जयन्ती पर याद किये गये मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी

बस्ती . ‘बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं ’तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं’’ ‘आई है कुछ न पूछ कयामत कहाँ कहाँ, उफ ले गई है मुझ को मोहब्बत कहाँ कहाँ’’ जैसी अनेक गजलों के मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी को 125 वीं जयन्ती पर याद किया गया. शनिवार को कलेक्ट्रेट परिसर में प्रेमचंद साहित्य एवं जनकल्याण संस्थान की ओर से आयोजित कार्यक्रम में उन्हें शिद्दत से याद किया गया.
विशिष्ट अतिथि रामदत्त जोशी ने कहा कि फराक की शख्सियत में इतनी पर्तें, इतने आयाम, इतना विरोधाभास और इतनी जटिलता थी कि वो हमेशा से अध्येताओं के लिए एक पहेली बन कर रहे. तीन मार्च 1982 को भले ही फिराक साहब ने दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी शायरी आज भी मौजूं है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने कहा कि फिराक की शुरुआती शायरी यदि देखें, तो उसमें जुदाई का दर्द, गम और जज्बात की तीव्रता शिद्दत से महसूस की जा सकती है. अपनी गजलों, नज्मों और रुबाइयों में वह इसका इजहार बार-बार करते हैं- “वो सोज-ओ-दर्द मिट गए, वो जिंदगी बदल गई, सवाल-ए-इश्क है अभी ये क्या किया, ये क्या हुआ.’’ फिराकगोरखपुरी ने गुलाम मुल्क में किसानों-मजदूरों के दुःख-दर्द को समझा और अपनी शायरी में उनको आवाज दी. ऐसे महान शायर फिराक युगों तक याद किये जायेंगे. एडवोकेट श्यामप्रकाश शर्मा ने कहा कि फिराक गोरखपुरी की शायरी लोगों की जिन्दगी से जुडी है.