जनमाष्टमी की तैयारियां शुरू, जानें- किस दिन है Janmashtami 2025 और क्या है शुभ मुहूर्त?
Janmashtami 2025

पूरे देश भर में जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है.कंस की नगरी मथुरा में, भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कंस के कारागार में देवकी की आठवीं संतान के रूप में हुआ था. उनके जन्म के समय मध्यरात्रि थी और चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र के साथ उदय हो रहा था. इसलिए, कृष्णाष्टमी हर साल भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है.
जन्माष्टमी मुहूर्त क्या होगा?
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जन्माष्टमी पारण समय: 17 अगस्त 2025, रविवार को सुबह 5:50:27 के बाद
कृष्ण जन्माष्टमी मुहूर्त से जुड़ी ये खास सलाह
1. अगर अष्टमी मध्यरात्रि में व्याप्त हो, तो व्रत अगले दिन रखना चाहिए.
2. अगर अष्टमी तिथि केवल दूसरे दिन की मध्यरात्रि तक व्याप्त हो, तो व्रत दूसरे दिन ही रखना चाहिए.
3. अगर अष्टमी तिथि दो दिनों की मध्यरात्रि में व्याप्त हो और रोहिणी नक्षत्र केवल एक रात में व्याप्त हो, तो उस रात के अगले दिन व्रत रखना चाहिए.
4. अगर अष्टमी तिथि दो दिनों की मध्यरात्रि में व्याप्त हो और दोनों रातों में रोहिणी नक्षत्र भी हो, तो कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत दूसरे दिन रखा जाता है.
5. अगर अष्टमी तिथि दो दिनों की मध्यरात्रि में व्याप्त हो और किसी भी दिन रोहिणी नक्षत्र न हो, तो कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत दूसरे दिन रखा जाता है.
6. अगर अष्टमी तिथि इन दोनों दिनों की मध्यरात्रि में व्याप्त न हो, तो व्रत दूसरे दिन रखा जाएगा.
हालांकि यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस त्योहार को मनाने के बारे में स्मार्तों और वैष्णवों की अलग-अलग मान्यताएँ हैं.
जन्माष्टमी व्रत और पूजा विधि
1. यह उत्सव अष्टमी के व्रत और पूजा से शुरू होता है और नवमी के पारण के साथ समाप्त होता है.
2. व्रत रखने वाले को एक दिन पहले यानी सप्तमी को हल्का सात्विक भोजन करना चाहिए. अगली रात जीवनसाथी के साथ किसी भी तरह के शारीरिक संबंध से बचें और सभी इंद्रियों को नियंत्रण में रखें.
3. व्रत के दिन, सुबह जल्दी उठकर सभी देवताओं को प्रणाम करें; फिर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें.
4. हाथ में पवित्र जल, फल और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें.
5. इसके बाद, काले तिल मिले जल को अपने ऊपर छिड़कें और देवकी जी के लिए प्रसव कक्ष बनाएँ.
6. अब इस कक्ष में शिशु शय्या और उस पर एक पवित्र कलश स्थापित करें.
7. इसके अतिरिक्त, कृष्ण को दूध पिलाती हुई देवकी जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें.
8. क्रमशः देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी जी का नाम लेकर पूजा करें.
9. यह व्रत मध्यरात्रि के बाद ही खोला जाता है. इस व्रत में अनाज का सेवन नहीं किया जाता है. केवल फल आदि ही ग्रहण किए जा सकते हैं, जैसे कुट्टू के आटे की भुनी हुई लोइयाँ, गाढ़े दूध से बनी मिठाइयाँ और सिंघाड़े का हलवा.
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