत से महसूस की जा सकती है. अपनी गजलों, नज्मों और रुबाइयों में वह इसका इजहार बार-बार करते हैं- “वो सोज-ओ-दर्द मिट गए, वो जिंदगी बदल गई, सवाल-ए-इश्क है अभी ये क्या किया, ये क्या हुआ.’’ फिराकगोरखपुरी ने गुलाम मुल्क में किसानों-मजदूरों के दुःख-दर्द को समझा और अपनी शायरी में उनको आवाज दी. ऐसे महान शायर फिराक युगों तक याद किये जायेंगे. एडवोकेट श्यामप्रकाश शर्मा ने कहा कि फिराक गोरखपुरी की शायरी लोगों की जिन्दगी से जुडी है.
इस मौके पर अनेक साहित्यकारों, कवियों को सम्मानित किया गया. कार्यक्रम में चन्द्रबली मिश्र, डा राजेन्द्र सिंह राही, गिरिजेश कुमार वर्मा, प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, मो. साइमन फारुखी, एडवोकेट विनय कुमार श्रीवास्तव, गणेश, दीनानाथ आदि शामिल रहे. संचालन नीरज कुमार वर्मा ने किया.
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