पेरिस में पदक का रंग बदलना चाहते हैं बजरंग पूनिया

पेरिस में पदक का रंग बदलना चाहते हैं बजरंग पूनिया
पेरिस में पदक का रंग बदलना चाहते हैं बजरंग पूनिया

नई दिल्ली टोक्यो ओलंम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाले पहलवान बजरंग पूनिया अब 2024 में होने वाले अगले पेरिस ओलंम्पिक में पदक का रंग बेहतर करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। हालांकि वह स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय पहलवान बनना चाहते हैं लेकिन उनकी दिली इच्छा है कि पत्नी संगीता फोगाट पूनिया भी ओलंम्पिक में पदक जीते। ओलंम्पिक से पहले कोरोना काल के चलते वह द्रोणाचार्य महाबीर फोगाट की पहलवान बिटिया संगीता फोगाट के साथ विवाह बंधन में बंध गए थे। संगीता कुछ दिनों तक कुश्ती से दूर रहने के बाद अखाड़े में फिर से लौट आई है और पति का मनोबल बढ़ाने के साथ साथ खुद भी गंभीर तैयारी में जुट गई हैं ।

गुरूवार को यहां खेल परिधान बनाने वाली कंपनी एसिक्स इंडिया के ब्रांड एम्बेसडर बने बजरंग ने बताया कि टोक्यो ओलंम्पिक की चूक को उन्हें हमेशा मलाल रहेगा। चोट के चलते वह देशवासियों को सोने का पदक नहीं दे पाये , लेकिन पेरिस खेलों में वह इसकी भरपाई करने की पूरी कोशिश करेंगे । उनके साथ एसिक्स के मैनेजिंग डायरेक्टर रजत खुराना भी मौजूद थे।

भारत के लिए एकमात्र ओलम्पिक स्वर्ण विजेता नीरज चोपड़ा को बजरंग ने अभूतपूर्व खिलाड़ी बताया और कहा कि यदि कोई खिलाड़ी नीरज की तरह फिट होता है तो वह कुछ भी कर सकता है, जैसा नीरज ने किया। उसके अनुसार यदि ओलंम्पिक 2020 में संभव हो पाता तो नीरज शायद स्वर्ण नहीं जीत पाता क्योंकि तब वह चोट के कारण अस्वस्थ थे । हो सकता है कि महिला मुक्केबाज एमसी मैरीकाम एकऔर पदक जीत जातीं। कोरोना के चलते खेलों का एक साल देरी से संभव हो पाना बढ़ती उम्र वाले खिलाडिय़ों के लिए कठिन अनुभव साबित हुआ।

हालांकि बजरंग ने मैरिकाम को महान खिलाड़ी बताया और कहा कि वह कभी हार नहीं मानती, पर उम्र भी कोई चीज होती है।

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बजरंग देश का ऐसा पहला पहलवान है जिसने विश्व चैंपियनशिप, एशियाई खेलों, कामनवेल्थ खेलों और ओलंम्पिक में शानदार रिकार्ड के साथ पदक जीते हैं। अपनी कुश्ती यात्रा के बारे मे उन्होंने बताया कि सात आठ साल की उम्र से अखाड़े जाना शुरू कर दिया था। तब हरियाणा में बहुत से दंगल होते थे। दंगलों में भाग लेने का चस्का लग गया, क्योंकि स्कूल नहीं जाना पड़ता था। बस दिन रात कुश्ती और स्कूल की छुट्टी।लेकिन आज खेल के साथ साथ पढ़ाई भी जरूरी है। उसने 18 साल की उम्र में विश्व चैंपियनशिप का पदक जीत लिया था लेकिन ओलंम्पिक पदक हमेशा ख्वाबों में रहा और अंतत: जीत दिखाया।

बजरंग ने टोक्यो पैरालम्पिक में भारतीय खिलाडिय़ों के प्रदर्शन को बड़ी कामयाबी बताया और कहा कि दिव्यांग खिलाड़ी भी बड़े से बड़े सम्मान के हकदार हैं । उनका मनोबल बढ़ाने में किसी तरह की कमी नहीं होनी चाहिए। बजरंग ने उनके जज्बे को सलाम किया और कहा कि उन्हें भी सामान्य खिलाडिय़ों जैसा मान सम्मान मिलना चाहिए।

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