Basti Politics: बस्ती में बीजेपी के लिए कम नहीं हो रहीं मुश्किलें! नहीं संभले तो लोकसभा में होंगी ये चुनौतियां

UP Nikay Chunav 2023: बागी, भितरघाती बने हैं भाजपा के लिये चुनौती

Basti Politics: बस्ती में बीजेपी के लिए कम नहीं हो रहीं मुश्किलें! नहीं संभले तो लोकसभा में होंगी ये चुनौतियां
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Basti Lok Sabha Election 2024: निकाय चुनाव में मेयर की सभी 17 सीटे जीतकर निश्चित रूप से भाजपा खुश है और उसे होना भी चाहिये.  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, केशव प्रसाद मौर्य के साथ ही मंत्रिमण्डल और पूरे भाजपा संगठन, विधायक, सांसदों ने निकाय चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दिया था तो परिणाम आना ही था . 
 
बस्ती के नजरिये से देखें तो  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जन सभा और  उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक के सम्पर्क एवं सांसद हरीश द्विवेदी के अथक परिश्रम के बावजूद बस्ती नगर पालिका परिषद में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और भाजपा नेता चुनाव परिणामों के बाद अब खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं. 
 
निकाय चुनाव सम्पन्न होने के बाद अब सियासी खेमों में यह चर्चा गर्म है कि लोकसभा 2024 में कौन भारी पड़ेगा.  लोगों का कयास है कि यदि सांसद हरीश द्विवेदी को पुनः मौका दिया तो और समाजवादी पार्टी ने पूर्व कैबिनेट मंत्री राम प्रसाद चौधरी को उम्मीदवार बनाया तो लडाई कांटे की होगी.  अभी से लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां जोरों पर है.  लोग यह भी कह रहे हैं कि कुशल संगठनकर्ता अनुभवी महेश शुक्ल के जिलाध्यक्ष होते हुये आखिर भाजपा के समक्ष संकट क्यों हैं. 
 
विधानसभा चुनाव में चार सीटों पर करारी हार के बाद निकाय चुनाव की हार को  भाजपा संगठन और जन प्रतिनिधि भले ही सामान्य ले रहे हो किन्तु नेतृत्व के बडे जिम्मेदार समझ गये हैं कि यदि अभी से न चेते तो लोकसभा चुनाव में  सभी 80 सीटों को जीत लेने का दावा काफूर हो सकता है.  बहरहाल बस्ती के निकाय चुनाव जनादेश बिल्कुल भाजपा के पक्ष में नहीं है.  
प्रदेश स्तर पर यदि समीक्षा करें तो इस चुनाव ने रणनीतिक रूप से फिर चूके मुख्य विपक्षी दल सपा के लिए संदेश तो दिया ही है, पहली बार शत प्रतिशत नगर निगमों व अन्य निकायों में पहले से बेहतर प्रदर्शन कर जीत हासिल करने वाली भाजपा को भी अलर्ट किया है.  नतीजे यह भी बता रहे हैं कि बसपा को मजबूती से मैदान में आने के लिए पुराने प्रयोगों से बात बनने वाली नहीं है और आम आदमी पार्टी व एआईएमआईएम को नजरअंदाज कर रणनीति बनाना, आगे मुख्य राजनीतिक दलों को भारी पड़ सकता है.  इस चुनाव में सिंबल पर चुनाव में हिस्सा लेने वाले दलों को न सिर्फ उनकी चूक का एहसास कराया है, बल्कि लोकसभा चुनाव के लिए उन्हें सजग भी किया है. 
नतीजों से स्पष्ट हो गया है कि शहरों में भाजपा का दबदबा कायम है.  पार्टी इन नतीजों को ऐतिहासिक करार देकर लोकसभा चुनाव की ऊंचे मनोबल से तैयारी का आगाज कर सकती है.  लेकिन, कई जगह उसके अपने ही विधायक-सांसद चिंता का सबब बने हैं.  कई सांसदों-विधायकों को अपने शुभचिंतकों के सिवा कोई दूसरा पसंद नहीं है.  सिर पर लोकसभा चुनाव होने के बावजूद कई जगह सांसदों-विधायकों ने मनचाहे प्रत्याशी को टिकट न मिलने से न सिर्फ भितरघात किया, बल्कि कई जगह तो बागी लड़ाकर उनकी मदद भी की.  लोकसभा चुनाव से पहले भितरघातियों व बागियों को लेकर भाजपा को स्पष्ट संदेश देना होगा.  नगर पंचायतों व पालिका परिषदों के कई सीटों के नतीजे इसकी बानगी हैं. 
यदि भाजपा ने भितरघात और सत्ता के अहंकार पर नियंत्रण न किया तो लोकसभा चुनाव में उसकी मुश्किलें बढ सकती है इसमें संदेह नहीं.  

 

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